अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 4/ मन्त्र 20
गावः॑ सन्तु प्र॒जाः स॒न्त्वथो॑ अस्तु तनूब॒लम्। तत्सर्व॒मनु॑ मन्यन्तां दे॒वा ऋ॑षभदा॒यिने॑ ॥
स्वर सहित पद पाठगाव॑: । स॒न्तु॒ । प्र॒ऽजा: । स॒न्तु॒ । अथो॒ इति॑ । अ॒स्तु॒ । त॒नू॒ऽब॒लम् । तत् । सर्व॑म् । अनु॑ । म॒न्य॒न्ता॒म् । दे॒वा: । ऋ॒ष॒भ॒ऽदा॒यि॑ने ॥४.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
गावः सन्तु प्रजाः सन्त्वथो अस्तु तनूबलम्। तत्सर्वमनु मन्यन्तां देवा ऋषभदायिने ॥
स्वर रहित पद पाठगाव: । सन्तु । प्रऽजा: । सन्तु । अथो इति । अस्तु । तनूऽबलम् । तत् । सर्वम् । अनु । मन्यन्ताम् । देवा: । ऋषभऽदायिने ॥४.२०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 4; मन्त्र » 20
विषय - गाव: प्रजा: तनूबलम्
पदार्थ -
१. इस (ऋषभदायिने) = सर्वव्यापक व सर्वद्रष्टा प्रभु का ज्ञान देनेवाले के लिए (गाव: सन्तु) = इन्द्रियाँ हों, अर्थात् इसकी सब इन्द्रियों सशक्त बनती हैं, (प्रजाः सन्तु) = इसे उत्तम सन्तान प्राप्त हों (अथो) = और (तनूबलम् अस्तु) = इसके शरीर का बल ठीक बना रहे। २. (देवा:) = सूर्य-चन्द्र आदि सब देव ब्रह्मज्ञान देनेवाले के लिए (तत् सर्वम्) = 'इन्द्रियों, प्रजाओं व बल' उन सबको (अनुमन्यन्ताम्) = अनुमत करें। सब देवों की अनुकूलता से ये सब पदार्थ हमें प्राप्त हों।
भावार्थ -
हम परस्पर ब्रह्मज्ञान की चर्चा करते हुए सब देवों की अनुकूलता से उत्तम इन्द्रियों, सन्तानों व शरीर-बल को प्राप्त करें।
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