अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 8
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
आय॑ व॒नेन॑ती॒ जनी॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआऽअय॑ । व॒नेन॑ती॒ । जनी॑ ॥१३१.८॥
स्वर रहित मन्त्र
आय वनेनती जनी ॥
स्वर रहित पद पाठआऽअय । वनेनती । जनी ॥१३१.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 8
विषय - missing
भावार्थ -
(तेजनी = तेदनी) अग्नि को भड़काने वाली पूणी, (आयवने न) कोयलों को ऊपर नीचे करके जिस प्रकार अग्नि को भड़का देती है या ‘कशा’ जिस प्रकार आग को तीव्र कर देती है उसी प्रकार भेद छेदकर राजा सब को वश करता है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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