अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 17
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - सप्तपदा जगती
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
उ॑द्ध॒र्षिणं॒ मुनि॑केशं ज॒म्भय॑न्तं मरी॒मृशम्। उ॒पेष॑न्तमुदु॒म्बलं॑ तु॒ण्डेल॑मु॒त शालु॑डम्। प॒दा प्र वि॑ध्य॒ पार्ष्ण्या॑ स्था॒लीं गौरि॑व स्पन्द॒ना ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त्ऽह॒र्षिण॑म् । मुनि॑ऽकेशम् । ज॒म्भय॑न्तम् । म॒री॒मृ॒शम् । उ॒प॒ऽएष॑न्तम् । उ॒दु॒म्बल॑म् । तु॒ण्डेल॑म् । उ॒त । शालु॑डम् । प॒दा । प्र । वि॒ध्य॒ । पार्ष्ण्या॑ । स्था॒लीम् । गौ:ऽइ॑व । स्प॒न्द॒ना ॥६.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
उद्धर्षिणं मुनिकेशं जम्भयन्तं मरीमृशम्। उपेषन्तमुदुम्बलं तुण्डेलमुत शालुडम्। पदा प्र विध्य पार्ष्ण्या स्थालीं गौरिव स्पन्दना ॥
स्वर रहित पद पाठउत्ऽहर्षिणम् । मुनिऽकेशम् । जम्भयन्तम् । मरीमृशम् । उपऽएषन्तम् । उदुम्बलम् । तुण्डेलम् । उत । शालुडम् । पदा । प्र । विध्य । पार्ष्ण्या । स्थालीम् । गौ:ऽइव । स्पन्दना ॥६.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 17
विषय - पदा प्रविध्य
पदार्थ -
१. (उद्धर्षिणम्) = अत्यधिक कामी-मिथ्या व्यवहारवाले [हषु अलीके], (मुनिकेशम्) = मुनियों के समान जटाओं को बढ़ाए हुए-ढोंगी, (जम्भयन्तम्) = हिंसन करते हुए, (मरीमृषम्) = बार-बार गुह्याङ्गों को स्पर्श करनेवाले (उपेषन्तम्) = [उप+ईष] अधिक आने-जानेवाले, (उदुम्बलम्) = अत्यधिक भोगी या मारनेवाले (तुण्डेलम) = बन्दर के समान आगे बढ़े हुए मुखवाले (उत) = और (शालुडम्) = घमण्डी पुरुष को हे स्त्रि! तू इसप्रकार (पदा प्रविध्य) = पाँवों से ठोकर मार, (इव) = जैसेकि (स्पन्दना गौ:) = कूदनेवाली गौ (पाष्ण्या) = ऐड़ी से (स्थालीम्) = दूध दुहे जानेवाली हाँडी को आहत करती है।
भावार्थ -
यदि कोई पुरुष कामासक्ति के कारण ढोंगी-सा बना हुआ अपने पुरुषत्व के घमण्ड में स्त्री के साथ अनुचित सम्पर्क करना चाहता है तो स्त्री उसे पादाहत करके उसकी प्रार्थना को ठुकरा दे।
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