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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 34

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 34/ मन्त्र 9
    सूक्त - गृत्समदः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-३४

    यस्मा॒न्न ऋ॒ते वि॒जय॑न्ते॒ जना॑सो॒ यं युध्य॑माना॒ अव॑से॒ हव॑न्ते। यो विश्व॑स्य प्रति॒मानं॑ ब॒भूव॒ यो अ॑च्युत॒च्युत्स ज॑नास॒ इन्द्रः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्मा॑त् । न । ऋ॒ते । वि॒ऽजय॑न्ते । जना॑स: । यम् । युध्य॑माना: । अव॑से । हव॑न्ते ॥ य: । विश्व॑स्य । प्र॒ति॒ऽमान॑म् । ब॒भूव॑ । य: । अ॒च्यु॒त॒ऽच्युत् । स: । ज॒ना॒स॒: । इन्द्र॑: ॥३४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्मान्न ऋते विजयन्ते जनासो यं युध्यमाना अवसे हवन्ते। यो विश्वस्य प्रतिमानं बभूव यो अच्युतच्युत्स जनास इन्द्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्मात् । न । ऋते । विऽजयन्ते । जनास: । यम् । युध्यमाना: । अवसे । हवन्ते ॥ य: । विश्वस्य । प्रतिऽमानम् । बभूव । य: । अच्युतऽच्युत् । स: । जनास: । इन्द्र: ॥३४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 34; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    १. हे (जनास:) = लोगो (इन्द्रः स:) = परमैश्वर्यशाली प्रभु वे हैं, (यस्मात् ऋते) = जिनके विना (जनास:) = लोग न (विजयन्ते) = विजय को प्राप्त नहीं करते। वस्तुतः सब विजय प्रभु की ही है 'जयोऽस्मि व्यवसायोऽस्मि, सत्त्वं सत्त्ववतामहम्'। २. प्रभु वे है, (यम्) = जिनको (युध्यमाना:) = युद्ध करते हुए लोग अवसे रक्षण के लिए (हवन्ते) = पुकारते हैं। प्रभु ही युद्ध में हमें शत्रुपराभव की शक्ति प्राप्त कराते हैं। ३. प्रभु वे हैं (य:) = जो (विश्वस्य) = संसार का प्रतिमानम् [An adversary]: प्रतिस्पर्द्धा करनेवाले योद्धा (बभूव) = हैं। सारा संसार हमारे विरुद्ध हो, परन्तु प्रभु का हमें साथ प्राप्त हो तो हम पराजित न होंगे। प्रभु तो वे हैं, (य:) = जो (अच्युतच्युत) = दृढ़-से-दृढ़ [च्यावयितुम् अशक्यम्] भी लोकों को च्युत करनेवाले हैं।

    भावार्थ - प्रभु ही सब विजयों के करनेवाले हैं। सबके रक्षक हैं। अनन्तशक्तिवाले हैं। सब शत्रुओं के पराजेता हैं।

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