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  • अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 18
    सूक्त - मातृनामा देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त

    यस्ते॒ गर्भं॑ प्रतिमृ॒शाज्जा॒तं वा॑ मा॒रया॑ति ते। पि॒ङ्गस्तमु॒ग्रध॑न्वा कृ॒णोतु॑ हृदया॒विध॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । ते॒ । गर्भ॑म्। प्र॒ति॒ऽमृ॒शात् । जा॒तम् । वा॒ । मा॒रया॑ति । ते॒ । पि॒ङ्ग: । तम् । उ॒ग्रऽध॑न्वा । कृ॒णोतु॑ । हृ॒द॒या॒विध॑म् ॥६.१८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ते गर्भं प्रतिमृशाज्जातं वा मारयाति ते। पिङ्गस्तमुग्रधन्वा कृणोतु हृदयाविधम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । ते । गर्भम्। प्रतिऽमृशात् । जातम् । वा । मारयाति । ते । पिङ्ग: । तम् । उग्रऽधन्वा । कृणोतु । हृदयाविधम् ॥६.१८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 18

    पदार्थ -

    १. (य:) = जो रोगकृमि (ते) = तेरे (गर्भम्) = गर्भ को-गर्भस्थ सन्तान को (प्रतिमृशात्) = पीड़ित करे, (वा) = अथवा (जातम्) = उत्पन्न हुए-हुए (ते) = तेरे पुत्र को (मारयाति) = मार देता है, (तम्) = उसे यह (उग्रधन्वा) = उद्गुर्ण गतिबाला अथवा भंयकर धनुष से युक्त (पिङ्गः) = गौर सर्षप (हृदयाविधम् कृणोतु) = विद्ध [पीड़ित हृदयवाला] करे। यह सर्षप औषध देवता ही है, इसी से इसे यहाँ 'उग्रधन्वा' कहा है। यह उन गर्भविघातक कृमियों को हृदय में विद्ध करके नष्ट कर डालता है|

    भावार्थ -

    योग्य वैद्य गौर सर्षप के प्रयोग से उन कृमियों को नष्ट करें, जो गर्भ में दोष उत्पन्न कर देते हैं।

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