अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 11
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
ते वृ॒क्षाः स॒ह ति॑ष्ठति ॥
स्वर सहित पद पाठते । वृ॒क्षा: । स॒ह । तिष्ठति ॥१३१.११॥
स्वर रहित मन्त्र
ते वृक्षाः सह तिष्ठति ॥
स्वर रहित पद पाठते । वृक्षा: । सह । तिष्ठति ॥१३१.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 11
विषय - missing
भावार्थ -
(ते) तेरे निमित्त वे समस्त राजागण (वृक्षाः) पृथ्वी को घेर कर उनमें जड़ जमा कर खड़े हुए वृक्षों के समान राज्य जमा कर (तिष्ठन्ति) स्थिर खड़े रहते हैं।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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