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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 16/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    विश्वा॑नि श॒क्रो नर्या॑णि वि॒द्वान॒पो रि॑रेच॒ सखि॑भि॒र्निका॑मैः। अश्मा॑नं चि॒द्ये बि॑भि॒दुर्वचो॑भिर्व्र॒जं गोम॑न्तमु॒शिजो॒ वि व॑व्रुः ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्वा॑नि । श॒क्रः । नर्या॑णि । वि॒द्वान् । अ॒पः । रि॒रे॒च॒ । सखि॑ऽभिः । निऽका॑मैः । अश्मा॑नम् । चि॒त् । ये । बि॒भि॒दुः । वचः॑ऽभिः । व्र॒जम् । गोऽम॑न्तम् । उ॒शिजः॑ । वि । व॒व्रु॒रिति॑ वव्रुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वानि शक्रो नर्याणि विद्वानपो रिरेच सखिभिर्निकामैः। अश्मानं चिद्ये बिभिदुर्वचोभिर्व्रजं गोमन्तमुशिजो वि वव्रुः ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वानि। शक्रः। नर्याणि। विद्वान्। अपः। रिरेच। सखिऽभिः। निऽकामैः। अश्मानम्। चित्। ये। बिभिदुः। वचःऽभिः। व्रजम्। गोऽमन्तम्। उशिजः। वि। वव्रुरिति वव्रुः ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 16; मन्त्र » 6
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! ये वायवोऽश्मानं चिदिव बिभिदुर्गोमन्तं व्रजमुशिज इव न्यायं वि वव्रुस्तैर्निकामैः सखिभिः सह यः शक्रो विद्वान् विश्वानि नर्याण्यपो वचोभी रिरेच स एव पृथिवीं भोक्तुमर्हति ॥६॥

    पदार्थः

    (विश्वानि) सर्वाणि (शक्रः) शक्तिमान् (नर्याणि) नृषु साधूनि (विद्वान्) (अपः) कर्म्माणि (रिरेच) रिणक्ति (सखिभिः) मित्रैः (निकामैः) नित्यः कामो येषान्तैः (अश्मानम्) मेघम् (चित्) इव (ये) (बिभिदुः) भिन्दन्ति (वचोभिः) वचनैः (व्रजम्) (गोमन्तम्) बह्व्यो गावो विद्यन्ते यस्मिंस्तम् (उशिजः) कामयमानाः (वि) (वव्रुः) ॥६॥

    भावार्थः

    अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। सूर्य्यो मेघमिव दुष्टनिवारका गोपाला व्रजाद् गा इवाऽन्यायाद् विमोचयितारः सखायो यस्य भवेयुः स नरो भूपतिर्भवितुमर्हति ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (ये) जो पवन (अश्मानम्) जैसे मेघ को (चित्) वैसे (बिभिदुः) विदीर्ण करते हैं (गोमन्तम्) बहुत गौओं से युक्त (व्रजम्) गौओं के स्थान की (उशिजः) कामना करते हुओं के समान न्याय को (वि, वव्रुः) अस्वीकार करते हैं, उन (निकामैः) नित्य कामनावाले (सखिभिः) मित्रों के साथ जो (शक्रः) सामर्थ्यवाला (विद्वान्) विद्वान् (विश्वानि) सम्पूर्ण (नर्याणि) मनुष्यों में उत्तम (अपः) कर्मों को (वचोभिः) वचनों से (रिरेच) पृथक् करता है, वही पृथिवी के भोगने के योग्य है ॥६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमावाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। सूर्य्य जैसे मेघ का वैसे दुष्टों के निवारण करनेवाले वा गोपाल लोग जैसे व्रज अर्थात् गौओं के बाड़े से गौओं को वैसे अन्याय से पृथक् करनेवाले जिस पुरुष के मित्र होवें, वह मनुष्य राजा होने के योग्य है ॥६॥

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    विषय

    प्रभु द्वारा शक्तिकणों का हमारे साथ मेल

    पदार्थ

    [१] (शक्रः) = सर्वशक्तिमान् प्रभु (विश्वानि) = सब (नर्याणि विद्वान्) = नरहित साधनभूत बातों को जानता हुआ (निकामैः) = प्रभुप्राप्ति की प्रबल कामनावाले (सखिभिः) = मित्रभूत जीवों के साथ (अपः रिरेच) = वीर्यकणों को [आप रेतो भूत्वा] मिलाता है [to join, mix रिच्] । वस्तुतः इन वीर्यकणों से ही सब हित सिद्ध होते हैं। जीवन-भवन की नीव ये वीर्यकण ही हैं। [२] ये जो उपासक (वचोभिः) = स्तुति-वचनों द्वारा (अश्मानं चित्) = पत्थर के समान दृढ़ भी वासना को (बिभिदु:) = विदीर्ण करते हैं, वे (उशिज:) = मेधावी प्रभुप्राप्ति की कामनावाले पुरुष (गोमन्तम्) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाले (व्रजम्) = वाड़े को (विवव्रुः) = वासना के आच्छादन से रहित करते हैं, अर्थात् इन्द्रियों को वासनाओं से मुक्त करते हैं। अपने को वासनाओं से मुक्त करके ही तो वे वीर्यरक्षण कर पाते हैं। इस वासना को विनष्ट करने का सर्वोत्तम साधन ज्ञानवाणियों द्वारा प्रभु का उपासन है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे जीवनों को मंगलमय बनाने के लिए प्रभु हमारे साथ वीर्यकणों को जोड़ते हैं। इन वीर्यकणों के रक्षण के लिए प्रभु की उपासना नितान्त आवश्यक है।

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    विषय

    मेघवत् शत्रु दल में भेद के प्रयोग का उपदेश ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार वायुगण (वचोभिः) गर्जनों से (अश्मानं) मेघ को (बिभिदुः) छिन्न भिन्न करते हैं और जिस प्रकार (उशिजः) कान्तिमान् किरणगण या विद्युतें (गोमन्तं व्रजं वि वव्रुः) किरणों से युक्त नित्य गतिशील सूर्य या गर्जना रूप वाणीयुक्त मेघ को घेरती है । और जिस प्रकार (निकामैः सखिभिः) खूब कान्तिमान् सहयोगी किरणों वा मरुतों द्वारा (शक्रः) शक्तिमान् सूर्य (अपः रिरिचे) जलों का अन्तरिक्ष से वर्षाता है उसी प्रकार (ये) जो विद्वान् शक्तिमान् पुरुष (वचोभिः) अपने उत्तम वचनों, आज्ञाओं और प्रवचनों, प्रज्ञाओं से (अश्मानं) प्रस्तर या मेघ के तुल्य दृढ़ प्रजा के भोक्ता राजा को भी (बिभिदुः) भेद नीति से तोड़ डालते हैं और जो (उशिजः) धन, मान आदि की कामना करने वाले लोग (गोमन्तं व्रजं) गौओं से पूर्ण बाड़े के तुल्य (गोमन्तं व्रजं) भूमि के स्वामी, सर्वोपगम्य शत्रु के ऊपर जा पड़ने वाले प्रबल नायक को (वि वव्रः) विशेष रूप से स्वीकार करते हैं उन (निकामैः) नित्य कामनावान् (सखिभिः) मित्रवर्गों सहित (विद्वान्) ज्ञानी (शक्रः) शक्तिमान् राजा (विश्वानि नर्याणि) सब मनुष्यों के हित कार्यों को करे और (अपः रिरेच) उत्तम २ कर्म करे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः। इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१, ४, ६, ८, ९, १२, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप् । ७, १६, १७ विराट् त्रिष्टुप् । २, २१ निचृत् पंक्तिः। ५, १३, १४, १५ स्वराट् पंक्तिः। १०, ११, १८,२० २० भुरिक् पंक्तिः॥ विंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमावाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. सूर्य जसा मेघ दूर करतो तसे दुष्टांचे निवारण करणारे व गोपाल जसे गोठ्यातून गाई बाहेर काढतो तसा अन्याय दूर करणारे, ज्या पुरुषाचे मित्र असतील तो माणूस राजा होण्यायोग्य असतो. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, world ruler, commanding knowledge and power, exhausts all the possibilities of human action with his dedicated friends who, even with words of command, break down adamantine resistance and, passionate for action, open up and reveal the hidden treasures of wealth and energy of nations, like cowherds releasing cows from the stalls or winds breaking the clouds and releasing the waters.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of a king are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The winds dissipate the clouds for rains and the cowherds desiring the well-fare of the cows take them out for grazing. Likewise, the mighty and learned men alone are able to rule over the earth. With the cooperation and assistance received from the loving and all time friends, they always get justice and perform all beneficial acts, which is not mere lip service to them.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    That man can become a king or protector of the people who has good friends, who destroys the wicked like the sun, dissipates the clouds. As a milkman takes out the cows from cowshed to the pasture lands, such a leader keep people away from in justice.

    Foot Notes

    (अश्मानम् ) मेघम् | अश्मा इति मेघनाम (NG 1, 10) = Cloud, (अपः ) कर्माणि । अप इति कर्मनाम (NG 2, 1) = Acts.

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