अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 19
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अत्य॑र्ध॒र्च प॑र॒स्वतः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअत्य॑र्ध॒र्च । प॑रस्व॒त॑: ॥१३१.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
अत्यर्धर्च परस्वतः ॥
स्वर रहित पद पाठअत्यर्धर्च । परस्वत: ॥१३१.१९॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 19
विषय - missing
भावार्थ -
वह राजा (परस्वत्तः च) परस्वान् नामक जंगली घोड़े से भी (अधि-अर्धः) अधिक बलशाली हो अथवा (परस्वतः) त्वराष्ट्र परराष्ट्र से भी अधिक ऐश्वर्यवान् और समृद्ध हो।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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