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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 3/ मन्त्र 23
    सूक्त - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आसुरी बृहती सूक्तम् - ओदन सूक्त

    स य ओ॑द॒नस्य॑ महि॒मानं॑ वि॒द्यात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । य: । ओ॒द॒नस्य॑ । म॒हि॒मान॑म् । वि॒द्यात् ॥३.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स य ओदनस्य महिमानं विद्यात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । य: । ओदनस्य । महिमानम् । विद्यात् ॥३.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 23

    भावार्थ -
    (यः) जो (ओदनस्य महिमानं विद्यात्) ‘ओदन’ रूप प्रजापति की महिमा को जान ले (सः) वह (अल्प इति न ब्रूयात्) ‘थोड़ा’ ऐसा न कहे। (अनुपसैचन इति न) विना उपसेचन या व्यंजन द्रव्य के हैं ऐसा भी न कहे। (इदम्, न) साक्षात् यह दो इस प्रकार निर्देश करके कभी न कहे। (किंच इति न) और कुछ थोड़ा सा और दो ऐसा भी न कहे। अर्थात् ब्रह्मज्ञान को प्रवक्ता के पास जाकर सन्तोष से ग्रहण करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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