अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 131/ मन्त्र 14
सूक्त -
देवता - प्रजापतिर्वरुणो वा
छन्दः - प्राजापत्या गायत्री
सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त
अश्व॑त्थ॒ खदि॑रो ध॒वः ॥
स्वर सहित पद पाठअश्व॑त्थ॒ । खदि॑र: । ध॒व: ॥१३१.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वत्थ खदिरो धवः ॥
स्वर रहित पद पाठअश्वत्थ । खदिर: । धव: ॥१३१.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 131; मन्त्र » 14
विषय - missing
भावार्थ -
वह (अश्वत्थः) अश्व के समान चतुरंग सेना रूप चारों चरणों पर विराजता है। वह (खदिरः) खदिर वृक्ष के समान दृढ़ एवं (खदिरः) अतिस्थिर होकर विराजता है। वह (धवः) उत्तम पुष्पवान् धव नामक वृक्ष के समान सुन्दर, सुभूषित और मनोहर है।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
इस भाष्य को एडिट करें