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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 14
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - स्वराट्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    सूर॑ उपा॒के त॒न्वं१॒॑ दधा॑नो॒ वि यत्ते॒ चेत्य॒मृत॑स्य॒ वर्पः॑। मृ॒गो न ह॒स्ती तवि॑षीमुषा॒णः सिं॒हो न भी॒म आयु॑धानि॒ बिभ्र॑त् ॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सूरः॑ । उ॒पा॒के । त॒न्व॑म् । दधा॑नः । वि । यत् । ते॒ । चेति॑ । अ॒मृत॑स्य । वर्पः॑ । मृ॒गः । न । ह॒स्ती । तवि॑षीम् । उ॒षा॒णः । सिं॒हः । न । भी॒मः । आयु॑धानि । बभ्र॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूर उपाके तन्वं१ दधानो वि यत्ते चेत्यमृतस्य वर्पः। मृगो न हस्ती तविषीमुषाणः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रत् ॥१४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूरः। उपाके। तन्वम्। दधानः। वि। यत्। ते। चेति। अमृतस्य। वर्पः। मृगः। न। हस्ती। तविषीम्। उषाणः। सिंहः। न। भीमः। आयुधानि। बिभ्रत् ॥१४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 14
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजविषये सैन्यपुरुषरक्षणं तत्फलं चाह ॥

    अन्वयः

    हे राजन् ! यद्य उपाके सूर इव तन्वं दधानस्तेऽमृतस्य वर्पो मृगो न वेगवान् हस्तीव बलिष्ठः सिंहो न भीम आयुधानि बिभ्रच्छत्रुतविषीमुषाणो वि चेति तं त्वं सदा सत्कृत्य रक्ष ॥१४॥

    पदार्थः

    (सूरः) सूर्य्य इव (उपाके) समीपे (तन्वम्) तेजस्विशरीरम् (दधानः) धरन् (वि) (यत्) यः (ते) तव (चेति) ज्ञाप्यते (अमृतस्य) नित्यस्य (वर्पः) रूपम् (मृगः) (न) इव (हस्ती) (तविषीम्) बलयुक्तां सेनाम् (उषाणः) दहन् (सिंहः) (न) इव (भीमः) (आयुधानि) असिभुशुण्डीशतघ्न्यादीनि (बिभ्रत्) धरन् ॥१४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । हे राजन् ! ये दीर्घब्रह्मचर्य्येण सूर्यवत्तेजस्विनो रूपवन्तो वेगवन्तो बलिष्ठाः सिंहवत्पराक्रमिणो धनुर्वेदविदो जनाः स्युस्तत्सेनया शत्रून् विजित्य सर्वत्र सत्कीर्त्या विदितो भव ॥१४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजविषय में सेनायोग्य पुरुषों के रखने और उनके फल को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे राजन् ! (यत्) जो (उपाके) समीप में (सूरः) सूर्य्य के सदृश (तन्वम्) तेजस्वि शरीर को (दधानः) धारण करता हुआ (ते) तुम्हारा (अमृतस्य) नित्य वस्तु के (वर्पः) रूप और (मृगः) हरिण के (न) तुल्य वा वेगवान् (हस्ती) हाथी के तुल्य बलवान् वा (सिंहः) सिंह के (न) तुल्य (भीमः) भयङ्कर (आयुधानि) तलवार, भुशुण्डी, शतघ्न्यादि नामों से प्रसिद्ध आयुधों को (बिभ्रत्) धारण और शत्रुओं की (तविषीम्) बलयुक्त सेना का (उषाणः) दाह करता हुआ (वि, चेति) जनाया जाता है, उसका आप सदा सत्कार करके रक्खो ॥१४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे राजन् ! जो लोग दीर्घ ब्रह्मचर्य से सूर्य्य के समान तेजस्वी रूपवान् और वेगवान् बलिष्ठ, सिंह के सदृश पराक्रमी, धनुर्वेद के जाननेवाले जन हों उनकी सेना से शत्रुओं को जीतकर सब स्थानों में उत्तम कीर्ति से विदित हूजिये ॥१४॥

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    विषय

    उपासक की शक्ति

    पदार्थ

    [१] (सूरः) = ज्ञानीपुरुष (यत्) = जब (ते) = हे प्रभो! आपके (उपाके) = समीप (तन्वं दधानः) = शक्तियों के विस्तार को [तन् विस्तारे] (दधानः) = धारण करता हुआ होता है, उस समय उस ज्ञानीपुरुष से (अमृतस्य) = अमृत आपका (वर्प:) = रूप (विचेति) = विशेषरूप से जाना जाता है। उपासना द्वारा यह बहुत कुछ आप जैसा ही बन जाता है। [२] (मृगः न) = यह जैसे आत्मान्वेषण करनेवाला होता है [मृग अन्वेषणे], उसी प्रकार (हस्ती) = प्रशस्त हाथोंवाला होता है सदा उत्तम कर्मों में लगा रहता है। इस प्रकार यह शत्रुओं के (तविषीम्) = बल को (उषाणः) = नष्ट करनेवाला होता है। यह प्रभु का उपासक (आयुधानि बिभ्रत्) = इन्द्रियाँ, मन व बुद्धिरूप अस्त्रों को धारण करता हुआ सिंहः न शेर के समान (भीमः) = शत्रुओं के लिए भयंकर होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- एक उपासक प्रभु की शक्ति से शक्तिसम्पन्न बन करके काम-क्रोध आदि शत्रुओं के बल को विनष्ट करता है।

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    विषय

    विद्युत्वान् मेघ और सिंह के तुल्य वीर का स्वरूप ।

    भावार्थ

    (सूरः उपाके) सूर्य के समीप जिस प्रकार (तन्वं दधानः) अपने विस्तृत रूप को मेघ धारण करता है तब उसका (अमृतस्य वर्पः चेति) जल का बना स्वरूप प्रकट होता है, वह (तविषीम्) बलवती विद्युत् को (उषाणः) प्रदीप्त करता हुआ (मृगः हस्ती न) शुद्ध श्वेत हस्ती के तुल्य वा (आयुधानि बिभ्रत्) विद्युत् प्रहारों को धारण हुआ (भीमः सिंहः न) भीषण सिंह के समान भासता है और जिस प्रकार (सूरः) स्वयं सूर्य भी (तन्वं दधानः) व्यापक प्रकाश या सूक्ष्म तेजोमय शक्ति को धारण करता हुआ और उसका (अमृतस्य वर्पः चेति) अविनाशी स्वरूप प्रकट होता है। वह (तविषीम् उषाणः) बड़ी बलवती पृथ्वी को किरणों से दग्ध करता हुआ, हस्तवान् किरणवान् होकर हाथी के तुल्य एवं किरणों से जलवायु को शुद्ध करता हुआ होने से ‘मृग’ है और शस्त्रों तुल्य किरणों को धारता हुआ भयानक सिंहवत् तेजस्वी है। उसी प्रकार (यत्) जब (सूरः) तेजस्वी राजा, सेनापति (उपाके) प्रजा के समीप (तन्वं) तेजस्वी शरीर और विस्तृत सेना को (दधानः) धारण पोषण करता हुआ रहता है (अमृतस्य) शत्रुओं से न मारे जाने योग्य (ते) तेरा व तेरे सैन्य का (वर्पः) स्वरूप (चेति) प्रकट होता है, तभी वह (तविषीम्) बलवती, महती सेना को वस्त्र के समान (उषाणः) धारण करता हुआ (मृगः हस्ती न) हाथी पशु के समान विशाल बलवान् एवं (हस्ती) हनन साधनों से सम्पन्न होकर (मृगः) राज्य के कण्टक शोधन करने में समर्थ, और (आयुधानि बिभ्रत्) प्रहार करने योग्य शस्त्रास्त्रों और सैन्यों को धारण पोषण करता हुआ (भीमः सिंहः नः) भयंकर सिंह के समान (वि चेति) प्रतीत होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ६, ८, ९, १२, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ७, १६, १७ विराट् त्रिष्टुप् । २, २१ निचृत् पंक्तिः। ५, १३, १४, १५ स्वराट् पंक्तिः। १०, ११, १८,२० २० भुरिक् पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे राजा ! जे लोक दीर्घ ब्रह्मचर्याने सूर्याप्रमाणे तेजस्वी रूपवान, वेगवान व बलवान, सिंहाप्रमाणे पराक्रमी, धनुर्वेद जाणणारे लोक असतील तर त्यांच्या सेनेने शत्रूंना जिंकून सर्व स्थानी उत्तम कीर्ती पसरवावी. ॥ १४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, warrior hero blazing as the sun, around you the new form of your immortal self manifesting a new character wielding new arms appears like a mighty elephant, a ferocious lion, awfully burning off the lustre of enemy forces.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The criteria of manning the army personnel is defined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O king ! you should duly respect, protect and recruit brave persons in your army, who are near (known to) you Having the strong physical of the body, splendor like the sun, bearing beauty of the immortal soul within, quick like the deer, powerful like the elephant, terrible like the lion, holding weapons like the sword, gun, canons, and others, burn the strong army of the foes.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is simile in the mantra 0 king ! by the army of persons who are splendid, like the sun by the observance of Brahmacharya, beautiful, impetuous, powerful and mighty like the lions, experts in the military science, conquer your enemies and attain good reputation everywhere.

    Foot Notes

    (तविषीम् ) बलयुक्तां सेनाम् । तव इति बलनाम (NG 2, 9) तविषी बलवती सेना | = Powerful or strong army. (उषाणः) दहन् । = Burning.

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