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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 5/ मन्त्र 11
    सूक्त - शुक्रः देवता - कृत्यादूषणम् अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - प्रतिसरमणि सूक्त

    उत्त॒मो अ॒स्योष॑धीनामन॒ड्वाञ्जग॑तामिव व्या॒घ्रः श्वप॑दामिव। यमैच्छा॒मावि॑दाम॒ तं प्र॑ति॒स्पाश॑न॒मन्ति॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त्ऽत॒म: । अ॒सि॒ । ओष॑धीनाम् । अ॒न॒ड्वान् । जग॑ताम्ऽइव । व्या॒घ्र: । श्वप॑दाम्ऽइव । यम् । ऐच्छा॑म । अवि॑दाम । तम् । प्र॒ति॒ऽस्पाश॑नम् । अन्ति॑तम् । ॥५..११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तमो अस्योषधीनामनड्वाञ्जगतामिव व्याघ्रः श्वपदामिव। यमैच्छामाविदाम तं प्रतिस्पाशनमन्तितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्ऽतम: । असि । ओषधीनाम् । अनड्वान् । जगताम्ऽइव । व्याघ्र: । श्वपदाम्ऽइव । यम् । ऐच्छाम । अविदाम । तम् । प्रतिऽस्पाशनम् । अन्तितम् । ॥५..११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 5; मन्त्र » 11

    पदार्थ -

    १.हे वीर्यमणे! तू (ओषधीनां उत्तमः असि) = ओषधियों में उत्तम है, सब रोगों को नष्ट करनेवाली-रोगों का आक्रमण ही न होने देनेवाली है। तू इसप्रकार उत्तम है, (इव) = जैसेकि - (जगताम्) = गतिशील पशुओं में (अनड्वान्) = गाड़ी खेंचनेवाला बैल अथवा (इव) = जैसे (श्वपदाम् व्याघ्रः) = हिंस्र पशुओं में व्यान्न । शरीर में सुरक्षित हुआ-हुआ तू ही शरीर-रथ का संचालक है इन्द्रियरूप घोड़ों में तेरी ही शक्ति काम करती है। शरीर में सुरक्षित हुआ-हुआ तू रोगरूप गीदड़ों के लिए व्याघ्र के समान होता है। २. तेरे शरीर में सुरक्षित होने पर (यम् ऐच्छाम तं अविदाम) = 'स्वास्थ्य, नैर्मल्य व ज्ञानदीति' रूप जिन ऐश्वर्यों को हम चाहते हैं, उन्हें प्राप्त करनेवाले बनते हैं। तेरे शरीर में सुरक्षित होने पर हम (प्रतिस्पाशनम्) = [स्पश् to obstruct] शत्रुरूप बाधक को विरोधी के रूप में आक्रमण करनेवाले को अन्तितम्-[अन्त:जातः अस्य] समाप्त किया हुआ प्रास करें-इन शत्रुओं को नष्ट कर पाएँ।

    भावार्थ -

    शरीर में सुरक्षित वीर्य सर्वोत्तम औषध है। यह जीवन की गाड़ी को चलाता है, विघ्नभूत रोगादि को विनष्ट करता है। इसके द्वारा वाञ्छनीय सब ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं और विरोधी तत्त्व विनष्ट होते हैं।

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