ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 7
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒पो वृ॒त्रं व॑व्रि॒वांसं॒ परा॑ह॒न्प्राव॑त्ते॒ वज्रं॑ पृथि॒वी सचे॑ताः। प्रार्णां॑सि समु॒द्रिया॑ण्यैनोः॒ पति॒र्भव॒ञ्छव॑सा शूर धृष्णो ॥७॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पः । वृ॒त्रम् । व॒व्रि॒ऽवांस॑म् । परा॑ । अ॒ह॒न् । प्र । आ॒व॒त् । ते॒ । वज्र॑म् । पृ॒थि॒वी । सऽचे॑ताः । प्र । अर्णां॑सि । स॒मु॒द्रिया॑णि । ऐ॒नोः॒ । पतिः॑ । भव॑न् । शव॑सा । शू॒र॒ । धृ॒ष्णो॒ इति॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अपो वृत्रं वव्रिवांसं पराहन्प्रावत्ते वज्रं पृथिवी सचेताः। प्रार्णांसि समुद्रियाण्यैनोः पतिर्भवञ्छवसा शूर धृष्णो ॥७॥
स्वर रहित पद पाठअपः। वृत्रम्। वव्रिऽवांसम्। परा। अहन्। प्र। आवत्। ते। वज्रम्। पृथिवी। सऽचेताः। प्र। अर्णांसि। समुद्रियाणि। ऐनोः। पतिः। भवन्। शवसा। शूर। धृष्णो इति ॥७॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 7
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे धृष्णो शूर ! सचेताः शवसा पतिर्भवन्संस्त्वं यथा सूर्य्यो वज्रं प्रहृत्यापो वृत्रं वव्रिवांसं पराहन् समुद्रियाण्यर्णांसि पृथिवीव प्रावत् तथा ते यः प्रजां रक्षित्वा शत्रून् हन्यात्तं त्वं प्रैनोः ॥७॥
पदार्थः
(अपः) जलानि (वृत्रम्) मेघम् (वव्रिवांसम्) विवृतम् (परा) (अहन्) हन्ति (प्र, आवत्) रक्षति (ते) तव (वज्रम्) किरणरूपम् (पृथिवी) (सचेताः) चेतसा सहितः (प्र) (अर्णांसि) उदकानि (समुद्रियाणि) समुद्रार्हाणि (ऐनोः) प्रेरयेः (पतिः) स्वामी (भवन्) (शवसा) बलेन (शूर) (धृष्णो) दृढात्मन् ॥७॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सूर्य्यवत्प्रजाः सुखयन्ति त एव राजकर्मसु प्रेरणीयाः सन्ति ॥७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (धृष्णो) दृढ़ आत्मावाले (शूर) वीरपुरुष ! (सचेताः) चित्त के सहित वर्त्तमान (शवसा) बल से (पतिः) स्वामी (भवन्) होते हुए आप जैसे सूर्य्य (वज्रम्) किरणरूपी वज्र को फटकार (अपः) जलों को प्रकट करते (वृत्रम्) मेघ को (वव्रिवांसम्) फैल प्रकट (परा, अहन्) मारता और (समुद्रियाणि) समुद्र के योग्य (अर्णांसि) जलों की (पृथिवी) पृथिवी के सदृश (प्र, आवत्) रक्षा करता है, वैसे (ते) आपकी जो प्रजा की रक्षा करके शत्रुओं का नाश करे उसको आप (प्र, ऐनोः) प्रेरणा करो ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग सूर्य के सदृश प्रजाओं को सुख देते हैं, वे ही राजकर्म्मों में प्रेरणा करने योग्य होते हैं ॥७॥
विषय
ज्ञान-जलों का प्रेरण
पदार्थ
[१] (अपः) = रेतः कणों को (वव्रिवांसम्) = आवृत्त कर लेनेवाले (वृत्रम्) = कामरूप इस शत्रु को (परा अहन्) = आप सुदूर विनष्ट करते हो । (सचेता:) = चेतनावाला-समझदार (पृथिवी) = अपनी शक्तियों का विस्तार करनेवाला मनुष्य (ते) = आपके दिये हुए (वज्रम्) = इस क्रियाशीलतारूप वज्र को (प्रावत्) = प्रकर्षेण रक्षित करता है। यह इस बात का पूरा ध्यान करता है कि कहीं यह अकर्मण्य न हो जाए। अकर्मण्य होते ही तो वृत्र का आक्रमण होता है और तब वीर्यरक्षण संभव नहीं रहता । [२] हे (शूर) = हमारे शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले (धृष्णो) = धर्षकशक्ति से युक्त प्रभो! आप (शवसा) = अपने बल द्वारा (पतिः भवन्) = हमारे रक्षक होते हुए (समुद्रियाणि) = ज्ञानैश्वर्य के अधारभूत वेदरूप समुद्रों के (अर्णांसि) = ज्ञान जलों को (प्र ऐनो) = प्रकर्षेण प्रेरित करते हैं। आप हमें शक्ति देते व ज्ञान देते हैं। इसी प्रकार आप हमारा रक्षण करते हैं। इस शक्ति व ज्ञान द्वारा ही वृत्र का विनाश सम्भव होता है।
भावार्थ
भावार्थ- समझदार पुरुष क्रियाशील बनकर वासना से बचा रहता है। वासना- विनाश से शक्ति व ज्ञान का वर्धन करके यह ज्ञानसमुद्र के रत्नों को पानेवाला होता है।
विषय
शत्रु को पराजय करने का उपदेश ।
भावार्थ
जिस प्रकार (वज्रं) अन्धकार का निवारक सूर्य या वेगवान् विद्युत् (अपः वब्रिवांस) जलों के आवरण करने वाले मेघ को (पराहन्) विनाश करता है और (समुद्रियाणि अर्णांसि प्र एनोः) आकाश के जलों को नीचे गिरा देता है और (शवसा पतिः भवन्) जल से समस्त संसार का पालक होता है उसी प्रकार हे (शूर) शूरवीर, हे (धृष्णो) शत्रुओं को धर्षण, पराजय करने हारे ! तू (शवसा) अपने बल से (पतिः) प्रजा का पालक (भवन्) होकर (समुद्रियाणि अर्णांसि) समुद्र के जलों के तुल्य सेना के दलों को (प्र एनाः) आगे बढ़ा और (तेवज्रं) तेरा वज्र, शास्त्र बल (वृत्रं) बढ़ते हुए और (अपः वब्रिवांसम्) प्राप्त प्रजाओं वा राज्य कर्म को रोकते हुए शत्रु को (परा अहन्) दूर मार भगावे। और वह (सचेताः) समान चित्त वाला होकर (पृथिवी) भूमि के समान सर्वाश्रय होकर (प्र अवत्) आगे बढ़े वा अच्छी प्रकार रक्षा करे अथवा तेरा शस्त्रास्त्र बल ही रक्षा करे और (पृथिवी सचेताः) समस्त पृथिवी की प्रजा समान चित्त होकर (ते वज्रं प्रावत्) तेरी शस्त्रास्त्र बल की रक्षा करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ६, ८, ९, १२, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ७, १६, १७ विराट् त्रिष्टुप् । २, २१ निचृत् पंक्तिः। ५, १३, १४, १५ स्वराट् पंक्तिः। १०, ११, १८,२० २० भुरिक् पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक सूर्याप्रमाणे प्रजेला सुख देतात त्यांनाच राजकर्मात प्रेरणा दिली पाहिजे. ॥ ७ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, ruler of the world, just as, when thunderous rays of the sun break the dark cloud holding waters of rain, the earth rejoices and rivers flow to the sea, so O mighty one, all-aware and intrepidable hero, be the master protector and promoter ruler with your strength and power and, by virtue of the centrifugal force of your power and law, break open the dark strongholds of energy and action, and let the freedom and vitality of humanity flow in action unto the ocean of eternal Divinity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The do's for enlightened persons are elaborated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O firm and brave king ! you are of a noble mind and a conscious lord. Inspire and encourage that man who destroys enemies and protects your subjects, like the sun thrashes the cloud with its thunderbolt of rays. The clouds hold the water while the earth holds them in the oceans.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
They alone should be appointed for administrative works, who make all people happy like the sun.
Foot Notes
(वृत्तम् ) मेघम् । वृत्त इति मेघनाम (NG 1, 10) Cloud. (वज्रम् ) किरणरूपम् । = Thunderbolt in the form of the rays. (शवसा ) बलेन । शव इति बलनाम (NG 2, 9) = With strength. (अर्णान्सि) उदकानि । अर्ण इति उदकनाम (NG 1, 12) = Waters. (प्रएनोः) प्रेरयेः । = Prompt or encourage.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal