ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 42/ मन्त्र 12
दमू॑नसो अ॒पसो॒ ये सु॒हस्ता॒ वृष्णः॒ पत्नी॑र्न॒द्यो॑ विभ्वत॒ष्टाः। सर॑स्वती बृहद्दि॒वोत रा॒का द॑श॒स्यन्ती॑र्वरिवस्यन्तु शु॒भ्राः ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठदमू॑नसः । अ॒पसः॑ । ये । सु॒ऽहस्ताः॑ । वृष्णः॑ । पत्नीः॑ । न॒द्यः॑ । वि॒भ्व॒ऽत॒ष्टाः । सर॑स्वती । बृ॒ह॒त्ऽदि॒वा । उ॒त । रा॒का । द॒श॒स्यन्तीः॑ । व॒रि॒व॒स्य॒न्तु॒ । शु॒भ्राः ॥
स्वर रहित मन्त्र
दमूनसो अपसो ये सुहस्ता वृष्णः पत्नीर्नद्यो विभ्वतष्टाः। सरस्वती बृहद्दिवोत राका दशस्यन्तीर्वरिवस्यन्तु शुभ्राः ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठदमूनसः। अपसः। ये। सुऽहस्ताः। वृष्णः। पत्नीः। नद्यः। विभ्वऽतष्टाः। सरस्वती। बृहत्ऽदिवा। उत। राका। दशस्यन्तीः। वरिवस्यन्तु। शुभ्राः ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 42; मन्त्र » 12
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वत्कर्त्तव्यशिक्षाविषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! येऽपसो दमूनसः सुहस्ता वृष्णो विभ्वतष्टा नद्य इव उत बृहद्दिवा राका सरस्वतीव दशस्यन्तीः शुभ्राः पत्नीर्वरिवस्यन्तु तेऽतुलं सुखमाप्नुवन्तु ॥१२॥
पदार्थः
(दमूनसः) दान्ताः (अपसः) सुकर्म्माणः (ये) (सुहस्ताः) शोभनेषु कर्म्मसु येषान्ते (वृष्णः) वीर्यवन्तः (पत्नीः) भार्याः (नद्यः) नद्य इव (विभ्वतष्टाः) विभुनेश्वरेण निर्मिताः (सरस्वती) विज्ञानवती वाक् (बृहद्दिवा) बृहती द्यौर्विद्याप्रकाशो यस्यां सा (उत) (राका) राति ददाति सुखं या सा। राकेति पदनामसु पठितम्। (निघं०५.५) (दशस्यन्तीः) इष्टान् कामान् कामान् ददति (वरिवस्यन्तु) सेवन्ताम् (शुभ्राः) शुद्धस्वरूपाचाराः ॥१२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। कन्या वराश्च यदा ब्रह्मचर्य्येण विद्याः पूर्णा युवावस्था च परस्परस्य परीक्षा च भवेत्तदा स्वयंवरेण विवाहेन पतिपत्न्यौ भूत्वा सौभाग्यवन्तो भवन्तु ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वत्कर्त्तव्यशिक्षविषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (ये) जो (अपसः) उत्तम कर्म्म करने (दमूनसः) देने (सुहस्ताः) और उत्तम कर्म्मों में हाथ लगानेवाले (वृष्णः) पराक्रम से युक्त और (विभ्वतष्टाः) व्यापक ईश्वर से रचे गये जन (नद्यः) नदियों के सदृश (उत) और (बृहद्दिवा) बड़ा विद्या का प्रकाश जिसमें ऐसी (राका) सुख को देनेवाली (सरस्वती) विज्ञानयुक्त वाणी के सदृश (दशस्यन्तीः) अभीष्ट मनोरथ-मनोरथ को देती हुई और (शुभ्राः) सुन्दर स्वरूप तथा उत्तम आचरण करनेवाली (पत्नीः) विवाहित स्त्रियों का (वरिवस्यन्तु) सेवन करें, वे अत्यन्त सुख को प्राप्त होवें ॥१२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। कन्या और वर जब ब्रह्मचर्य्य से विद्यायें पूर्ण, युवावस्था और परस्पर की परीक्षा होवे, तब स्वयंवर विवाह से पति और पत्नी होकर सौभाग्यवान् होते हैं ॥१२॥
विषय
वीर पुरुष का आदर । रुद्र का रहस्य । वैद्यवत् वीर जन स्त्रियोंवत् उत्तम नदियों नहरों का उपयोग ।
भावार्थ
भा०- ( ये ) जो ( दमूनसः ) दानशील, मन को दमन करने वाले ( अपसः) उत्तम कर्मकुशल ( सु-हस्ताः ) उत्तम सिद्धहस्त पुरुष और (वृष्णः ) बलवान् पुरुष की ( पत्नीः ) स्त्रियों के तुल्य ( नद्यः ) नदियें, जिनको ( विभ्वतष्टाः ) अधिक शक्तिशाली शिल्पियों ने बनाया है । ( बृहद्-दिवा ) बड़ी दीप्ति से युक्त (सरस्वती ) वाणी के तुल्य अति वेगवती विद्युत् ( उत ) और ( राका ) सुख देने वाली स्त्री, ये सब ( शुभ्राः ) शुभ्रवर्ण सुशोभित और ( दशस्यन्तीः) इष्ट कामनाओं को देने वाली होकर ( वरिवस्यन्तु ) हमें सम्पन्न करें और हम उनका सेवन करें, उनको प्राप्त कर मुख लाभ करें ।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१, ४, ६, ११, १२, १५, १६, १८ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, ७, ८,९, १३,१४ त्रिष्टुप् । १७ याजुषी पंक्ति: । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
प्रभु के यथार्थ पूजक
पदार्थ
[१] (वरिवस्यन्तु) = प्रभु का पूजन तो ये करते हैं जो [क] (दमूनस:) = दान्त मनवाले हैं या दमनयुक्त मनवाले हैं, [ख] (अपस:) = कर्मशील हैं, (सुहस्ताः) = कर्मों को कुशलता से करनेवाले हैं, अनाड़ीपन से करनेवाले नहीं। [ग] (वृष्णः पत्नी:) = जो शक्तिशाली पुरुष की पत्नी हैं, अर्थात् जो अपने अवासनात्मक व्यवहार से पति को सशक्त बनाये रखती हैं। (नद्यः) स्तवन की वृत्तिवाली हैं [नद् शब्दे] (विम्वतष्टाः) = कुछ उदार हृदय से कार्यों को करनेवाली हैं [तक्ष् धातु से तष्टं] संकुचित हृदयवाली नहीं हैं। [२] वे पत्नियाँ प्रभु की पूजिका हैं जो [घ](बृहद् दिवः) = बहुत प्रकाशवाली (सरस्वती) = वाग्देवी ही हैं, अर्थात् जिनके सब शब्द समझदारी का परिचय देते हैं । (उत) = और [ङ] (राका) = पूर्ण चन्द्रवाणी रात्रि के समान सदा (दशस्यन्तीः) = प्रकाश को देनेवाली हैं और (शुभ्राः) = अत्यन्त शुभ्र जीवनवाली हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु की उपासना हमारे जीवन को दान्तमनवाला व कुशलता से कार्यों को करनेवाला बनाती है। उपासना करनेवाली पत्नी का जीवन वासनाशून्य, उदार, प्रकाशमय व शुभ्र होता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. कन्या व वर जेव्हा ब्रह्मचर्यपूर्वक विद्या शिकून युवावस्थेत परस्पर परीक्षा करतात तेव्हा स्वयंवर विवाह करून पती -पत्नी बनून सौभाग्यवान बनतात. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May those who are generous at heart, noble at work, liberal of hand, bold and bountiful, motherly women, streams of water flowing within bounds of divinity, vastly illuminative, perennially flowing with sweetness, blissful like a moonlit night, ever giving without reserve, pure and immaculate, we pray, bless us.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of learned persons are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men ! those persons enjoy infinite happiness who are men of self-control and good deeds, whose hands are (busy Ed.) in noble actions and who are virile. They serve women who are benevolent like the rivers created by God, are like the refined and enlightened speech, and are endowed with great light of knowledge. They bestow great happiness, fulfil noble desires and are perfectly, pure in character and conduct.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Let bachelors and virgins after completing their education with Bramacharya, become youthful and know well one another, should enter into wedlock by the method of Svayamvara (self- choice) as wife and husband and should enjoy all good fortunes.
Foot Notes
(दमूनसः ) दान्ताः । दमूना: - दममना वा । दानमनावा, दान्तमना वा (NKT 4, 1, 5) । = Men of self-control. (सरस्वती) विज्ञानवती वाक् । सरस्वतीति वाङ्नाम (NG 1, 11)। = Enlightened speech. (वृहद्दिवा ) वृहती द्यविद्याप्रकाशो यस्यां सा । = Endowed with the great light of knowledge. (राका) एति ददाति सुखं या सा । राकेति पदनाम (NG 5, 5) रा-दाने (अदा० )। = She who bestows happiness. (दशस्यन्तीः ) इष्टान् कामान्कामान्ददीता = Those who fulfil noble desires.
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