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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 25/ मन्त्र 5
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - वरुणः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    क॒दा क्ष॑त्र॒श्रियं॒ नर॒मा वरु॑णं करामहे। मृ॒ळी॒कायो॑रु॒चक्ष॑सम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒दा । क्ष॒त्र॒ऽश्रिय॑म् । नर॑म् । आ । वरु॑णम् । क॒रा॒म॒हे॒ । मृ॒ळी॒काय॑ । उ॒रु॒ऽचक्ष॑सम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कदा क्षत्रश्रियं नरमा वरुणं करामहे। मृळीकायोरुचक्षसम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कदा। क्षत्रऽश्रियम्। नरम्। आ। वरुणम्। करामहे। मृळीकाय। उरुऽचक्षसम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 25; मन्त्र » 5
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स वरुणः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    वयं कदा मृळीकायोरुचक्षसं नरं वरुणं परमेश्वरं संसेव्य क्षत्रश्रियं करामहे॥५॥

    पदार्थः

    (कदा) कस्मिन्काले (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्तिराजलक्ष्मीम् (नरम्) नयनकर्त्तारम् (आ) समन्तात् (वरुणम्) परमेश्वरम् (करामहे) कुर्य्याम (मृळीकाय) सुखाय (उरुचक्षसम्) बहुविधं वेदद्वारा चक्ष आख्यानं यस्य तम्॥५॥

    भावार्थः

    मनुष्यैः परमेश्वराज्ञां यथावत् पालयित्वा सर्वसुखं चक्रवर्त्तिराज्यं न्यायेन सदा सेवनीयमिति॥५॥

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    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर वह वरुण कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हम लोग (कदा) कब (मृळीकाय) अत्यन्त सुख के लिये (उरुचक्षसम्) जिसको वेद अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं और (नरम्) सबको सन्मार्ग पर चलानेवाले उस (वरुणम्) परमेश्वर को सेवन करके (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्ति राज्य की लक्ष्मी को (करामहे) अच्छे प्रकार सिद्ध करें॥५॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को परमेश्वर की आज्ञा का यथावत् पालन करके सब सुख और चक्रवर्त्ति राज्य न्याय के साथ सदा सेवन करने चाहियें॥५॥

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    विषय

    फिर वह वरुण कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    वयं  कदा मृळीकाय उरुचक्षसं नरं वरुणं (परमेश्वरम्) संसेव्य क्षत्रश्रियं करामहे॥५॥

    पदार्थ

    (वयम्)=हम लोग, (कदा) कस्मिन्काले = कैसे, (मृळीकाय) सुखाय=सुख के लिये, (उरुचक्षसम्) बहुविधं वेदद्वारा चक्ष आख्यानं यस्य तम्= जिसको वेद अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं और (नरम्) नयनकर्त्तारम्=सबको सन्मार्ग दिखाने वाले, (वरुणम्) परमेश्वरम्=परमेश्वर का, (संसेव्य)=अच्छी तरह से सेवन करके, (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्तिराजलक्ष्मीम्= चक्रवर्त्ति राज्य की लक्ष्मी को, (करामहे)[कुर्य्याम]= अच्छे प्रकार प्राप्त कराने वाले हों॥५॥ 

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    मनुष्यों को परमेश्वर की आज्ञा का यथावत् पालन करके सब सुख और चक्रवर्त्ति राज्य न्याय के साथ सदा सेवन करने चाहियें॥५॥

    विशेष

    अनुवादक की टिप्पणी- चक्रवर्त्ति राज्य ऋग्वेद के मन्त्र संख्या (०१.०४.०७) में स्पष्ट किया गया है॥५॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (वयम्) हम लोग (कदा) कैसे (मृळीकाय) सुख के लिये, (उरुचक्षसम्) जिसको वेद अनेक प्रकार से वर्णन करते हैं और (नरम्) सबको सन्मार्ग दिखाने वाले (वरुणम्) परमेश्वर का (संसेव्य) अच्छी तरह से उपासना करके (क्षत्रश्रियम्)  चक्रवर्त्ति राज्य की लक्ष्मी को (करामहे) अच्छे प्रकार प्राप्त कराने वाले हों॥५॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (कदा) कस्मिन्काले (क्षत्रश्रियम्) चक्रवर्त्तिराजलक्ष्मीम् (नरम्) नयनकर्त्तारम् (आ) समन्तात् (वरुणम्) परमेश्वरम् (करामहे) कुर्य्याम (मृळीकाय) सुखाय (उरुचक्षसम्) बहुविधं वेदद्वारा चक्ष आख्यानं यस्य तम्॥५॥
    विषयः- पुनः स वरुणः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः- वयं कदा मृळीकायोरुचक्षसं नरं वरुणं परमेश्वरं संसेव्य क्षत्रश्रियं करामहे॥५॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैः परमेश्वराज्ञां यथावत् पालयित्वा सर्वसुखं चक्रवर्त्तिराज्यं न्यायेन सदा सेवनीयमिति॥५॥

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    विषय

    बल , उन्नति व ज्ञान

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र का विषय - पराङ्मुख व्यक्ति कहता है कि हमारे जीवन में (कदा) - कब वह दिन आएगा जबकि हम (वरुणम्) - उस सब कष्टों का वारण करनेवाले प्रभु को (मृळीकाय) - जीवन को सुखी बनाने के लिए (आकरामहे) - सर्वथा प्राप्त करनेवाले होंगे , जोकि (क्षत्रश्रियम्) - बल का सेवन करनेवाले हैं [क्षत्रं श्रयति] , अर्थात् मनुष्य को सबल करनेवाले हैं , (नरम्) - [नेतारम्] हम सबको आगे ले - चलनेवाले हैं और (उरुचक्षसम्) - बहुतों के देखनेवाले हैं [बहूनां द्रष्टारम्] अथवा विस्तृत ज्ञानवाले हैं । 

    २. जब भी ये प्रभु हमें प्राप्त होंगे , उसी दिन हमारा जीवन सबल , उन्नतिवाला व ज्ञान से परिपूर्ण होकर वास्तविक सुख से युक्त होगा । 

    भावार्थ

    भावार्थ - हम बल , उन्नति व ज्ञान की साधना करके ही वरुण का आराधन कर पाते हैं । 

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    विषय

    वरुण, परमेश्वर, और राजा, के प्रति भक्तों और प्रजाओं की प्रार्थना ।

    भावार्थ

    (मृळीकाय) सुख प्राप्त करने के लिये हम लोग (नरम्) सबके नायक, (वरुणम्) अपने आप चुने गये राजा के समान सब कष्टों के वारक (उरुचक्षसम्) बहुत प्रकार के ज्ञानों और प्रजाजनों के द्रष्टा पुरुष को हम लोग ( कदा ) कब ( क्षत्रश्रियम् ) समस्त बलों का आश्रय, राजा रूप से ( करामहे ) बनावें । अर्थात् सदाही हम द्रष्टा नायक पुरुष को अपना राजा बनावें । इति षोडशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप आजीगर्तिऋषिः॥ वरुणो देवता ॥ गायत्र्य: । एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (मृलीकाय-उरुचक्षसं वरुणम्) सुख तथा आनन्द के लिये 'लौकिक सुखप्राप्ति और मोक्षानन्द की प्राप्ति के लिये महान् द्रष्टा-उदार द्रष्टा सर्वज्ञ वरुण परमात्मा को (कदा क्षत्रश्रियं नरम्-आकरामहे) कब हम क्षत्र-राष्ट्र का श्रयण कर्ता क्षत्रपति "क्षत्रं श्रयति क्षत्रश्रीः-तम्" "क्षत्रं हि राष्ट्रम्" [ऐ० ७।२२] राष्ट्रपति नर-नेता को अङ्गीकार करें या समन्त रूप से करें- बनावें ऐसा सुअवसर जीवन में कब आवेगा शीघ्र आवे- अभी आवे जिसके आश्रय लौकिक सुख- अभ्युदय और निःश्रेयस-अध्यात्म श्रानन्द-मोक्षानन्द प्राप्त कर सकें ॥५॥

    टिप्पणी

    "विमन्यय' क्रोधरहिता बुद्धयः " [ सायण: ]

    विशेष

    ऋषिः-आजीगर्तः शुनः शेपः (इन्द्रियभोगों की दौड में शरीरगर्त में गिरा हुआ विषयलोलुप महानुभाव) देवता-वरुणः (वरने योग्य और वरने वाला परमात्मा)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी परमेश्वराच्या आज्ञेचे यथावत पालन करून सदैव न्यायाने सर्व सुख व चक्रवर्ती राज्य भोगावे. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    How shall we adore and pray to Varuna, lord of universal eye and guide of humanity, for His favour and grace, and when shall we realise the beauty and prosperity of the social order.

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    Subject of the mantra

    Then, what kind of that Varuņa is, this subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (vayam)=We people, (kadā)= how, (mṛḻīkāya)=for pleasure, (urucakṣasam)=whom Vedas describe in many ways, [aur]=and, (naram)=guide to edify all, (varuṇam)=of God, (saṃsevya)= by worshiping well, (kṣatraśriyam)=to lakșhamï (Godess of the wealth) of chakravarti state, (karāmahe)=must be making it obtained well.

    English Translation (K.K.V.)

    How can we, for happiness, which the Vedas describe in many ways and by worshiping the God who shows everyone the right path, get the Lakshmi of Chakravarti kingdom in a good way.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Human beings should always follow the command of the God with all the happiness and the kingdom of Chakravarti with justice.

    TRANSLATOR’S NOTES-

    The Chakravarti kingdom is explained in the Rigveda mantra number (01.04.07).

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is that Varuna (God) is further taught in the 5th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    When shall we for our happiness enjoy the prosperity of the vast and good government by taking shelter in Varuna (God) Who is infallible, the Guide of men and Who is variously glorified in the Vedas.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (क्षवश्रियम् ) चक्रवर्तिराज्यलक्ष्मीम् = The prosperity of vast and good Government. (नरम्) नयनकर्तारम = True Guide of men. (उरुचक्षसम्) उरु बहुविधं वेदद्वारा चक्ष आख्यानं यस्य तम् = Variously glorified or described in the Vedas.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should properly obey the commands of God and administer the vast Government which brings about the welfare of all, with justice.

    Translator's Notes

    चक्षः चक्षिङ्–व्यक्तायां वाचि अदा० अ० दर्शनेऽपि च नरम्-णीञ्-प्रापणे = hence Guide. क्षत्रं हि राष्ट्रम् (ऐतरेय ब्रा० ७.२२) = Here ends the sixteenth Verga.

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