अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 15
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
55
सर्वे॑ देवा अ॒त्याय॑न्तु॒ त्रिष॑न्धे॒राहु॑तिः प्रि॒या। सं॒धां म॑ह॒तीं र॑क्षत॒ ययाग्रे॒ असु॑रा जि॒ताः ॥
स्वर सहित पद पाठसर्वे॑ । दे॒वा: । अ॒ति॒ऽआय॑न्तु । त्रिऽसं॑धे: । आऽहु॑ति: । प्रि॒या । स॒म्ऽधाम् । म॒ह॒तीम् । र॒क्ष॒त॒ । यया॑ । अग्रे॑ । असु॑रा: । जि॒ता: ॥१२.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
सर्वे देवा अत्यायन्तु त्रिषन्धेराहुतिः प्रिया। संधां महतीं रक्षत ययाग्रे असुरा जिताः ॥
स्वर रहित पद पाठसर्वे । देवा: । अतिऽआयन्तु । त्रिऽसंधे: । आऽहुति: । प्रिया । सम्ऽधाम् । महतीम् । रक्षत । यया । अग्रे । असुरा: । जिता: ॥१२.१५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(सर्वे) सब (देवाः) व्यवहारकुशल लोग (अत्यायन्तु) यहाँ चले आवें, (त्रिषन्धेः) त्रिसन्धि [म० २। त्रयीकुशल सेनापति] की (प्रिया) यह पियारी (आहुतिः) आहुति [बलि वा भेंट] है। “[हे वीरो !] (महतीम्) उस बड़ी (सन्धाम्) प्रतिज्ञा को (रक्षत) रख लो, (यया) जिस [प्रतिज्ञा] से (अग्रे) पहिले (असुराः) असुर लोग (जितः) जीते गये हैं” ॥१५॥
भावार्थ
तत्त्वज्ञ पुरुष दृढ़ प्रतिज्ञा करके धर्मात्मा राजा के सहायक होकर अपना कर्तव्य पालन करें ॥१५॥
टिप्पणी
१५−(सर्वे) (देवाः) व्यवहारिणः पुरुषाः (अत्यायन्तु) इण् गतौ। मार्गानतिक्रम्यागच्छन्तु (त्रिषन्धेः) म० २। त्रयीकुशलस्य सेनापतेः (आहुतिः) भक्तिसमर्पणम् (प्रिया) प्रीतिकरी (सन्धाम्) प्रतिज्ञाम् (महतीम्) दृढाम् (रक्षत) पालयत (यया) प्रतिज्ञया (अग्रे) पूर्वम् (असुराः) दुराचारिणः (जिताः) अभिभूताः ॥
विषय
महती सन्धा
पदार्थ
१. (सर्वे देवा:) = सब विजिगीषु पुरुष (अति आयन्तु) = काम, क्रोध आदि को लाँधकर प्रभु के समीप प्राप्त हों। (त्रिषन्धे:) = 'जल, स्थल व वायु सेना के सेनापति की (आहुति:) = देशरक्षा के यज्ञ में दी गई प्राणों की आहुति (प्रिया) = प्रीति का सम्पादन करनेवाली है। 'तन-मन-धन' की आहुति देकर ही व्यक्ति मनुष्यों का व प्रभु का प्रिय बनता है। २. (महती संधाम) = सर्वमहान् प्रतिज्ञा को कि ('यदि योन्याः प्रमुच्येऽहं तत्प्रपद्ये महेश्वरम्') = अब की बार संसार में आने पर अवश्य प्रभु की शरण में आऊँगा' गर्भावस्था में की गई इस सर्वमहान् प्रतिज्ञा को रक्षित करो। इस प्रतिज्ञा का पालन करते हुए, तुम इस बात को न भूलना कि यही वह महती संधा है (यया) = जिसके द्वारा (अग्रे) = सर्वप्रथम (असुराः जिता:) = देवों द्वारा असुरों का पराजय किया गया।
भावार्थ
हम तन, मन, धन की लोकहित के यज्ञ में आहुति देते हुए प्रभु को प्राप्त करें। इस आहुति से ही तो प्रभु को प्राप्त करने के लिए देव, असुरों का पराजय करते हैं।
भाषार्थ
(सर्व देवाः) सब देव (१४), (अति) निज, स्थानों को छोड़कर,(आयन्तु) युद्धार्थ आ जांय (त्रिषन्धेः) तीन राष्ट्रों के प्रतिनिधिरूप-सेना संचालक को (आहुतिः) युद्ध की यज्ञाग्नि में सब को अपनी आहुति देना (प्रिया) प्रिय है अभीष्ट हैं। (महती संधाम्) तीनों राष्ट्रों की महतीसन्धि की (रक्षत) रक्षा करो, (यया) जिस महती सन्धि द्वारा (अग्रे) पहिले१ भी (असुराः जिताः) असुरों पर विजय पाई है।
टिप्पणी
[महती संधाम् = तीन राष्ट्रों ने मिल कर प्रतीज्ञा की है कि हम मिलकर असुरों पर विजय पायेंगे, इस प्रतिज्ञा की रक्षा करो, और इस की रक्षा के लिये अपनी-अपनी आहुति दो। अग्रे असुराः = अथवा "सेना के आगे युद्धार्थ आने वाले शत्रु असुर" अग्रे=In front of; at the head (आप्टे)] अर्थात् जो आसुरी सेना के अग्रभाग में स्थित हो कर युद्ध करें। ऐसे योद्धाओं को यजुर्वेद में "मरुतः" कहा है। मरुतः जोकि मारने में सिद्धहस्त हों और स्वयं की मृत्यु से भयभीत न हों। यथा “इन्द्र आसां नेता बृहस्पतिर्दक्षिणा यज्ञः पुर एतु सोमः। देवसेनानामभिभञ्जतीनाञ्जयन्तीनाम्मरुतो यन्त्वग्रम्।। यजु० १७॥४०॥" मरुतः यन्तु अग्रम्- ये शब्द विशेष ध्यान के योग्य हैं। मरुत्= म्रियते मारयति वा स मरुत्, मनुष्यजातिः (उणा० १।९४, महर्षि दयानन्द)]। [१. अथर्व० ११।९।२६ में "संजित्य" शब्द के अनुसार देव विजय पहिले पा चुके हैं। ११।१०।१ से युद्ध पुनः आरम्भ हुआ है।]
विषय
शत्रुसेना का विजय।
भावार्थ
हे (देवाः) देवगण, राजगण ! (सर्वे अति आयन्तु) आप सब लोग शत्रु का पक्ष त्याग कर हमारी ओर आ जाओ। (त्रिषन्धेः) त्रिसन्धि नाम अस्त्र को (आहुतिः प्रिया) यज्ञ की आहुति ही प्रिय है। (यया) जिस संधा = प्रतिज्ञा से (असुरा जिताः) असुरों का विजय किया जाता है उस (महतीं संधाम्) बड़ी भारी संधा = परस्पर की प्रतिज्ञा को (रक्षत) सुरक्षित रखो।
टिप्पणी
(प्र०) ‘अत्यायन्ति’ इति सायणाभिमतः। (पं०) ‘नाशयति’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(सर्वे देवा:-प्रत्यायन्तु) सब विजिगीषु जन दूर मार्ग पार कर आओ (त्रिषन्धेः प्रिया-आहुति:) त्रिषन्धि वज्र की संग्राम यज्ञ में प्रिया आहुति दी है (महतीं सन्धां रक्षत) विजयार्थ महती सङ्कल्प भावना-प्रतिज्ञा की रक्षा करो- निभाओ (यया अग्रे असुराः-जिता:) जिसके द्वारा पूर्व असुर मारे हैं अथवा जिसके द्वारा आगे सामनेस्थित असुर-शत्रुजन जीते हैं ॥१५॥
विशेष
ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
May all the devas, brilliant sagely seekers of life and victory, come to this triple centrehold of yajnic performance. Contribution to this yajna of personal and social fulfilment is dear to Trishandhi, lord of positivity, negativity and the higher complementarity of the two in life’s evolution. May they protect, preserve, and promote this great balance and harmony by which purely negative and destructive forces were defeated and the Devas won over the demons since the beginning of time.
Translation
Let all the gods come over hither; the offering (is) dear to Trisandhi; defend ye the great agreement by which in the beginning the Asuras were conquered.
Translation
Let all the natural forces join us and overcome our troubles. The slaughter of enemies is very favorite of Trisandhi. O Ye warriors and men strictly adhere to great vow by which the wicked are conquered even at first stroke.
Translation
Over to us let all learned persons come trampling down the foe. A brave general loves enterprise. O heroes, keep the great pledge through which of old, the evil-minded persons were overthrown.
Footnote
Pledge: Resolve to defeat the enemy.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१५−(सर्वे) (देवाः) व्यवहारिणः पुरुषाः (अत्यायन्तु) इण् गतौ। मार्गानतिक्रम्यागच्छन्तु (त्रिषन्धेः) म० २। त्रयीकुशलस्य सेनापतेः (आहुतिः) भक्तिसमर्पणम् (प्रिया) प्रीतिकरी (सन्धाम्) प्रतिज्ञाम् (महतीम्) दृढाम् (रक्षत) पालयत (यया) प्रतिज्ञया (अग्रे) पूर्वम् (असुराः) दुराचारिणः (जिताः) अभिभूताः ॥
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