अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 4
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
श॒तं वा॒ भार॑ती॒ शवः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठश॒तम् । वा॒ । भार॑ती॒ । शव॑: ॥१३१.४॥
स्वर रहित मन्त्र
शतं वा भारती शवः ॥
स्वर रहित पद पाठशतम् । वा । भारती । शव: ॥१३१.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 4
विषय - missing
भावार्थ -
(वायोः) वायु के समान तीव्र देग वाले अश्व को नियम में रखने के लिये जिस प्रकार लगामें होती हैं। उसी प्रकार वायु के समान उग्र वेग से जाने वाले और शत्रुरूप वृक्षों को तोड़ने फोड़ने वाले राजा के भी (शतं) सैकड़ों (अभीशवः) रोक थाम करनेहारे साधन हैं। अथवा (शतं अभि-शवः) उसके पास सैकड़ों ‘शव’, बल और क्रिया साधन हैं। वहीं ‘शतक्रतु’ है।
टिप्पणी -
‘शतेवाभारतीशवः’ इति शं० पा०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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