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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 42/ मन्त्र 16
    ऋषिः - अत्रिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्रैष स्तोमः॑ पृथि॒वीम॒न्तरि॑क्षं॒ वन॒स्पतीँ॒रोष॑धी रा॒ये अ॑श्याः। दे॒वोदे॑वः सु॒हवो॑ भूतु॒ मह्यं॒ मा नो॑ मा॒ता पृ॑थि॒वी दु॑र्म॒तौ धा॑त् ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ए॒षः । स्तोमः॑ । पृ॒थि॒वीम् । अ॒न्तरि॑क्षम् । वन॒स्पती॑न् । ओष॑धीः । रा॒ये । अ॒श्याः॒ । दे॒वःऽदे॑वः । सु॒ऽहवः॑ । भू॒तु॒ । मह्य॑म् । मा । नः॒ । मा॒ता । पृ॒थि॒वी । दुः॒ऽम॒तौ । धा॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रैष स्तोमः पृथिवीमन्तरिक्षं वनस्पतीँरोषधी राये अश्याः। देवोदेवः सुहवो भूतु मह्यं मा नो माता पृथिवी दुर्मतौ धात् ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। एषः। स्तोमः। पृथिवीम्। अन्तरिक्षम्। वनस्पतीन्। ओषधीः। राये। अश्याः। देवःऽदेवः। सुऽहवः। भूतु। मह्यम्। मा। नः। माता। पृथिवी। दुःऽमतौ। धात् ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 42; मन्त्र » 16
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! देवोदेवस्सुहवस्त्वं य एषः स्तोमो राये पृथिवीमन्तरिक्षमोषधीर्वनस्पतींश्च प्राप्नोति तं त्वं प्राश्याः स मह्यं सुखकरो भूतु यत इयं पृथिवी मातेव नो दुर्म्मतौ मा धात् ॥१६॥

    पदार्थः

    (प्र) (एषः) (स्तोमः) श्लाघनीयो मेघो वह्निर्वा (पृथिवीम्) भूमिम् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (वनस्पतीन्) वटाऽश्वत्थादीन् (ओषधीः) यवाद्याः (राये) धनाय (अश्याः) प्राप्नुयाः (देवोदेवः) विद्वान्विद्वान् (सुहवः) सुष्ठुग्रहणदानः (भूतु) भवतु (मह्यम्) (मा) निषेधे (नः) अस्मान् (माता) जननीव पालिका (पृथिवी) (दुर्म्मतौ) दुष्टायाँ बुद्धौ (धात्) दध्यात् ॥१६॥

    भावार्थः

    सर्वे स्त्रीपुरुषा विद्वांसो भूत्वा विद्युन्मेघादिविद्यां गृह्णीयुर्यत इयं युष्मान् मातृवत् पालयेद्यथा माता सुशिक्षया स्वसन्तानानुत्तमान् करोति तथैव मेघवृष्टिविद्यया युक्ता भूमिरुत्तमानि शस्यादीनि जनयति ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वद्विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (देवोदेवः) विद्वान् विद्वान् (सुहवः) उत्तम प्रकार ग्रहण करनेवाले और दाता आप और जो (एषः) यह (स्तोमः) प्रशंसा करने योग्य मेघ वा वह्नि (राये) धन के लिये (पृथिवीम्) भूमि (अन्तरिक्षम्) आकाश और (ओषधीः) यव आदि औषधियाँ तथा (वनस्पतीन्) वट और अश्वत्थ आदि वनस्पतियों को प्राप्त होता है उसको आप (प्र, अश्याः) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये वह (मह्यम्) मेरे लिये सुखकारक (भूतु) होवे जिससे यह (पृथिवी) पृथिवी (माता) माता के सदृश पालन करनेवाली (नः) हम लोगों को (दुर्म्मतौ) दुष्टबुद्धि में (मा) नहीं (धात्) धारण करे ॥१६॥

    भावार्थ

    सब स्त्री और पुरुष विद्वान् होकर बिजुली और मेघ आदि की विद्या को ग्रहण करें जिससे यह विद्या आप लोगों की माता के सदृश पालना करे और जैसे माता उत्तम शिक्षा से अपने सन्तानों को उत्तम करती है, वैसे ही मेघवृष्टिविद्या से युक्त भूमि उत्तम अन्न आदिकों को उत्पन्न करती है ॥१६॥

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    विषय

    राजाज्ञा की व्यापकता और मान्यता हो ।

    भावार्थ

    भा०—( एषः स्तोमः ) यह अधिकार सूचक वचन ( राये ) ऐश्वर्य को बढ़ाने के लिये (पृथिवीम्, अन्तरिक्षम्, वनस्पतीः, ओषधीः प्र अश्याः) पृथिवी, अन्तरिक्ष, वनस्पतियों और ओषधियों को भी अच्छी प्रकार व्यापे, वे भी अधिकार में हों, राजा उनसे कर संग्रह कर राष्ट्र की सम्पत्ति बढ़ा सके । ( देवः-देवः ) प्रत्येक करप्रद पुरुष, (मह्यं ) मुझ राजा के लिये ( सुहवः) सुखपूर्वक उत्तम कर देने वाला ( भूतु ) हो, अर्थात् कर वसूली में राजा को कठिनाई न पड़े। ( पृथिवी माता ) पृथिवी या उसमें रहने वाली जनता माता के समान हितकारिणी होकर (नः) हमें (दुर्मतौ ) दुष्ट संकल्प में ( मा धात् ) न रक्खें, अर्थात् प्रजा के अप-व्यवहार राजा को कठोर और अत्याचारी न बना देवें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१, ४, ६, ११, १२, १५, १६, १८ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, ७, ८,९, १३,१४ त्रिष्टुप् । १७ याजुषी पंक्ति: । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दुर्मति से दूर

    पदार्थ

    [१] (एषः स्तोमः) = यह मेरा स्तवन (पृथिवीं अन्तरिक्षम्) = पृथिवी व अन्तरिक्ष को (प्र अश्या:) = प्रकर्षेण व्याप्त करे। मैं सब अन्नों की दात्री इस पृथिवी के महत्त्व को समझें। जलवर्षण के द्वारा अन्नों के उत्पादक अन्तरिक्ष के महत्त्व को भी समझँ। मेरा यह स्तोम (वनस्पतीन्) = वनस्पतियों को और (ओषधीः) = ओषधियों को व्याप्त करे। मैं इन वनस्पतियों व ओषधियों के महत्त्व को समझकर, इनका ठीक प्रयोग करता हुआ (रथे) = ऐश्वर्य के लिये होऊँ । इन सब चीजों के ठीक प्रयोग पर ही स्वास्थ्यरूप आन्तर सम्पत्ति व बाह्य सम्पत्ति निर्भर है। [२] (देव: देवः) = सृष्टि का प्रत्येक देव (मह्यम्) = मेरे लिये (सुहवः भूतु) = सुगमता से पुकारने योग्य हो । इन देवों की उचित आराधना से मेरा जीवन 'सत्य, शिव व सुन्दर' बने। यह (माता पृथिवी) = सब अन्नों के देनेवाली मातृस्थानापन्न पृथिवी (नः) = हमें (दुर्मतौ) = दुर्मति में (मा धात्) = मत धारण करे। इससे प्राप्त अन्नों का ठीक प्रयोग करते हुए हम सुमतिवाले ही हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम पृथिवी अन्तरिक्ष, वनस्पति, ओषधि व अन्य सब सृष्टि के देवों की महिमा को समझते हुए इनके ठीक प्रयोग से ऐश्वर्यशाली बनें व सुमति- सम्पन्न हों ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सर्व स्त्री-पुरुषांनी विद्वान बनून विद्युत व मेघ इत्यादींची विद्या ग्रहण करावी. ज्यामुळे ही विद्या मातेप्रमाणे पालन करते. जशी माता उत्तम शिक्षणाने संतानांना उत्तम करते तसे मेघवृष्टी विद्येने युक्त भूमी उत्तम अन्न इत्यादी उत्पन्न करते. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May this song of celebration ring over the earth, resound across the sky, and vibrate among the trees and herbs for the production of wealth. May the lord supreme, God of the divinities of nature and humanity, be kind to me and listen to my invocation and prayer. May the mother earth be kind and never ill-disposed to us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the learned persons are elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! you are enlightened and giver of joy and your quality of giving and acceptance are very good. Utilize properly those admirable cloud or fire which goes to the earth, sky, trees like Peepal and barley and other crops for the sake of the prosperity. Let it be ever bestower of happiness upon me; let not the earth which is like mother to us, put us into evil thoughts.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Let all the men and women acquire the knowledge of the science of power and energy cloud etc., so that this knowledge may guard you like a mother. As a highly educated cherishing mother makes her children very ideal by giving good education, in the same manner, with the knowledge acquired by people about the clouds and rains (meteorology. Ed.), earth produces very good crops.

    Foot Notes

    (स्तोमः) श्लाधनीयो मेघो वह्निर्वा । स्तोम-श्लाधायाम् (चुरा० )। = Admirable cloud or fire. (सुहवः) सुष्ठुग्रहणदानः । हु-दानादनयोः आदाने च (जुहो० ) अत्र दानादानार्थकः । = One whose quality of acceptance and giving are very good.

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