अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 9
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
वनि॑ष्ठा॒ नाव॑ गृ॒ह्यन्ति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठवनि॑ष्ठा॒: ॥ न । अव॑ । गृ॒ह्यन्ति॑ ॥१३१.९॥
स्वर रहित मन्त्र
वनिष्ठा नाव गृह्यन्ति ॥
स्वर रहित पद पाठवनिष्ठा: ॥ न । अव । गृह्यन्ति ॥१३१.९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 9
विषय - missing
भावार्थ -
जिस प्रकार खाया हुआ भोजन आतों में अटकता नहीं प्रत्युत पच कर कुछ मल बाहर हो जाता है और शेष अंगों में मांस रुधिर आदि बनकर चला जाता है उसी प्रकार राजा के पास आया धन भी मुक्त होकर पुनः अन्यों के पास चला जाता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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