ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 42/ मन्त्र 8
तवो॒तिभिः॒ सच॑माना॒ अरि॑ष्टा॒ बृह॑स्पते म॒घवा॑नः सु॒वीराः॑। ये अ॑श्व॒दा उ॒त वा॒ सन्ति॑ गो॒दा ये व॑स्त्र॒दाः सु॒भगा॒स्तेषु॒ रायः॑ ॥८॥
स्वर सहित पद पाठतव॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । सच॑मानाः । अरि॑ष्टाः । बृह॑स्पते । म॒घऽवा॑नः । सु॒ऽवीराः॑ । ये । अ॒श्व॒ऽदाः । उ॒त । वा॒ । सन्ति॑ । गो॒ऽदाः । ये । व॒स्त्र॒ऽदाः । सु॒ऽभगाः॑ । तेषु॑ । रायः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तवोतिभिः सचमाना अरिष्टा बृहस्पते मघवानः सुवीराः। ये अश्वदा उत वा सन्ति गोदा ये वस्त्रदाः सुभगास्तेषु रायः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठतव। ऊतिऽभिः। सचमानाः। अरिष्टाः। बृहस्पते। मघऽवानः। सुऽवीराः। ये। अश्वऽदाः। उत। वा। सन्ति। गोऽदाः। ये। वस्त्रऽदाः। सुऽभगाः। तेषु। रायः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 42; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे बृहस्पते ! ये तवोतिभिररिष्टाः सचमाना मघवानः सुवीरा अश्वदा उत वा ये गोदा वस्त्रदाः सुभगाः सन्ति तेषु रायो भवन्ति ॥८॥
पदार्थः
(तव) (ऊतिभिः) रक्षादिभिः सह (सचमानाः) सम्बध्नन्तः (अरिष्टाः) अहिंसिताः (बृहस्पते) विद्याद्युत्तमपदार्थानां पालक (मघवानः) परमपूजितधनाः (सुवीराः) शोभनाश्च ते वीराश्च ते (ये) (अश्वदाः) अश्वानग्न्यादींस्तुरङ्गान् वा ददति (उत) अपि (वा) (सन्ति) (गोदाः) ये गाः सुशिक्षिता वाचो धेनुं ददति (ये) (वस्त्रदाः) ये वस्त्राणि ददति (सुभगाः) सुष्ठु भग ऐश्वर्य्यं धनं वा येषान्ते (तेषु) (रायः) धनानि ॥८॥
भावार्थः
ये धार्मिका राज्ञा रक्षिताः प्रशंसितधनयुक्ता दातारः सन्ति त एव यशस्विनो भूत्वा धनाढ्या जायन्ते ॥८॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (बृहस्पते) बृहत् अर्थात् विद्या आदि उत्तम पदार्थों की रक्षा करनेवाले ! (ये) जो (तव) आपकी (ऊतिभिः) रक्षा आदिकों के साथ (अरिष्टाः) नहीं हिंसा किये गये (सचमानाः) सम्बन्ध करते हुए (मघवानः) अत्यन्त श्रेष्ठ धन से युक्त (सुवीराः) उत्तम वीरजन (अश्वदाः) अग्नि आदि वा घोड़ों को देनेवाले (उत) भी (वा) वा (ये) जो (गोदाः) सुशिक्षित वाणी वा गौवों के देनेवाले (वस्त्रदाः) वस्त्रों के देनेवाले और (सुभगाः) सुन्दर ऐश्वर्य्य वा धन से युक्त (सन्ति) हैं (तेषु) उनमें (रायः) धन होते हैं ॥८॥
भावार्थ
जो धार्मिक राजा से रक्षा किये गये प्रशंसित धनों से युक्त दाताजन हैं, वे ही यशस्वी होके धनाढ्य होते हैं ॥८॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( बृहस्पते ) = सूर्य चन्द्रादि सब लोक लोकान्तरों के स्वामिन् !( ये तव ऊतिभिः ) = जो आपकी रक्षाओं के साथ ( सचमाना: ) = सम्बन्ध रखनेवाले हैं वे ( अरिष्टा: ) = दुखों से रहित ( मघवान: ) = धनवान् और ( सुवीरा: ) = अच्छे पुत्रादि सन्तानवाले होते हैं ( ये अश्वदा ) = जो घोड़ों का दान करनेवाले हैं ( उत वा ) = और ( सन्ति गोदा: ) = गौओं के दाता और ( ये वस्त्रदाः ) = जो वस्त्रों का दान करते हैं वे ( सुभगा: ) = सौभाग्यवाले हैं ( तेषु राय: ) = उनके ही घरों में अनेक प्रकार के धन और सब ऐश्वर्य रहते हैं।
भावार्थ
भावार्थ = हे सर्व ब्रह्माण्डों के स्वामिन् ! परमात्मन्! जो धर्मात्मा आपके सच्चे प्रेमी भक्त हैं, उनकी आप सब प्रकार से रक्षा करते हैं। वे सब प्रकार के दुःख और कष्टों से रहित हो जाते हैं, धनवान् और सुपुत्रादि सन्तानवाले होते हैं, और धनवान् होकर भी सब पापों से रहित होते हैं। उस धन को उत्तम महात्माओं का अन्नवस्त्रादिकों से सत्कार करने में खर्च करते हैं, और धार्मिक संस्थाओं में, वेदवेत्ता महानुभावों के वास करने के लिए, अनेक सुन्दर स्थान बनवा देते हैं, जिनमें रहकर महात्मा लोग प्रभु की भक्ति करते और वेदविद्या का प्रचार कर सबको प्रभु का भक्त और वेदानुकूल आचरण करनेवाला बनाते हैं। ऐसे धार्मिक पुरुष ही सौभाग्यवान् हैं, ऐसे आचार-व्यवहार करनेवाले उत्तम पुरुष के पास ही, बहुत धन धान्य होना चाहिए ।
विषय
प्रधान पद योग्य जन । दुष्टों और कदयों को दण्ड ।
भावार्थ
भा०—हे ( बृहस्पते ) बड़े राष्ट्र और वेदज्ञान के पालक ! स्वामिन् ! ( ये ) जो ( तव ऊतिभिः ) तेरे रक्षोपायों से ( सचमानाः ) सुसम्बद्ध होकर ( मघवानः ) ऐश्वर्यवान्, ( सुवीराः ) स्वयं उत्तम वीर और उत्तम पुत्रों और वीरों के स्वामी हो जाते हैं और ( ये ) जो ( अश्वदाः ) घोड़े के पालक वा दाता ( उत वा ) और ( ये ) जो ( गोदाः ) गौओं और भूमियों के पालक और दाता हैं वे ( सुभगाः) उत्तम ऐश्वर्यवान् होते हैं और ( तेषु रायः ) उनमें सब ऐश्वर्य विराजते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अत्रिर्ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१, ४, ६, ११, १२, १५, १६, १८ निचृत् त्रिष्टुप् । २ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, ७, ८,९, १३,१४ त्रिष्टुप् । १७ याजुषी पंक्ति: । १० भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टादशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
दानशीलता व धन्यता
पदार्थ
[१] हे (बृहस्पते) = सब आकाशादि बड़े-बड़े लोकों के (स्वामिन्) = [बृहतां पतिः] प्रभो ! (तव ऊतिभिः) = आपके रक्षणों से (सचमाना:) = संगत हुए हुए पुरुष (अरिष्टा:) = रोगों व वासनाओं से हिंसित नहीं होते, (मघवान:) = [मघ, मख] ये यज्ञशील होते हैं, (सुवीराः) = उत्तम वीर होते हैं । [२] आपकी उपासना के परिणामस्वरूप ये जो पुरुष यज्ञशील बनकर (अश्वदा:) = अश्वों के देनेवाले होते हैं, (उत वा) = अथवा (गोदाः) = प्रशस्त गौवों को देनेवाले होते हैं, (ये) = जो (वस्त्रदाः) = वस्त्रों का दान करते हैं, (तेषु) = उन पुरुषों में (रायः) = ऐश्वर्य (सुभगाः) = उत्तम भाग्य का कारण बनते हैं। इन दानशील पुरुषों के जीवन धनों से धन्य बनते हैं। धन इनके सौभाग्य को बढ़ानेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम यज्ञशील बनकर अश्व, गो, वस्त्र दान कर सौभाग्यशाली बनें-
मराठी (1)
भावार्थ
जे धार्मिक राजाकडून रक्षित व प्रशंसनीय धनांनी युक्त दाता असतात तेच यशस्वी होऊन धनाढ्य बनतात. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Brhaspati, O lord of unbounded wealth of the universe, the people who are free from injury, enjoying wealth and power, brave and fearless, sharing the blessings of your protections, who are generous and honourable and give horses, cows and clothes in charity, all enjoy the good fortune of wealth and power and the grace of divinities.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The same subject of teachings of the entitled person is continued.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Brihaspati (Protector of knowledge and other good things) associated with your protection, men are not harmed by foes and become endowed with much honored wealth and good heroes. They are possessors of good and auspicious wealth, who are generous givers of Agni (electricity/or horses) of well--trained refined speeches or cows, and of clothes.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The donors are only protected by a righteous king who are endowed with admirable wealth and thus become glorious and rich.
Foot Notes
(बृहस्पते) विद्याद्युत्तमपदार्थानां पालक। = O protector or guardian of knowledge and other good things. (गोदा:) ये गाः सुशिक्षिता वाचो धेनुं वा ददते । गौरिति वाङ्नाम (NG 1, 11) धेनुनाम सुप्रख्यातमेव = They who give well-trained refined speeches or cows.
बंगाली (1)
পদার্থ
তবোতিভিঃ সচমানা অরিষ্টা বৃহস্পতে মঘবানঃ সুবীরাঃ।
যে অশ্বদা উত বা সন্তি গোদা যে বস্ত্রদাঃ সুভগাস্তেষু রায়ঃ।।৮৭।।
(ঋগ্বেদ ৫।৪২।৮)
পদার্থঃ হে (বৃহস্পতে) সূর্য চন্দ্রাদি সকল লোক লোকান্তরের স্বামী! (যে তব ঊতিভিঃ) যিনি তোমার রক্ষার সাথে (সচমানাঃ) সম্বন্ধ যুক্ত, তিনি (অরিষ্টাঃ) দুঃখরহিত, (মঘবানঃ) ঐশ্বর্যশালী এবং (সুবীরাঃ) উত্তম সন্তান সম্পন্ন হয়ে থাকেন। (যে অশ্বদাঃ) যিনি অশ্বের দানকারী (উত বা) এবং (সন্তি গোদাঃ) গাভীর দাতা এবং (বস্ত্রদাঃ) বস্ত্রের দান করেন, তিনি (সুভগাঃ) সৌভাগ্যবান। (তেষু রায়ঃ) তাঁকে তুমি অনেক প্রকার সৌভাগ্য এবং সকল ঐশ্বর্য দান করো।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে সমগ্র ব্রহ্মাণ্ডের স্বামী পরমাত্মা! যে ধর্মাত্মা তোমার প্রকৃত প্রেমী ভক্ত, তাঁকে তুমি সর্বপ্রকার বিপদ হতে রক্ষা করো। তিনি সকল প্রকারের দুঃখ ও কষ্ট হতে রহিত হয়ে যান। তিনি ঐশ্বর্যশালী ও সুসন্তান প্রাপ্ত হন এবং সকল পাপ হতে রহিত হন। যে ব্যক্তি নিজ সম্পদ গরীব, অসহায়কে অন্ন-বস্ত্রাদি দ্বারা সৎকার করতে খরচ করেন এবং ধার্মিক সংস্থায়, বেদজ্ঞাতা মহানুভবের বসবাসের জন্য ব্যয় করেন, সেরূপ আচার-ব্যবহারকারী উত্তম ব্যক্তি প্রভূত ধন-ধান্যের অধিকারী হন।।৮৭।।
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