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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क॒विर्न नि॒ण्यं वि॒दथा॑नि॒ साध॒न्वृषा॒ यत्सेकं॑ विपिपा॒नो अर्चा॑त्। दि॒व इ॒त्था जी॑जनत्स॒प्त का॒रूनह्ना॑ चिच्चक्रुर्व॒युना॑ गृ॒णन्तः॑ ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒विः । न । नि॒ण्यम् । वि॒दथा॑नि । साध॑न् । वृषा॑ । यत् । सेक॑म् । वि॒ऽपि॒पा॒नः । अर्चा॑त् । दि॒वः । इ॒त्था । जी॒ज॒न॒त् । स॒प्त । का॒रून् । अह्ना॑ । चि॒त् । च॒क्रुः॒ । व॒युना॑ । गृ॒णन्तः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कविर्न निण्यं विदथानि साधन्वृषा यत्सेकं विपिपानो अर्चात्। दिव इत्था जीजनत्सप्त कारूनह्ना चिच्चक्रुर्वयुना गृणन्तः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कविः। न। निण्यम्। विदथानि। साधन्। वृषा। यत्। सेकम्। विऽपिपानः। अर्चात्। दिवः। इत्था। जीजनत्। सप्त। कारून्। अह्ना। चित्। चक्रुः। वयुना। गृणन्तः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    गृणन्तो विद्वांसोऽह्ना वयुना चक्रुः सप्त कारूञ्चिच्चक्रुरित्था यद्यो वृषा सेकं विपिपानो विदथानि साधन् दिवोऽर्चात् स निण्यं दिवः कविर्न जीजनत् ॥३॥

    पदार्थः

    (कविः) विद्वान् (न) इव (निण्यम्) निश्चितम् (विदथानि) विज्ञातव्यानि (साधन्) साध्नुवन् (वृषा) बलिष्ठः (यत्) यः (सेकम्) सिञ्चनम् (विपिपानः) विशेषेण रक्षन् (अर्चात्) सत्कुर्य्यात् (दिवः) प्रकाशान् (इत्था) अनेन प्रकारेण (जीजनत्) जनयति (सप्त) (कारून्) शिल्पिनः (अह्ना) दिवसेन (चित्) (चक्रुः) कुर्वन्ति (वयुना) प्रज्ञानानि (गृणन्तः) स्तुवन्त उपदिशन्तः ॥३॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । ये जना विद्यापुरुषार्थौ वर्धयन्ति ते सप्तविधाञ्छिल्पविदुषः कृत्वा सर्वाणि कार्य्याणि साधयित्वा कामसिद्धिं कर्त्तुं शक्नुयुः ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (गृणन्तः) स्तुति और उपदेश करते हुए विद्वान् जन (अह्ना) दिन से (वयुना) प्रज्ञानों को (चक्रुः) करते हैं और (सप्त) सात (कारून्) कारीगर जनों को (चित्) भी करते हैं (इत्था) इस प्रकार से (यत्) जो (वृषा) बलिष्ठ (सेकम्) सिञ्चन की (विपिपानः) विशेष करके रक्षा और (विदथानि) जानने के योग्यों को (साधन्) सिद्ध करता हुआ (दिवः) प्रकाशों का (अर्चात्) सत्कार करे, वह (निण्यम्) निश्चित प्रकाशों को (कविः) विद्वान् के (न) सदृश (जीजनत्) उत्पन्न करता है ॥३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो जन विद्या और पुरुषार्थ को बढ़ाते हैं, वे सात प्रकार के कारीगरों को करके सब कार्य्यों को सिद्ध करा कामसिद्धि कर सकें ॥३॥

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    विषय

    ज्ञान के सात दीपक

    पदार्थ

    [१] (कविः न निण्यम्) = जैसे एक क्रान्तदर्शी पुरुष [piercing sight वाला] अन्तर्हित गूढ़ - तत्त्वार्थ को जान लेता है, इसी प्रकार (विदथानि) = ज्ञानों को (साधन्) = सिद्ध करता हुआ, (वृषा) = शक्तिशाली पुरुष (यत्) = जब (सेकम्) = शरीर में सेचनीय सोम को (विपिपान:) = विशेषरूप से पीता हुआ- शरीर में ही वीर्य को सुरक्षित करता हुआ (अर्चात्) उस प्रभु की उपासना करता है वस्तुतः वीर्य का रक्षण ही प्रभु का महान् अर्चन है। प्रभु ने यही हमें सर्वोत्तम धातु प्राप्त कराई है। इसे हम शरीर में धारण करते हैं, तो प्रभु का समादर कर रहे होते हैं । [२] (इत्था) = इस प्रकार वीर्यरक्षण द्वारा (सप्त) = 'दो कान, दो नासिका-छिद्र, दो आँखें व जिह्वा' इन सातों को (दिवः कारून्) = प्रकाश [ज्ञान] उत्पन्न करनेवाला (जीजनत्) = बनाता है और (अह्ना चित्) = एक ही दिन में, अर्थात् अतिशीघ्र, (गृणन्तः) = स्तुति करते हुए ये लोग (वयुना चक्रुः) = प्रज्ञानों को करते हैं अपने अन्दर प्रज्ञानों का सम्पादन करते हैं। सुरक्षित वीर्य ज्ञानाग्नि का ईंधन बनाता है। ज्ञानाग्नि की दीप्ति से इनके प्रज्ञान चमक उठते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- स्वाध्याय में लगने से वीर्यरक्षण सम्भव होता है। वीर्य-रक्षण ही प्रभु का सच्चा आदर है। यह सुरक्षित वीर्य सब ज्ञानेन्द्रियों को शक्तिशाली बनाता है और शीघ्र ही हमारी ज्ञानाग्नि की दीप्ति का कारण बनता है।

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    विषय

    मेघ के दृष्टान्त से ब्रह्मचर्य पालन का उपदेश । अध्यात्म में ईश्वरार्चन का उपदेश ।

    भावार्थ

    (वृषा) वर्षण करने वाला सूर्य (यत्) जिस प्रकार (सेकं) सेचन करने योग्य जल को (विपिपानः) विविध प्रकारों से पान करता हुआ और (विदथानि निण्यं साधन्) प्राप्त करने योग्य जलों को अन्तरिक्ष में गुप्त रूप से साधता हुआ (वृषा) मेघ जिस प्रकार (सेकं विपिपानः) सेचने योग्य जल की विशेष रूप से रक्षा करता हुआ (अर्चात्) पुनः प्रदान करता है उसी प्रकार मतिमान् पुरुष (निण्यं) गुप्त रूप से, शान्ति पूर्वक (विदथानि साधन) नाना ज्ञानों को धनों के समान प्राप्त करता हुआ (वृषा) वाद में बलवान् मेघ वा सूर्य तुल्य ज्ञान प्रकाशक तेजस्वी होकर (सेकं विपिपानः) सेचन करने योग्य वीर्य की विशेष रूप से रक्षा करता हुआ ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ और (सेकं) विद्यार्थी जनों के प्रदान करने, अभिसेचन वा स्नान करने वाले, आत्मा को शुद्ध करने वाले ज्ञानरस को (विपिपानः) विशेष रूप से पान करता हुआ (अर्चात्) अपने गुरुजनों का सदा सत्कार करें, सूर्य जिस प्रकार (सप्त दिवः) सात तेजोमय किरणों को प्रकट करता है उसी प्रकार वह विद्वान् पुरुष भी (दिवः) ज्ञान में (सप्त) सात प्रकार के वा ज्ञान के मार्ग में (सप्त) तर्पण करने, आगे बढ़ने वाले (कारून्) क्रियाशील विद्वानों को (जीजनन्) विद्यादान देकर प्रकट करे । (गृणन्तः) उपदेश करने वाले गुरु और विद्याभ्यासी शिष्यजन (अह्ना चित्) दिन के तुल्य अविनाश प्रकाश वेद से (वयुना) नाना ज्ञानों और कर्मों का (चक्रुः) सम्पादन करें। (२) अध्यात्म में—कवि,जीव (विदधानि) कर्म फलों को प्राप्त करता है वह (वृषा) बलवान् धर्ममेघ होकर आनन्द-रस को पान करता हुआ ईश्वरार्चना करे और प्रकाशमान अपने सातों ज्ञान मार्गों को बलवान् करे । वे सातों उसको ज्ञान देने हारे हों (अह्ना) अविनाशी आत्मा के बल से ज्ञान लाभ करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ६, ८, ९, १२, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ७, १६, १७ विराट् त्रिष्टुप् । २, २१ निचृत् पंक्तिः। ५, १३, १४, १५ स्वराट् पंक्तिः। १०, ११, १८,२० २० भुरिक् पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे लोक विद्या व पुरुषार्थ वाढवितात ते सात प्रकारच्या शिल्पविद्येने सर्व कार्य सिद्ध करून कामसिद्धी करू शकतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The generous man of might and vision accomplishing the performance of various yajnas of science, like a poet, receiving mysteriously but surely the shower of light from above, preserving it with reverence and advancing it, creates knowledge from the light above, and then the scholars, admiring and pursuing it further by day, create seven kinds of science and technology and raise seven orders of scientists and technologists. (The mantra suggests the science of spectrum and development of light technology.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the enlightened persons are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The learned persons always admire and preach and give good knowledge in day time. They train seven kinds of artisans. In this manner, a mighty person protects the method of sprinkling, and accomplishes the things worth knowing, honors and generates positive light of knowledge like a great scholar.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The persons who intensify their knowledge and industriousness, train seven kinds of artisans. Having accomplished many works, they are able to fulfil their noble desires.

    Foot Notes

    (निण्यम् ) निश्चितम् । निष्यम् निर्भीतान्तर्हितनाम (NG 3, 24) = Sure, certain, definite, (वयुना ) प्रज्ञानानि । वयुनम् इति प्रज्ञानाम (NG 3, 9) = Special knowledge. (कारून् ) शिल्पिनः । = Artists or artisans. The seven kinds of artists or artisans have not been enumerated in the commentary. They may be taken as goldsmiths, blacksmiths, painters, technicians, photographers, musicians and weavers.

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