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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 25/ मन्त्र 8
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - वरुणः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    वेद॑ मा॒सो धृ॒तव्र॑तो॒ द्वाद॑श प्र॒जाव॑तः। वेदा॒ य उ॑प॒जाय॑ते॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वेद॑ । मा॒सः । धृ॒तऽव्र॑तः । द्वाद॑श । प्र॒जाऽव॑तः । वेद॑ । यः । उ॒प॒ऽजाय॑ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वेद मासो धृतव्रतो द्वादश प्रजावतः। वेदा य उपजायते॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वेद। मासः। धृतऽव्रतः। द्वादश। प्रजाऽवतः। वेद। यः। उपऽजायते॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 25; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स किं जानातीत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    यो धृतव्रतो मनुष्यः प्रजावतो द्वादश मासान् वेद तथा योऽत्र त्रयोदश मास उपजायते तमपि वेद स सर्वकालावयवान् विदित्वोपकारी भवति॥८॥

    पदार्थः

    (वेद) जानाति (मासः) चैत्रादीन् (धृतव्रतः) धृतं व्रतं सत्यं विद्याबलं येन सः (द्वादश) मासान् (प्रजावतः) बह्व्यः प्रजा उत्पन्ना विद्यन्ते येषु मासेषु तान्। अत्र भूमार्थे मतुप्। (वेद) जानाति। अत्रापि द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (यः) विद्वान् मनुष्यः (उपजायते) यत्किंचिदुत्पद्यते तत्सर्वं त्रयोदशो मासो वा॥८॥

    भावार्थः

    यथा सर्वज्ञत्वात् परमेश्वरः सर्वाधिष्ठानं कालचक्रं विजानाति, तथा लोकानां कालस्य च महिमानं विदित्वा नैव कदाचिदस्यैककणः क्षणोऽपि व्यर्थो नेय इति॥८॥

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    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर वह क्या जानता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    (यः) जो (धृतव्रतः) सत्य नियम, विद्या और बल को धारण करनेवाला विद्वान् मनुष्य (प्रजावतः) जिनमें नाना प्रकार के संसारी पदार्थ उत्पन्न होते हैं (द्वादश) बारह (मासः) महीनों और जो कि (उपजायते) उनमें अधिक मास अर्थात् तेरहवाँ महीना उत्पन्न होता है, उस को (वेद) जानता है, वह काल के सब अवयवों को जानकर उपकार करनेवाला होता है॥८॥

    भावार्थ

    जैसे परमेश्वर सर्वज्ञ होने से सब लोक वा काल की व्यवस्था को जानता है, वैसे मनुष्यों को सब लोक तथा काल के महिमा की व्यवस्था को जानकर इस को एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना चाहिये॥८॥

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    विषय

    फिर वह क्या जानता है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    यः धृतव्रतः मनुष्यः प्रजावतः द्वादश मासान् वेद तथा यः अत्र त्रयोदशः मास उपजायते तम् अपि वेद स सर्वकालावयवान् विदितः उपकारी भवति॥८॥

    पदार्थ

    (यः) विद्वान् मनुष्यः=विद्वान् मनुष्य, (धृतव्रतः) धृतं व्रतं सत्यं विद्याबलं येन सः=सत्य नियम, विद्या और बल को धारण करनेवाला विद्वान्, (मनुष्यः)=मनुष्य, (प्रजावतः) बह्व्यः प्रजा उत्पन्ना विद्यन्ते येषु मासेषु तान्=जिन में नाना प्रकार के संसारी पदार्थ उत्पन्न होते हैं, उन, (द्वादश) मासान्=मासों में, (मासान्) चैत्रादीन्=चैत्रादि मास को, (वेद) जानाति=जानता है, (तथा)=वैसे ही, (यः)=जो, (अत्र)=यहाँ, (त्रयोदशः)=तेरह, (मास)=मासों, (उपजायते) यत्किंचिदुत्पद्यते तत्सर्वं त्रयोदशो मासो वा=जिनमें कुछ उत्पन्न होता है अर्थात् तेरहवें मास में, (तम्)=उसको, (अपि)=भी, (वेद) जानाति=जानता है, (सः)=वह,  (सर्वकालावयवान्)=सभी कालों के अङ्गों में,  (विदितः)=जानता है और (उपकारी)=उपकार, (भवति)=करने वाला होता है॥८॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    जैसे परमेश्वर सर्वज्ञ होने से सब लोक वा काल की व्यवस्था को जानता है, वैसे मनुष्यों को सब लोक तथा काल के महिमा की व्यवस्था को जानकर इस को एक क्षण भी व्यर्थ नहीं खोना चाहिये॥८॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (यः) विद्वान् मनुष्य (धृतव्रतः) सत्य नियम, विद्या और बल को धारण करनेवाला (मनुष्यः) वह मनुष्य (प्रजावतः) जिन में नाना प्रकार के संसारी पदार्थ उत्पन्न होते हैं, उन (द्वादश) मासों में (मासान्) चैत्रादि मास को (वेद)  जानता है, (तथा) वैसे ही (यः) जो (अत्र) यहाँ, (त्रयोदशः) तेरह (मास) मासों (उपजायते) जिनमें कुछ उत्पन्न होता है अर्थात् तेरहवेँ मास में (तम्) उसको (अपि) भी (वेद) जानता है। (सः) वह  (सर्वकालावयवान्) सभी कालों के अङ्गों में (विदितः) जानता है और (उपकारी) उपकारी (भवति) करने वाला होता है॥८॥ 

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (वेद) जानाति (मासः) चैत्रादीन् (धृतव्रतः) धृतं व्रतं सत्यं विद्याबलं येन सः (द्वादश) मासान् (प्रजावतः) बह्व्यः प्रजा उत्पन्ना विद्यन्ते येषु मासेषु तान्। अत्र भूमार्थे मतुप्। (वेद) जानाति। अत्रापि द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (यः) विद्वान् मनुष्यः (उपजायते) यत्किंचिदुत्पद्यते तत्सर्वं त्रयोदशो मासो वा॥८॥
    विषयः- पुनः स किं जानातीत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः- यो धृतव्रतो मनुष्यः प्रजावतो द्वादश मासान् वेद तथा योऽत्र त्रयोदश मास उपजायते तमपि वेद स सर्वकालावयवान् विदित्वोपकारी भवति॥८॥

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- यथा सर्वज्ञत्वात् परमेश्वरः सर्वाधिष्ठानं कालचक्रं विजानाति, तथा लोकानां कालस्य च महिमानं विदित्वा नैव कदाचिदस्यैककणः क्षणोऽपि व्यर्थो नेय इति॥८॥

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    विषय

    सब समयों में

    पदार्थ

    १. (धृतव्रतः) - सब व्रतों का धारण करनेवाला यह वरुण (द्वादश) - बारह (प्रजावतः) - उत्तम - उत्तम पदार्थों की उत्पत्तिवाले (मासः) - महीनों को (वेद) - जानता है और 

    २. वह तेरहवाँ मास (यः) - जो 'अंहस्पति' नामवाला (उपजायते) - गौणरूप से प्रति तृतीय व चतुर्थ वर्ष में इन बारह के समीप उत्पन्न हो जाता है उस मलमास को भी वह वरुण (वेद) - जानता है । 

    ३. गत मन्त्र में उस प्रभु के स्थान से अनवच्छन्न होने का प्रतिपादन था । प्रस्तुत मन्त्र में उस प्रभु की समय से भी अनविच्छिन्नता का प्रतिपादन हुआ है । कोई भी मास प्रभु के ज्ञान से बाहर नहीं है । हम किसी भी स्थान पर किसी भी समय पर कुछ करेंगे तो वे प्रभु जानेंगे ही । प्रभु के ज्ञान से कोई भी वस्तु बाहर नहीं है । 

    भावार्थ

    भावार्थ - वे प्रभु काल से भी अनवच्छिन्न हैं । 

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( यः ) जो परमेश्वर या विद्वान् ( धृतव्रतः ) सब नियमव्यवस्थाओं और धर्मों को धारण करने वाले सूर्य के समान ( प्रजावतः ) नाना उत्पन्न प्रजाओं के स्वामी ( द्वादश ) बारहों ( मासः ) मासों को (वेद) जानता है। और ( यः ) जो ( उपजायते ) बाद में १३ वां मास होता है उसको भी जानता है वह सबको सुख देता है । उसी प्रकार राजा १२ प्रजापालक राजाओं को जानता है और जो उस १३ वें विजिगीषु को, जो सब में प्रबल हो जाता है उसको भी जानता है वही प्रजा को वरुण पद पर चुनने योग्य है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शुनःशेप आजीगर्तिऋषिः॥ वरुणो देवता ॥ गायत्र्य: । एकविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (यः-धृतव्रतः) जो धारण किये संसार नियमों को है वह वरुण परमात्मा या ज्योतिर्वित् राष्ट्रपति है (प्रजावत:-द्वादशमासः-वेद) प्रजावाले प्राणि प्रजाओं के उत्पादक जीवन के आधार वारह मास चैत्र आदि को जानता है (य:-उपजायते वेद) जो ऊपर तेरहवां मास-अधिमास है उसे भी जानता है अपने अधिकार में रखता है वह वरुण परमात्मा है वह ज्योतिर्वित् भी वरने योग्य है ॥८॥

    विशेष

    ऋषिः-आजीगर्तः शुनः शेपः (इन्द्रियभोगों की दौड में शरीरगर्त में गिरा हुआ विषयलोलुप महानुभाव) देवता-वरुणः (वरने योग्य और वरने वाला परमात्मा)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा परमेश्वर सर्वज्ञ असल्यामुळे सर्व गोल व काळाची व्यवस्था जाणतो तसे सर्व माणसांनी सर्व गोल व काळाचा महिमा जाणून एक क्षणही व्यर्थ घालवता कामा नये. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The man of the discipline of science and Dharma who knows the twelve months of the year and the thirteenth which is supplementary every third year, and also knows how they raise the produce of the earth like a father, is the specialist of time, seasons, fertility and production.

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    Subject of the mantra

    Then, what does he wants to know, this subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (yaḥ)=The scholarly man, (dhṛtavrataḥ)=who takes up truthful rule, knowledge and strength, (manuṣyaḥ)=the man, (prajāvataḥ)=in which all kinds of worldly substances are produced, [una]=those, (dvādaśa) =in months, (māsān)=Chaitrᾱ (first month of Vikrama Samvata) etc. months, (tathā)=in the same way, (yaḥ)=that, (atra)=here, (trayodaśaḥ=thirteen, (māsa)=months, (upajāyate)=in which something arises, in other words, in thirteenth month, (tam)=to that, (api)=as well, (veda) =knows, (saḥ) =that, (sarvakālāvayavān)= in all parts of time, (viditaḥ)=knows, [aur]=and, (upakārī)=benevolent, (bhavati)=becomes.

    English Translation (K.K.V.)

    The scholarly man, who takes up truthful rule, knowledge and strength, he knows those as Chaitrᾱ in months as first month of Vikrama Samvata etc., in which all kinds of worldly substances are produced. In the same way, those thirteen months here in which something arises, in other words, in thirteenth month, knows that as well. That knows in all parts of time and becomes benevolent.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Just as the God, being omniscient, knows the law of all worlds and times, so human beings should not waste even a moment by knowing the glory all worlds and times.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What else does he know is taught in the 8th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The learned person who observes the vows of truth, nonviolence etc. and knows the twelve months in which various beings are born (or with their productions) and the thirteenth month which is supplementarily engendered, knowing all the different parts of time, utilizes it properly for doing good to others.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (प्रजावत:) प्रजा उत्पन्ना विद्यन्ते येषु मासेषु तान्- Months in which various beings are born. (धृतवत:) धृतं व्रतं सत्यं विद्यावलं येन सः । = He who has taken the vow of truth or possesses the power of knowledge.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As God being Omniscient knows this cycle of time which is the abode or basis of all, in the same manner, knowing the significance of the worlds and Time, no one should waste even the particle of a moment.

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