ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 25/ मन्त्र 19
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - वरुणः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
इ॒मं मे॑ वरुण श्रुधी॒ हव॑म॒द्या च॑ मृळय। त्वाम॑व॒स्युरा च॑के॥
स्वर सहित पद पाठइ॒मम् । मे॒ । व॒रु॒ण॒ । श्रुधि॑ । हव॑म् । अ॒द्य । च॒ । मृ॒ळ॒य॒ । त्वाम् । अ॒व॒स्युः । आ । च॒क्रे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इमं मे वरुण श्रुधी हवमद्या च मृळय। त्वामवस्युरा चके॥
स्वर रहित पद पाठइमम्। मे। वरुण। श्रुधि। हवम्। अद्य। च। मृळय। त्वाम्। अवस्युः। आ। चके॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 25; मन्त्र » 19
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।
अन्वयः
हे वरुण विद्वन् ! अद्यावस्युरहं त्वामाचके प्रशंसामि त्वं मे मम हवं श्रुधि शृणु, मां च मृळय॥१९॥
पदार्थः
(इमम्) प्रत्यक्षमनुष्ठितम् (मे) मम (वरुण) सर्वोत्कृष्टजगदीश्वर विद्वन् वा (श्रुधी) शृणु। अत्र बहुलं छन्दसि श्नोर्लुक् श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि (अष्टा०६.४.१०२) इति हेर्द्ध्यादेशो अन्येषामपि इति दीर्घश्च। (हवम्) आदातुमर्हं स्तुतिसमूहम् (अद्य) अस्मिन् दिने (च) समुच्चये (मृळय) सुखय (त्वाम्) विद्वांसम् (अवस्युः) आत्मनो रक्षणं विज्ञानं चेच्छुः (आ) समन्तात् (चके) प्रशंसामि॥१९॥
भावार्थः
यथेश्वरः खलूपासकैः सत्यप्रेम्णा यां प्रयुक्तां स्तुतिं सर्वज्ञतया यथावच्छ्रुत्वा तदनुकूलतया स्तावकेभ्यः सुखं प्रयच्छति, तथैव विद्वद्भिरपि भवितव्यम्॥१९॥
हिन्दी (5)
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥
पदार्थ
हे (वरुण) सब से उत्तम विपश्चित् ! (अद्य) आज (अवस्युः) अपनी रक्षा वा विज्ञान को चाहता हुआ मैं (त्वाम्) आपकी (आ चके) अच्छी प्रकार प्रशंसा करता हूँ, आप (मे) मेरी की हुई (हवम्) ग्रहण करने योग्य स्तुति को (श्रुधि) श्रवण कीजिये तथा मुझको (मृळय) विद्यादान से सुख दीजिये॥१९॥
भावार्थ
जैसे परमात्मा जो उपासकों द्वारा निश्चय करके सत्य भाव और प्रेम के साथ की हुई स्तुतियों को अपने सर्वज्ञपन से यथावत् सुन कर उनके अनुकूल स्तुति करनेवालों को सुख देता है, वैसे विद्वान् लोग भी धार्मिक मनुष्यों की योग्य प्रशंसा को सुन सुखयुक्त किया करें॥१९॥
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
हे वरुण विद्वन्! अद्य अवस्युः अहं त्वाम् आचके प्रशंसामि त्वं मे मम हवं श्रुधि शृणु मां च मृळय॥१९॥
पदार्थ
हे (वरुण) सर्वोत्कृष्ट जगदीश्वर विद्वन् वा= हे सर्वोत्कृष्ट परमेश्वर या विद्वान्! (अद्य) अस्मिन् दिने=आज, (अवस्युः) आत्मनो रक्षणं विज्ञानं चेच्छुः=अपनी रक्षा वा विज्ञान को चाहता हुआ, (अहम्)=मैं, (त्वाम्) विद्वांसम्=आप विद्वान् की, (आ) समन्तात्=अच्छी प्रकार से, (चके) प्रशंसामि त्वम्=प्रशंसा करता हूँ, (मे) मम=मेरा, (हवम्) आदातुमर्हं स्तुतिसमूहम्=ग्रहण करने योग्य स्तुति समूह का (श्रुधी) शृणु=श्रवण कीजिये, (माम्)=मुझको, (च) समुच्चये=और, (मृळय) सुखय= सुख दीजिये॥१९॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
जैसे परमात्मा निश्चय करके उपासकों द्वारा सत्य भाव और प्रेम के साथ की हुई स्तुतियों को अपने सर्वज्ञपन से यथावत् सुन कर उनके अनुकूल स्तुति करनेवालों को सुख देता है, वैसे ही विद्वानों को भी होना चाहिए॥१९॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
हे (वरुण) सर्वोत्कृष्ट परमेश्वर या विद्वन्! (अद्य) आज (अवस्युः) अपनी रक्षा वा विज्ञान को चाहता हुआ, (अहम्) मैं (त्वाम्) आप विद्वन् की (आ) अच्छी प्रकार से (चके) प्रशंसा करता हूँ। (मे) मेरे (हवम्) ग्रहण करने योग्य स्तुति समूह का (श्रुधी) श्रवण कीजिये। (च) और (माम्) मुझको (मृळय) सुख दीजिये॥१९॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृतः)- (इमम्) प्रत्यक्षमनुष्ठितम् (मे) मम (वरुण) सर्वोत्कृष्टजगदीश्वर विद्वन् वा (श्रुधी) शृणु। अत्र बहुलं छन्दसि श्नोर्लुक् श्रुशृणुपॄकृवृभ्यश्छन्दसि (अष्टा०६.४.१०२) इति हेर्द्ध्यादेशो अन्येषामपि इति दीर्घश्च। (हवम्) आदातुमर्हं स्तुतिसमूहम् (अद्य) अस्मिन् दिने (च) समुच्चये (मृळय) सुखय (त्वाम्) विद्वांसम् (अवस्युः) आत्मनो रक्षणं विज्ञानं चेच्छुः (आ) समन्तात् (चके) प्रशंसामि॥१९॥
विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते।
अन्वयः- हे वरुण विद्वन्! अद्यावस्युरहं त्वामाचके प्रशंसामि त्वं मे मम हवं श्रुधि शृणु, मां च मृळय॥१९॥
भावार्थः(महर्षिकृतः)- यथेश्वरः खलूपासकैः सत्यप्रेम्णा यां प्रयुक्तां स्तुतिं सर्वज्ञतया यथावच्छ्रुत्वा तदनुकूलतया स्तावकेभ्यः सुखं प्रयच्छति, तथैव विद्वद्भिरपि भवितव्यम्॥१९॥
विषय
स्तुतिवाणियाँ
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार प्रभु का दर्शन करनेवाला निवेदन करता है कि हे (वरुण) - सब कष्टों व पापों का निवारण करनेवाले प्रभो! (मे) - मेरी (इमम् , हवम्) - इस पुकार को (श्रुधी) - सुनिए (च) - और (अद्या) - आज ही (मृळय) - मुझे सुखी कीजिए । जीव की सब कामनाएँ अन्ततोगत्वा इसीलिए हैं कि वह कष्टों को दूर करके कल्याण व शान्ति को प्राप्त कर सके । 'गृह , प्रजा , पशुधन' आदि की कामना कष्टनिवारण के लिए होती है ।
२. हे प्रभो! (अवस्युः) - अपने रक्षण की कामनावाला मैं (त्वाम्) - आपको (आ चके) - [कै शब्दे] स्तुत करता हूँ । मैं वासनाओं से अपनी रक्षा करने के लिए आपकी स्तुतिवाणियों का उच्चारण करता हूँ । जहाँ आपका स्तवन होता है वहाँ वासनाओं का प्रवेश नहीं होता , प्रवेश क्या , वासनाएँ वहाँ भस्मीभूत हो जाती हैं । इनकी भस्म पर ही कल्याण के भवन का निर्माण होता है । प्रभु वासनाविनाश द्वारा ही हमारा कल्याण करते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु हमारी पुकार को सुनकर वासनाविनाश द्वारा हमारा रक्षण करें ।
विषय
विद्वान् पुरुष ।
भावार्थ
हे (वरुण) सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर ! राजन् ! ( मे ) मेरे ( इमं ) इस ( हवम् ) स्तुतिवचन, पुकार, स्मरण को ( अद्य ) आज ( श्रुधि ) श्रवण कर ( च ) और ( अद्य ) आज दिन, अब सदा ( त्वं ) तू ही मुझे ( मृळय ) सुखी कर । मैं (अवस्युः) रक्षा और ज्ञान प्राप्त करने का इच्छुक होकर ( त्वाम् ) तेरी ( आचके ) स्तुति करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शुनःशेप आजीगर्तिऋषिः॥ वरुणो देवता ॥ गायत्र्य: । एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(वरुण मे-इमं हवं श्रुधी) हे वरुण परमात्मन् ! मेरे इस हव अभिनाय को सुन (अद्य च मृडय) आज अभी मुझे अपने दर्शनामृत से सुखी कर (अवस्युः-त्वाम्-आचके) रक्षण चाहने वाला तुझे चाहता हूं "आचके कान्तिकर्मा" [निघ० २।६] ॥१९॥
टिप्पणी
"क्षदसे- अश्नासि” [ सायणः ] इति भ्रान्त्या क्रियापदं मतम् !"अविद्या रोगान्द्यकार- विनाशकाय बलाय" [ दयानन्दः ]
विशेष
ऋषिः-आजीगर्तः शुनः शेपः (इन्द्रियभोगों की दौड में शरीरगर्त में गिरा हुआ विषयलोलुप महानुभाव) देवता-वरुणः (वरने योग्य और वरने वाला परमात्मा)
मराठी (1)
भावार्थ
जसा परमात्मा उपासकांद्वारे निश्चयाने, सत्य प्रेमाने केलेली स्तुती आपल्या सर्वज्ञतेने योग्य रीतीने ऐकून अनुकूल स्तुती करणाऱ्यांना सुख देतो तसे विद्वान लोकांनीही धार्मिक माणसांची योग्य प्रशंसा ऐकून त्यांना सुखी करावे. ॥ १९ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Varuna, Lord Supreme of our highest choice, listen to my prayer to-day, be kind and gracious. In search of love and protection, I come and praise and pray.
Subject of the mantra
Then, what kind of that (Varuņa) God is, has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (varuṇa)=quintessential God or scholar, (adya)=today, (avasyuḥ)= desiring my own defense or specific knowledge, (aham)=I, (tvām)=of you scholar, (ā)=well, (cake)=appreciate, (me)=my, (havam)=of receptive doxology, (śrudhī)=listen, (ca)=and (mām)=to me, (mṛḻaya)=provide happiness.
English Translation (K.K.V.)
O Quintessential God or scholar! Today, I desiring my own defense or specific knowledge, appreciate you scholar well. Listen my receptive doxology and provide happiness to me.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
Just as the God, having determined and listened to the praises made by the worshipers with true spirit and love, with His omniscience, gives pleasure to those who praise them accordingly, so should the scholars do.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What is the nature of that Varuna is taught in the 19th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
(1) In the case of God. the meaning is Hear this my call O God (the most acceptable or the Best) and show Thy gracious love today. Desiring protection and knowledge, I long for Thee. (2) The prayer may also be addressed to a wise man of realization who dispels the darkness of ignorance.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(वरुण ) सर्वोत्कृष्ट जगदीश्वर विद्वन् वा । = "O God the Best or a learned person dispeller of the darkness of ignorance. (हवम् ) आदातुमर्ह स्तुतिसमूहम् = Praises or Invocation. (अवस्यु:) आत्मनो रक्षणं विज्ञानं चेच्छुः = Desiring my protection and knowledge.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
As Omniscient God gives true Happiness to His devotees after being glorified by them with true love, learned wise men should also do like that.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Hemanshu Pota
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal