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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 131

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 3
    सूक्त - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    वरु॑णो॒ याति॒ वस्व॑भिः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वरू॑ण॒: । याति॒ । वस्व॑भि: ॥१३१.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वरुणो याति वस्वभिः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वरूण: । याति । वस्वभि: ॥१३१.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    वह (वरुणः) शत्रुओं का वारण करनेहारा राजा और स्वयं घृत पालक (वसुभिः) बसनेवाली प्रजाओं, और वसु, विद्वानों और ऐश्वर्यों से युक्त होकर (याति) प्रयाण करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing

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