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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 12
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - याजुषी जगती सूक्तम् - ओदन सूक्त

    सीताः॒ पर्श॑वः॒ सिक॑ता॒ ऊब॑ध्यम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सीता॑: । पर्श॑व: । सिक॑ता: । ऊब॑ध्यम् ॥३.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सीताः पर्शवः सिकता ऊबध्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सीता: । पर्शव: । सिकता: । ऊबध्यम् ॥३.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 12

    पदार्थ -

    १. (राध्यमानस्य ओदनस्य) = पकाये जा रहे ब्रह्मौदन की (इयम् पथिवी एव) = यह पृथिवी ही (कुम्भी भवति)  देगची होती है और (द्यौः अपिधानम्) = धुलोक उस कुम्भी के मुख का छादक पात्र ढकना बनता है। इसप्रकार यह ब्रह्मौदन इस द्यावापृथिवी के सारे अन्तराल को व्यास करके वर्तमान हो रहा है। इसमें सब पिण्डों व पदार्थों का ज्ञान दिया गया है। (सीता:) = कर्षण से उत्पन्न, बीज का जिनमें आवषन होता है, वे लांगल-पद्धतियाँ इस ओदन के विराट् शरीर की (पर्शव:) = पार्श्व-स्थियों हैं । (सिकता:) = रेत:कण (ऊबध्यम) = उदरगत अजीर्ण अन्न के मल के समान हैं। २. (ऋतम्) = सत्य या व्यवस्थित [right] जीवन ही (हस्तावनेजनम्) = हाथ धोने का जल है। (कुल्या) = कुलों के लिए हितकर नीति इस ओदन का (उपसेचनम्) = मिश्रणसाधन-सेचन जल है।

    भावार्थ -

    वेद धुलोक से पृथिवीलोक तक सब पिण्डों का प्रतिपादन करता है। यहाँ 'सीता, सिकता, ऋत व कुल्या' इन सबका प्रतिपादन है।

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