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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 16
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ऋषभः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ऋषभ सूक्त

    ते कुष्ठि॑काः स॒रमा॑यै कु॒र्मेभ्यो॑ अदधुः श॒फान्। ऊब॑ध्यमस्य की॒टेभ्यः॑ श्वव॒र्तेभ्यो॑ अधारयन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । कुष्ठि॑का: । स॒रमा॑यै । कू॒र्मेभ्य॑: । अ॒द॒धु॒: । श॒फान् । ऊब॑ध्यम् । अ॒स्य॒ । की॒टेभ्य॑: । श्वे॒ऽव॒र्तेभ्य॑: । अ॒धा॒र॒यन् ॥४.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते कुष्ठिकाः सरमायै कुर्मेभ्यो अदधुः शफान्। ऊबध्यमस्य कीटेभ्यः श्ववर्तेभ्यो अधारयन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते । कुष्ठिका: । सरमायै । कूर्मेभ्य: । अदधु: । शफान् । ऊबध्यम् । अस्य । कीटेभ्य: । श्वेऽवर्तेभ्य: । अधारयन् ॥४.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 16

    पदार्थ -

    १. (ते) = उन दोनों ने (कुष्ठिका:) = [A kind of poison] शरीर में उत्पन्न हो जानेवाले विषों को (सरमायै) = सरमा [शुनी] के लिए (अदधुः) = धारण किया। ये विषतुल्य शरीराङ्ग भी कुत्तों के लिए ग्राह्य रसोंवाले बन जाते हैं-वे उन्हें चबाते हुए आनन्द का अनुभव करते हैं। (शफान्) = खुरों को (कूर्मेभ्य:) = कछुओं के लिए (अदभुः)  धारण किया। ये पशुओं के खुर भी इनका भोजन बन जाते हैं। तथा (अस्य) = इस प्रभु की व्यवस्था से पेट में रह जानेवाले (ऊबध्यम) = अजीर्ण अन्न को भी (श्ववर्तेभ्य:) = [श्व: वर्तन्ते] एक-दो दिन जीनेवाले (कीटेभ्य:) = कीटों के लिए (अधारयन्) = धारण किया।

    भावार्थ -

    प्रभु की व्यवस्था से इस संसार में होनेवाले 'कुष्ठिका, शफ, ऊबध्य' आदि मलभूत पदार्थ भी किन्हीं प्राणियों के लिए भोजन बन जाते हैं।

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