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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 11
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - पुरुमीळ्हो वैददश्विः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - मध्यमः

    य ईं॒ वह॑न्त आ॒शुभिः॒ पिब॑न्तो मदि॒रं मधु॑। अत्र॒ श्रवां॑सि दधिरे ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ई॒म् । वह॑न्ते । आ॒शुऽभिः॑ । पिब॑न्तः । म॒दि॒रम् । मधु॑ । अत्र॑ । श्रवां॑सि । द॒धि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य ईं वहन्त आशुभिः पिबन्तो मदिरं मधु। अत्र श्रवांसि दधिरे ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये। ईम्। वहन्ते। आशुऽभिः। पिबन्तः। मदिरम्। मधु। अत्र। श्रवांसि। दधिरे ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 11
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! या आशुभिर्मदिरमीं वहन्ते मधु पिबन्तोऽत्र श्रवांसि दधिरे त एव श्रीमन्तो जायन्ते ॥११॥

    पदार्थः

    (ये) (ईम्) उदकम् (वहन्ते) प्राप्नुवन्ति (आशुभिः) आशुकारिभिर्गुणैः (पिबन्तः) (मदिरम्) आनन्दकरम् (मधु) माधुर्यादिगुणोपेतम् (अत्र) (श्रवांसि) अन्नादीनि (दधिरे) धरन्ति ॥११॥

    भावार्थः

    ये सद्यः सुखकराणि मेधावर्धकानि वस्तूनि सेवन्ते तेऽत्र श्रीमन्तो जायन्ते ॥११॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (ये) जो (आशुभिः) शीघ्रकारी गुणों से (मदिरम्) आनन्दकारक (ईम्) जल को (वहन्ते) प्राप्त होते हैं और (मधु) माधुर्य्य आदि गुणों से युक्त को (पिबन्तः) पीते हुए (अत्र) यहाँ (श्रवांसि) अन्न आदिकों को (दधिरे) धारण करते हैं, वे ही लक्ष्मीवान् होते हैं ॥११॥

    भावार्थ

    जो शीघ्र सुखकारक और बुद्धिवर्धक वस्तुओं का सेवन करते हैं, वे यहाँ लक्ष्मीवान् होते हैं ॥११॥

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    विषय

    विद्वान् यशस्वी सफल गृहस्थ ।

    भावार्थ

    भा०- ( ये ) जो ( अत्र ) इस लोक में ( श्रवांसि ) श्रवण करने योग्य ज्ञानों, अन्नों और कीर्तियों को ( दधिरे ) श्रवण करते हैं और (मदिरं ) हर्षजनक (मधु ) अन्न और ज्ञान का ( पिबन्तः ) पान करते हैं वे (आशुभिः) शीघ्रगामी अश्वों से रथ के समान अपने ( आशुभिः ) वेग से जाने वाले दृढ़ अंगों द्वारा ( ईं ) इस गृहस्थ रूप रथ को भी ( वहन्ते ) धारण करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे ताबडतोब सुखकारक, मेधावर्धक वस्तू ग्रहण करतात ते श्रीमंत होतात. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Those who bring hither instant showers of rain, tasting sweets of honey drinks here, bear and hold the food, energy and wealth of the world.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of married couple are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! those persons who get pure and delightful water and drinking the sweet honey, juice etc. prepare good food and become wealthy (by keeping good health and exerting themselves). "

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who make articles that create joy and augment intellect, become rich and beautiful.

    Foot Notes

    (ईम् ) उदकम् । ईम् इति उदकनाम (NG 1, 12) = Water. (श्रवांसि ) अन्नादीनि । षव इत्यन्ननाम = Food material etc. ( मदिरम् ) `आनन्दकरम् = Delightful.

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