अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 7
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
श॒फेन॑ इ॒व ओ॑हते ॥
स्वर सहित पद पाठश॒फेन॑ । इ॒व । ओ॑हते ॥१३१.७॥
स्वर रहित मन्त्र
शफेन इव ओहते ॥
स्वर रहित पद पाठशफेन । इव । ओहते ॥१३१.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 7
विषय - missing
भावार्थ -
(शफे) घोड़े के जिस प्रकार खुर भाग में (पीवः) स्थूल मांस भाग (न) नहीं (ओहते) रहता। इसी प्रकार राजा के चरण भाग, सेवक लोगों में अधिक स्थूलता, या भोगविलास नहीं होना चाहिये। अथवा—जिस प्रकार (शफेन) खुरके बल से (पीवः) स्थूल शरीर (ओहते) धारण किया जाता है इसी प्रकार चरण स्थानीय पुरुषों या आज्ञा के द्वारा ऐश्वर्य प्राप्त करता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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