अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 16
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - याजुषी गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
शयो॑ ह॒त इ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठशय॑: । ह॒त: । इ॒व ॥१३१.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
शयो हत इव ॥
स्वर रहित पद पाठशय: । हत: । इव ॥१३१.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 16
विषय - missing
भावार्थ -
वह राज्य में रहता हुआ भी ऐसा प्रसुप्त सत्ता से रहे, मानो (हतः इव) मरसा गया हो, लोग उसे भूलसा जायँ। उसकी तीक्ष्ण शक्ति से उद्विग्न होते रहें।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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