ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 42/ मन्त्र 11
तमु ष्टुहि यः स्वि॒षुः सु॒धन्वा॒ यो विश्व॑स्य॒ क्षय॑ति भेष॒जस्य॑। यक्ष्वा॑ म॒हे सौ॑मन॒साय॑ रु॒द्रं नमो॑भिर्दे॒वमसु॑रं दुवस्य ॥११॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । स्तु॒हि॒ । यः । सु॒ऽइ॒षुः । सु॒ऽधन्वा॑ । यः । विश्व॑स्य । क्षय॑ति । भे॒ष॒जस्य॑ । यक्ष्व॑ । म॒हे । सौ॒म॒न॒साय॑ । रु॒द्रम् । नमः॑ऽभिः । दे॒वम् । असु॑रम् । दु॒व॒स्य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु ष्टुहि यः स्विषुः सुधन्वा यो विश्वस्य क्षयति भेषजस्य। यक्ष्वा महे सौमनसाय रुद्रं नमोभिर्देवमसुरं दुवस्य ॥११॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ऊँ इति। स्तुहि। यः। सुऽइषुः। सुऽधन्वा। यः। विश्वस्य। क्षयति। भेषजस्य। यक्ष्वा। महे। सौमनसाय। रुद्रम्। नमःऽभिः। देवम्। असुरम्। दुवस्य ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 42; मन्त्र » 11
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ रुद्रविषयमाह ॥
अन्वयः
हे राजन् विद्वन् वा ! यः स्विषुः सुधन्वा शत्रूञ्जयति यो विश्वस्य मध्ये भेषजस्य प्रवृत्तिं क्षयति निवासयति तं महे सौमनसाय स्तुहि सत्कर्माणि यक्ष्वा तमु देवं रुद्रमसुरं च महे सौमनसाय नमोभिर्दुवस्य ॥११॥
पदार्थः
(तम्) (उ) (स्तुहि) (यः) (स्विषुः) शोभना इषवो यस्य सः (सुधन्वा) शोभनं धनुर्यस्य सः (यः) (विश्वस्य) समग्रस्य जगतः (क्षयति) निवसति निवासयति वा (भेषजस्य) औषधस्य (यक्ष्वा) सङ्गमय प्राप्नुहि वा। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (महे) महते (सौमनसाय) शोभनस्य मनसो भावाय (रुद्रम्) दुष्टानां रोदयितारम् (नमोभिः) अन्नादिभिः (देवम्) दिव्यगुणम् (असुरम्) मेघम् (दुवस्य) सेवस्व ॥११॥
भावार्थः
हे राजन् ! ये शस्त्रास्त्रप्रक्षेपणाय युद्धविद्यायां कुशला वैद्यविद्यायां निपुणा दुष्टानां दण्डप्रदाश्च जनाः स्युस्तान् स्तुत्वा सत्कर्म्मसु नियोज्य सम्यक् परिचर्य सर्वाणि राजकृत्यान्यलङ्कुर्य्याः ॥११॥
हिन्दी (4)
विषय
अब रुद्रविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे राजन् अथवा विद्वान् ! (यः) जो (स्विषुः) सुन्दर वाणों से युक्त (सुधन्वा) उत्तम धनुष् वाला शत्रुओं को जीतता है और (यः) जो (विश्वस्य) सम्पूर्ण जगत् के मध्य में (भेषजस्य) ओषधि की प्रवृत्ति का (क्षयति) निवास करता वा निवास कराता है (तम्) उसकी (महे) बड़े (सौमसनाय) श्रेष्ठ मन के भाव के लिये (स्तुहि) स्तुति कीजिये और श्रेष्ठ कर्म्मों को (यक्ष्वा) मिलाइये वा प्राप्त हूजिये उस (उ) ही (देवम्) श्रेष्ठ गुणों से युक्त (रुद्रम्) और दुष्टों के रुलानेवाले (असुरम्) मेघ को बड़े श्रेष्ठ मन के भाव के लिये (नमोभिः) अन्नादिकों से (दुवस्य) सेवन कीजिये ॥११॥
भावार्थ
हे राजन् ! जो शस्त्र और अस्त्रों के चलाने के लिये युद्धविद्या में चतुर, वैद्यविद्या में निपुण और दुष्टों के दण्ड देनेवाले जन होवें, उनकी स्तुति कर अच्छे कर्म्मों में नियुक्त कर और अच्छे प्रकार सेवन कर समस्त राजकृत्यों को पूर्ण करो ॥११॥
विषय
वीर पुरुष का आदर । रुद्र का रहस्य । वैद्यवत् वीर जन स्त्रियोंवत् उत्तम नदियों नहरों का उपयोग ।
भावार्थ
भा०-(यः) जो ( स्विषुः ) उत्तम वाणों वाला उत्तम इच्छावान् ( सुधन्वा ) उत्तम धनुष का स्वामी और उत्तम जल वाला, है जो ( विश्वस्य भेषजस्य ) सब प्रकार के औषध का ( क्षयति ) स्वामी है, उस (रुद्रं) दुष्टों को रुलाने वाले और रोगों को दूर करनेवाले, ( देवम्) विजिगीषु, विद्वान्, ज्ञानवान् दानशील, ( असुरं ) बलवान् और प्राणप्रद पुरुष को (महे सौमनसाय ) बड़े भारी सुख, शान्ति युक्त चित्त बनाये रखने के लिये (यक्ष्व) आदर करो और उसकी ( नमोभिः ) आदर सत्कारों, अन्नों और शस्त्रों सहित ( दुवस्य ) परिचर्या कर । उत्तम धनुर्धर और वाणवान् पुरुष दुष्टों को रुलाने से रुद्र है, वैद्य रोग दूर करने से रुद्र ( रुग्-द्र) है । वैद्य की इच्छा और जल सदा उत्तम, स्वच्छ, रोगरहित हों, वह विद्वान् और प्राणों में बल देने वाला हो । धनुर्धारी, के वाण, धनुष उत्तम हों, सब कष्टहर ऐश्वर्य का स्वामी, विजिगीषु बलवान् हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१, ४, ६, ११, १२, १५, १६, १८ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, ७, ८,९, १३,१४ त्रिष्टुप् । १७ याजुषी पंक्ति: । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥
Bhajan
https://youtu.be/r2yRFxnXdhY?si=HIOv7_KWf1YsqK0Q
गीतकार वादक एवं गायक;-
ललित मोहन साहनी
विडियो निर्माण:-
अदिति शेठ
प्रिय वैदिक श्रोताओ आज बिटिया अदिति नै 88 वें वैदिक भजन का निर्माण किया है जो आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ।
🙏 आज का वैदिक भजन 🙏 1065
रुद्र की स्तुति कर
ओ३म् तमु॑ ष्टुहि॒ यः स्वि॒षुः सु॒धन्वा॒ यो विश्व॑स्य॒ क्षय॑ति भेष॒जस्य॑ ।
यक्ष्वा॑ म॒हे सौ॑मन॒साय॑ रु॒द्रं नमो॑भिर्दे॒वमसु॑रं दुवस्य ॥
ऋग्वेद 5/42/11
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर,
रोग पीड़ा दु:ख हरे,
उसे प्रेम नमन-प्रदान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
सत्य-उपदेशों का दाता,
सौमनस्य से यजन कर,
ना स्तुति से रीझता,
वो प्रेम भूखा, नमन कर,
उसे प्रसूनांजलि की भेंट कर,
प्रेमी रुद्र को मान तू कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
एक हाथ में तीर कमान रखें,
दूजे में रखता भेषज,
नष्ट करता आततायी,
को मगर है दीन-सेवक,
सिसकते पश्चातापी हृदय को,
सांत्वना देता मगर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
रोग पीड़ा दु:ख हरे,
उसे प्रेम नमन-प्रदान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
रुद्र देता दुष्ट को दण्ड,
श्रेष्ठ को प्रेमोपहार,
शिष्ट अपनी नम्रता से,
पाता है अखूट प्यार,
प्रेम उसको देके उसका,
प्रेम अमृत पान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
रोग पीड़ा दु:ख हरे,
उसे प्रेम नमन-प्रदान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
राग :- केदार
राग का गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर,
ताल कहरवा 8 मात्रा
सौमनस्य = पारस्परिक सद्भाव, प्रसन्नता
रुद्र = शिव का एक रूप जो शिष्टों का कल्याणकारी और दुष्टों का नाशक है
प्रसूनांजलि = हथेली में प्रेम पुष्प
अखूट = अत्यधिक, बहुत
भेषज = रोगनाशक दवा,
Vyakhya
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित श्री ललित साहनी का स्वाध्याय- सन्देश :-- 👇👇
रुद्र की स्तुति कर
हे मानव !तू रुद्र की स्तुति कर। रुद्र परमेश्वर का ही एक नाम है। वह रुद्र इस कारण कहाता है क्योंकि सबको सत्य-उपदेश देता है, दु:ख रोग आदि को दूर करता है और अन्यायी दुष्ट जनों को दंड देकर रुलाता है। उसके एक हाथ में तीर कमान है तो दूसरे हाथ में भेषज है।वह गर्वीले से गर्विले आतातायी के गर्व को चूर करता है। वह बड़े से बड़े नरसंहारक का संहार करता है। दूसरी ओर वह दर्द से कराह रहे आतुरों के दर्द को हरने वाला है। पीड़ितों के घाव को भरने वाला है । उसके पास हर रोग की दवा है उसके पास प्रत्येक सन्ताप की औषध है।
किसी सांसारिक ऐश्वर्य की हानि होने पर उभरते हुए मानसिक सन्ताप को वही हरता है। किसी प्रियजन के वियुक्त हो जाने पर अनुभूत होती हुई अंतःस्थल की मार्मिक वेदना से वही उद्धार करता है। कोई महापाप हो जाने पर पश्चातापसे सिसकते हृदयों को वही सांत्वना देता है।
महान सौमनस्य को पाने के लिए भी उस रुद्र का यजन कर। उसके यजन से तेरे मन में किसी के प्रति उत्पन्न होने वाले समस्त दुर्भावना दुर्विचार और वैमनस्य आंधी से तिनकों के समान उड़ जाएंगे। जब तू यह सोचेगा कि सब मानव उसी रुद्र के अमृत पुत्र हैं, तब पारस्परिक दौहार्द्र लुप्त होकर सौहार्द्र की भावना तुझमें हिलोरे लेने लगेंगीं। स्मरण रख वह रुद्र 'असुर' है, प्राण शक्ति का प्रदाता है, संजीवन रस पिलाने वाला है।
उसकी तू नमस्कारों द्वारा परिचर्या कर। दिखावे की स्थिति से वो रीझने वाला नहीं है। वह तो नमन का, हार्दिक प्रेम का, भूखा है। उसके प्रति तू विनम्र हो जा, विनत हो जा, नमस्कारों की प्रसूनांजलि का उपहार उसे प्रदान कर।तेरी भेंट स्वीकार होगी। तू कृतकृत्य हो जाएगा। तू रुद्र की वन्दना कर।
विषय
'स्विषुः सुधन्वा' प्रभु
पदार्थ
[१] (तं उ) = उस प्रभु को ही (ष्टुहि) = तू स्तुत कर, उस प्रभु का ही स्तवन करनेवाला बन, (यः) = जो (स्विषुः) = उत्तम वाणोंवाला व (सुधन्वा) = उत्तम धनुष्वाला है। जो उत्कृष्ट अस्त्रों को प्राप्त कराके हमें शत्रुओं के विजय के योग्य बनाता है । वस्तुतः हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणाएँ ही उत्तम बाण हैं, प्रभु का 'ओ३म्' नाम ही धनुष् है 'प्रणवो धनुः'। इनके द्वारा ही हम सब वासनारूप शत्रुओं का पराजय कर पाते हैं। [२] उस प्रभु का स्तवन कर (यः) = जो (विश्वस्य) = सब भेषजस्य रोगों के औषध के (क्षयति) = ऐश्वर्यवाले हैं। वस्तुतः प्रभु नाम-स्मरण ही सब रोगों का औषध बन जाता है। जिस समय एकाग्रता से प्रभु नाम-स्मरण चलता है उस समय रोग तो भाग ही जाते हैं । [३] (महे सौमनसाय) = महान् सौमनस्य के लिये मनः प्रसाद की प्राप्ति के लिये (रुद्रं यक्ष्वा) = उस सब रोगों का द्रावण करनेवाले प्रभु की उपासना कर। प्रभु का सम्पर्क चित्तशुद्धि के द्वारा सौमनस्य का साधन बनता है। (नमोभिः) = नमन के द्वारा (असुरम्) = [असु क्षेपणे] सब वासनाओं का विक्षेपण करनेवाले (देवम्) = प्रकाशमय प्रभु को (दुवस्य) = तू पूजनेवाला बन । प्रभु का पूजन तेरे समीप वासनाओं को न आने देगा।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का स्तवन ही हमें सब रोगों व वासनाओं से बचाकर मनः प्रसाद प्राप्त कराता है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा! जे युद्धात शस्त्र अस्त्र चालविण्यात कुशल, वैद्यकविद्येमध्ये निपुण, दुष्टांना दंड देणारे असतील तर त्यांची स्तुती करून चांगल्या कर्मात नियुक्त करावे व सम्यक प्रकारे सेवन करून संपूर्ण राज्यकार्ये करावीत. ॥ ११ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Praise and exalt him who wields the strong bow and sharp arrow in support of life and shelters the creative, corrective and protective forces of the world. Do good work in cooperation with the great and magnanimous people, and honour and serve with homage and holy offerings Rudra, lord of power, justice and punishment, brilliant and generous giver of life and energy.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The nature of brave persons is told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O king or learned person ! praise that Rudra (causing the wicked to weep) who has good arrow (for the wicked. Ed.) and good love to noble persons. Ed.) and who handles or stores all sanitary materials and drugs for proper use. Praise him for great and good mind and be always engaged in doing good deeds. Serve that divine and life-giver like the cloud with reverence and good food etc.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O king ! you should praise and engage in good deeds those persons, who are well-versed in the military science related to the use of arms and missiles. They are dexterous in the Ayurveda (medical science) and punish the wickeds. Serve them well and adorn royal duties.
Foot Notes
(क्षयति) निवसति निवासयति वा । क्षि-निवास -गत्योः (तुदा० )। = Lives or causes others to live. (यक्ष्वा ) सङ्गमय प्राप्नुहि वा । अत्र द्वग्चोतस्तिड इति दीर्घः । यज -देवपूजा सङ्गति करणदानेषु अत्र सङ्गतिकरणार्थं प्रधानता । = Unite, Get. (नमोभिः ) अन्नादिभिः नमः इति अन्नाम (NG 2, 7) णम-प्रह्वीभावे (भ्वा०)। = With good food etc.
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