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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त

    ओ॑द॒नेन॑ यज्ञव॒चः सर्वे॑ लो॒काः स॑मा॒प्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओ॒द॒नेन॑ । य॒ज्ञ॒ऽव॒च: । सर्वे॑ । लो॒का: । स॒म्ऽआ॒प्या᳡: ॥३.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओदनेन यज्ञवचः सर्वे लोकाः समाप्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओदनेन । यज्ञऽवच: । सर्वे । लोका: । सम्ऽआप्या: ॥३.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 19

    पदार्थ -

    १. (ओदनेन) = इस ज्ञान के ओदन से [यज्ञैः प्राप्तव्यत्वेन उच्यमाना:-'वचे: विच्चिरूपम्'] (यज्ञवच:) = यज्ञों से प्राप्तव्यरूप में कहे गये (सर्वे लोका:) = सब लोक (समाप्या:) = प्राप्त करने योग्य होते हैं। ज्ञान-प्राप्ति से उन सब उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है, जो लोक कि यज्ञों से प्राप्तव्य हैं। २. यह ओदन वह है (यस्मिन्) = जिसमें (समुद्रः) = अन्तरिक्ष, (द्यौः भूमिः) = द्युलोक व पृथिवीलोक (त्रयः) = तीनों ही (अवरपरम्) = उत्तराधारभाव से-एक नीचे दूसरा ऊपर, इसप्रकार (श्रिता:) = स्थित हैं। इस ओदन में लोकत्रयी का ठीकरूप में ज्ञान दिया गया है। ३. यह ओदन वह है (यस्य) = जिसके जिससे प्रतिपादित-(उच्छिष्टे) = [ऊर्ध्व शिष्टे] प्रलय से भी बचे रहनेवाले प्रभु में (षट् अशीतयः) = [अश् व्यासौं]पूर्व पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, ऊपर-नीचे' इन छह दिशाओं में व्याप्तिवाले इनमें रहनेवाले (देवा:)= सूर्यचन्द्र आदि सब देव (अकल्पन्त) = सामर्थ्यवान् बनते हैं।

    भावार्थ -

    ज्ञान से उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। इस वेदज्ञान में लोकत्रयो का ज्ञान उपलभ्य है। इसमें उस प्रभु का प्रतिपादन है, जिसके आधार से सूर्य आदि सब देव शक्तिशाली बनते हैं। [तस्य भासा सर्वमिदं विभाति]।

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