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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
    सूक्त - मातृनामा देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त

    दु॒र्णामा॑ च सु॒नामा॑ चो॒भा सं॒वृत॑मिच्छतः। अ॒राया॒नप॑ हन्मः सु॒नामा॒ स्त्रैण॑मिच्छताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दु॒:ऽनामा॑ । च॒ । सु॒ऽनाम॑ । च॒ । उ॒भा । स॒म्ऽवृत॑म् । इ॒च्छ॒त॒:। अ॒राया॑न् । अप॑ । ह॒न्म॒: । सु॒ऽनामा॑ । स्त्रैण॑म् । इ॒च्छ॒ता॒म् ॥६.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दुर्णामा च सुनामा चोभा संवृतमिच्छतः। अरायानप हन्मः सुनामा स्त्रैणमिच्छताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दु:ऽनामा । च । सुऽनाम । च । उभा । सम्ऽवृतम् । इच्छत:। अरायान् । अप । हन्म: । सुऽनामा । स्त्रैणम् । इच्छताम् ॥६.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 4

    पदार्थ -

    १. (दुर्णामा च) = दुष्टरोगाक्रान्त पुरुष और (सुनामा च) = उत्तम रूपादियुक्त सुगुण पुरुष (उभा) = दोनों (संवृतम्) = संवरण को-स्वयंवर पर वरे जाने को (इच्छतः) = चाहते हैं। विवाहित होने की इच्छा स्वाभाविक हैं। रोगी भी विवाहित होना चाहता ही है। २. परन्तु हम इस अवसर पर (अरायान्) = अलक्ष्मीक-उत्तम गुण-सम्पत्तिरहित पुरुष को (अपहन्म:) = दूर भगाते हैं। (सुनामा) = उत्तम गुण-सम्पत्तिवाला यशस्वी पुरुष ही (स्त्रैणम्) = स्त्री-शरीर को [स्त्रियाः सम्बन्थ्यङ्गम्-सा०] (इच्छताम्) = चाहे-वही इसे प्राप्त करें।

    भावार्थ -

    दुर्नामाख्य रोगपीड़ित पुरुष के साथ हम युवति कन्या का सम्बन्ध न करें। अलक्ष्मीक पुरुषों को दूर भगाकर यशस्वी पुरुष से ही उनका सम्बन्ध करें।

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