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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
    सूक्त - भार्गवो वैदर्भिः देवता - प्राणः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - प्राण सूक्त

    नम॑स्ते प्राण॒ क्रन्दा॑य॒ नम॑स्ते स्तनयि॒त्नवे॑। नम॑स्ते प्राण वि॒द्युते॒ नम॑स्ते प्राण॒ वर्ष॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । ते॒ । प्रा॒ण॒ । क्रन्दा॑य । नम॑: । ते॒ । स्त॒न॒यि॒त्नवे॑ । नम॑: । ते॒ । प्रा॒ण॒ । वि॒ऽद्युते॑ । नम॑: । ते॒ । प्रा॒ण॒ । वर्ष॑ते ॥६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमस्ते प्राण क्रन्दाय नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्ते प्राण विद्युते नमस्ते प्राण वर्षते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । ते । प्राण । क्रन्दाय । नम: । ते । स्तनयित्नवे । नम: । ते । प्राण । विऽद्युते । नम: । ते । प्राण । वर्षते ॥६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 4; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (प्राण) समस्त संसार के प्राणस्वरूप परमेश्वर ! (क्रन्दाय ते नमः) सबको आह्लादित करनेहारे, परम आनंदस्वरूप तुझको नमस्कार है। (स्तनयित्नवे ते नमः) समस्त संसार पर मेघ के समान सुखों, अन्नों, जलों और जीवनों की वर्षा करनेहारे पर्जन्यरूप तुझ प्रजापति को नमस्कार है। हे (प्राण) प्राण ! (ते विद्युते नमः) विद्युत् के समान प्रखर कान्ति से चमकने वाले प्रकाशस्वरूप तुझको नमस्कार है। हे प्राण ! (वर्षते ते नमः) आनंदधाराओं को वर्षण करते हुए तुझे नमस्कार है। यदात्वमथ वर्षस्यथेमाः प्राण ते प्रजाः। आनन्दरूपास्तिष्ठन्ति कामायान्नं भविष्यति॥ प्रश्नोप० २। १०॥ हे प्राण जब तू बरसता है तब ये समस्त तेरी प्रजाएं आनन्द प्रसन्न होती हैं कि खूब न होगा।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भार्गवी वैदर्भिर्ऋषिः। प्राणो देवता। १ शंकुमती, ८ पथ्यापंक्तिः, १४ निचृत्, १५ भुरिक्, २० अनुष्टुबगर्भा त्रिष्टुप, २१ मध्येज्योतिर्जगति, २२ त्रिष्टुप, २६ बृहतीगर्भा, २-७-९, १३-१६-१९-२३-२५ अनुष्टुभः। षडविंशचं सूक्तम्॥

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