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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 42/ मन्त्र 18
    ऋषिः - अत्रिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सम॒श्विनो॒रव॑सा॒ नूत॑नेन मयो॒भुवा॑ सु॒प्रणी॑ती गमेम। आ नो॑ र॒यिं व॑हत॒मोत वी॒राना विश्वा॑न्यमृता॒ सौभ॑गानि ॥१८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । अ॒श्विनोः॑ । अव॑सा । नूत॑नेन । म॒यः॒ऽभुवा॑ । सु॒ऽप्रनी॑ती । ग॒मे॒म॒ । आ । नः॒ । र॒यिम् । व॒ह॒त॒म् । आ । उ॒त । वी॒रान् । आ । विश्वा॑नि । अ॒मृ॒ता॒ । सौभ॑गानि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    समश्विनोरवसा नूतनेन मयोभुवा सुप्रणीती गमेम। आ नो रयिं वहतमोत वीराना विश्वान्यमृता सौभगानि ॥१८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। अश्विनोः। अवसा। नूतनेन। मयःऽभुवा। सुऽप्रनीती। गमेम। आ। नः। रयिम्। वहतम्। आ। उत। वीरान्। आ। विश्वानि। अमृता। सौभगानि ॥१८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 42; मन्त्र » 18
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मयोभुवा सुप्रणीती अध्यापकोपदेशकौ ! यौ युवां नो रयिमा वहतमुत वीराना वहतमपि च विश्वान्यमृता सौभागान्या वहतं तयोरश्विनोर्नूतनेनावसा वयं विश्वान्यमृता सौभगानि सङ्गमेम ॥१८॥

    पदार्थः

    (सम्) (अश्विनोः) अध्यापकोपदेशकयोः (अवसा) रक्षणेन (नूतनेन) (मयोभुवा) सुखं भावुकौ (सुप्रणीती) सुष्ठु प्रगता नीतिर्याभ्यां तौ (गमेम) प्राप्नुयाम (आ) (नः) अस्मान् (रयिम्) श्रियम् (वहतम्) प्रापयतम् (आ) (उत) अपि (वीरान्) श्रेष्ठान् शूरान् शौर्यादिगुणोपेतान् (आ) (विश्वानि) समग्राणि (अमृता) नित्यानि (सौभगानि) शोभनानामैश्वर्याणां भावरूपाणि ॥१८॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! विद्वद्रक्षिता बोधिताः सन्तो यूयं श्रियमुत्तममनुष्यसहायेन सर्वाण्यैश्वर्य्याणि प्राप्नुतेति ॥१८॥ अत्र विश्वेदेवरुद्रविद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति द्विचत्वारिंशत्तमं सूक्तमेकोनविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (मयोभुवा) सुख के करनेवालो (सुप्रणीती) उत्तम प्रकार वर्त्ती गई नीति जिनसे ऐसे अध्यापक और उपदेशक जनो ! जो आप दोनों (नः) हम लोगों के लिये (रयिम्) लक्ष्मी को (आ, वहतम्) प्राप्त कराइये (उत) भी (वीरान्) श्रेष्ठ शूरता आदि गुणों से युक्त शूरवीर जनों को (आ) प्राप्त कराइये और भी (विश्वानि) सम्पूर्ण (अमृता) नित्य (सौभगानि) सुन्दर ऐश्वर्य्यों के भावरूप को (आ) प्राप्त कराइये उन (अश्विनोः) अध्यापक और उपदेशकों के (नूतनेन) नवीन (अवसा) रक्षण से हम लोग सम्पूर्ण नित्य सुन्दर ऐश्वर्य्यों के भावरूपों को (सम्, गमेम) उत्तम प्रकार प्राप्त होवें ॥१८॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! विद्वानों से रक्षित और बोध को प्राप्त हुए आप लोग लक्ष्मी और मनुष्यों के सहाय से सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यों को प्राप्त हूजिये ॥१८॥ इस सूक्त में विश्वेदेव रुद्र और विद्वानों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह बयालीसवाँ सूक्त और उन्नीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-हम लोग ( अश्विनोः ) विद्वान् स्त्री पुरुष, अध्यापक उपदेशक वा रथी और सारथि इनके ( नूतनेन ) नये, ( मयोभुवा ) सुखकारी (अवसा ) रक्षण, और ( सु-प्रणीती ) उत्तम, सुखकर नीति से ( गमेम ) जीवनमार्ग तय करें । वे दोनों मिलकर ( नः ) हमें ( रयिम् आ वहतम् ) उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करावें, वे ( वीरान् ) वीरों को ( विश्वानि) समस्त प्रकार के ( अमृतानि सौभगानि ) अविनश्वर उत्तम ऐश्वर्य प्राप्त करावें । एकोनविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१, ४, ६, ११, १२, १५, १६, १८ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, ७, ८,९, १३,१४ त्रिष्टुप् । १७ याजुषी पंक्ति: । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    प्राणसाधना के लाभ

    पदार्थ

    [१] प्राणसाधना को करते हुए हम (अश्विनोः) = प्राणापान के (अवसा) = रक्षण से (संगमेम) = संगत हों, हमें प्राणापान द्वारा किया जानेवाला रक्षण प्राप्त हो । जो रक्षण (नूतनेन) = अत्यन्त नवीन व स्तुत्य है [नु स्तुतौ], मयोभुवा कल्याण को उत्पन्न करनेवाला है तथा (सुप्रणीती) = उत्तम मार्ग से हमें ले चलनेवाला है। प्राणसाधक पुरुष कुमार्ग से न गति करके सदा सुमार्ग से चलता है। [२] हे प्राणापानो! आप हमारा सुप्रणयन करते हुए (नः) = हमारे लिये (रयिम्) = धन को (आवहतम्) = प्राप्त कराइये। (उत) = और (वीरान्) = वीर सन्तानों को (आ) [वहतम्] = प्राप्त कराइये । (विश्वानि) = सब (अमृता) = नीरोगताओं को (आ) = प्राप्त कराइये तथा (सौभगानि) = सब सौभाग्यों से हमारे जीवनों को युक्त करिये।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना के फलस्वरूप हम सुमार्ग से चलते हुए 'धन, उत्तम सन्तान, नीरोगता व सौभाग्य' को प्राप्त करेंगे । 'अत्रि' ही प्रार्थना करते हैं -

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! विद्वानांकडून रक्षित व बोधित झालेले तुम्ही लक्ष्मी व उत्तम लोकांच्या साह्याने संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करा. ॥ १८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O lord, we pray, may we ever follow and benefit from the latest and blissful guidance and noble policy of the Ashvins, teachers and scholars. Bring us, O divine -twin powers of nature’s complementarities, wealth, brave progeny and all the imperishable good fortunes of honour and excellence. Let us prosper with your protection and vision of progress.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of enlightened persons are explained.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers ! you confer joy and good guidance, and therefore convey to us wealth and brave and good progeny. By your unprecedented (new) protections, may we have imperishable riches and all kinds of prosperity and good fortunes.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O men ! protected and taught by the enlightened persons, you attain wealth, and with the help of good men achieve all prosperity.

    Translator's Notes

    अध्वर इति यज्ञनाम । ध्वरति हिंसाकर्मा तत्प्रतिषेधः (NKT 1, 3, 8) स्वाध्यायो वै ब्रह्मयज्ञः । ( Stph 11, 5, 6, 2) अध्वर्युः अध्वरं युनक्ति । ब्रह्मयज्ञनेतारौ अध्यापकोपदेशकावेव संभवत इति तावश्विनो ।

    Foot Notes

    (अश्विनोः ) अध्यापकोपदेशकयोः । अश्विनौ हि देवानामध्वर्यु (मैत्रायणीसंहितायाम् 4, 5, 4 तैत्तिरीयारण्य के 5, 2, 5)। = Of the teacher and the preacher. (रयिम् ) श्रियम् । = Wealth.

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