अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 1
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
आमि॑नोनि॒ति भ॑द्यते ॥
स्वर सहित पद पाठआऽअमि॑नोन् । इ॒ति । भ॑द्यते ॥१३१.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आमिनोनिति भद्यते ॥
स्वर रहित पद पाठआऽअमिनोन् । इति । भद्यते ॥१३१.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 1
विषय - missing
भावार्थ -
इतना छोटी सी शलाका या मानदण्ड है। पर वह ही (आमिनोति) सब भूमि को माप लेता है। वह (विभिद्यते) स्वयं भी नाना अंशों में बटी होती है। इसी प्रकार राजा की शक्ति मानदण्ड के समान है। वह छोटी होकर भी समस्त पृथ्वी को मापती है। और स्वयं भी नाना खण्डों या विभागों में बंटती है।
टिप्पणी -
‘आमिनो निति भद्यते’ इति श० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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