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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 131

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 2
    सूक्त - देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा छन्दः - प्राजापत्या गायत्री सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    तस्य॑ अनु॒ निभ॑ञ्जनम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्य॑ । अनु॒ । निभ॑ञ्जनम् ॥१३१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्य अनु निभञ्जनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्य । अनु । निभञ्जनम् ॥१३१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (तस्य) उसी दण्ड के बल से (निभञ्जनम्) शत्रु का आमर्दन, पराजय भी (कर्त) कर डालो। जिस प्रकार दण्ड से मापा जाता है। उसी प्रकार दण्ड से ही मारा भी जा सकता है उसी प्रकार राजशक्ति से भी शत्रु का नाश करो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing

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