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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 17
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ए॒तं मे॒ स्तोम॑मूर्म्ये दा॒र्भ्याय॒ परा॑ वह। गिरो॑ देवि र॒थीरि॑व ॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तम् । मे॒ । स्तोम॑म् । ऊ॒र्म्ये । दा॒र्भ्याय॑ । परा॑ । व॒ह॒ । गिरः॑ । दे॒वि॒ । र॒थीःऽइ॑व ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतं मे स्तोममूर्म्ये दार्भ्याय परा वह। गिरो देवि रथीरिव ॥१७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतम्। मे। स्तोमम्। ऊर्म्ये। दार्भ्याय। परा। वह। गिरः। देवि। रथीःऽइव ॥१७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 17
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे देवि ! ऊर्म्ये रात्रिवद्वर्त्तमाने त्वं म एतं स्तोमं शृणु दार्भ्याय वर्त्तमानं परा वह रथीरिव गिर आवह ॥१७॥

    पदार्थः

    (एतम्) (मे) मम (स्तोमम्) श्लाघाम् (ऊर्म्ये) रात्रीव वर्त्तमाने (दार्भ्याय) दर्भेषु विदारकेषु भवाय (परा) (वह) (गिरः) वाणीः (देवि) देदीप्यमाने विदुषि (रथीरिव) प्रशंसितो रथवान् यथा ॥१७॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । यथा भूतानां सुखाय रात्री वर्त्तते तथैव पत्यादीनां सुखाय सत् स्त्री भवति ॥१७॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (देवि) प्रकाशमान विद्यायुक्त स्त्री ! (ऊर्म्ये) रात्रि के सदृश वर्त्तमान आप (मे) मेरी (एतम्) इस (स्तोमम्) प्रशंसा को सुनिये और (दार्भ्याय) विदारण करनेवालों में हुए के लिये वर्त्तमान को (परा, वह) दूर कीजिये तथा (रथीरिव) प्रशंसित रथवाला जैसे वैसे (गिरः) वाणियों को धारण कीजिये ॥१७॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे प्राणियों के सुख के लिये रात्रि है, वैसे ही पति आदिकों के सुख के लिये श्रेष्ठ स्त्री होती है ॥१७॥

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    विषय

    दूत का कार्य । विद्युत् यन्त्रों से दूर देश में व्या- ख्यानों को पहुंचाने और यानों द्वारा मेल-सर्विस का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०-हे (ऊर्म्ये) रात्रि के समान सुखदायिनी, उत्तम ऊंचे से शब्द बोलनेहारी ! हे (देवि ) तेजस्विनि ! विद्युत् ! (रथी: इव) रथी जिस प्रकार ( स्तोमं वहति गिरश्च परा वहति ) नाना धान्य आदि पदार्थों को और दूसरों के वचनों या संदेशों को भी देशान्तर तक ले जाता है उसी प्रकार तू भी ( दार्भ्याय) 'दर्भ' अर्थात् शत्रुओं को विदारण करने में कुशल वा शत्रु हिंसकों में श्रेष्ठ नायक के लिये ( मे एतं स्तोमं ) मेरे इस स्तुतिवचन और ( गिरः) उत्तम वाणियों को (परा वह) दूर तक प्राप्त करा । यान, रथ, गाड़ी आदि जैसे सामान ढोने तथा चिट्ठी पत्री ले जाने के अर्थात् 'मेल' सर्विस' के भी काम आते हैं। उसी प्रकार विद्युत् के यन्त्र भी लम्बे व्याख्यानों को एक देश से दूर २ देश तक पहुंचाते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    दार्भ्य को स्तोम की प्राप्ति

    पदार्थ

    [१] 'ऊर्मि' शब्द प्रकाश [light] का वाचक है। उस प्रकाश के लिये हितकर होने से वेदवाणी 'ऊर्म्या' है, प्रकाश को देनेवाली होने से यह 'देवी' है। 'दृभ्' धातु का अर्थ है 'to fear, to be afraid of' भयभीत होना । पापों से भयभीत होनेवाला यह व्यक्ति 'दार्म्य' है। यह प्रार्थना करता है कि हे (अर्म्ये) = ज्ञान-प्रकाश को प्राप्त कराने में उत्तम वेदवाणि! तू (दार्भ्याय) = पापों से सदा भयभीत होकर दूर रहनेवाले मे मेरे लिये (एतं स्तोमम्) = इस मन्त्रसमूह को (परावह) = [ परा = to wards] प्राप्त करा। पापों से अपने को बचानेवाला व्यक्ति ही ज्ञान को प्राप्त कर पाता है। [२] हे (देवि) = प्रकाश को देनेवाली वेदवाणि! (गिरः) = ज्ञान की वाणियों को तू प्राप्त करा, (इव) = जैसे कि (रथी:) = एक (रथवान्) = रथ पर स्थापित करके विविध वसुओं को हमारे लिये प्राप्त कराता है। यह देवी हमें ज्ञान प्राप्त कराये।

    भावार्थ

    भावार्थ- पापों से भयभीत होनेवाला पुरुष ही ज्ञान के प्रकाश को प्राप्त करता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी रात्र ही प्राण्यांच्या सुखासाठी असते. तसे श्रेष्ठ स्त्री पती इत्यादींना सुख देते. ॥ १७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O divine spirit of night and vibrations of peace, listen and, like a charioteer, for me, carry this song and words of prayer far to the regenerative lord of life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What are the duties of enlightened are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned lady! shining with knowledge and giver of peace and happiness like the night, you hear this praise of mine and drive away the person who desires to harm us. Carry away these my words to distant places like a good charioteer.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is upamālankāra (simile) used in the mantra. As night gives happiness to all creatures, so a good wife bestows happiness upon her husband and others.

    Translator's Notes

    दर्भ: - दृदलिभ्यां भः (उणादिकोषे 3, 151 ) दृ - विदारणे हिन्सयाम् ( स्वा० ) Among the commentators or translators of the Rigveda Dayananda Sarasvati alone understood the significance of the mantra taking the word ऊर्म्या for a wife who should be giver of rest (peace) and joy to her husband and others like the night. Others have taken it for the night only which has no significance at all and is absurd on the very face of it. They have wrongly taken as the name of the son of Ratha Veeti.

    Foot Notes

    (दार्भ्याय) / दर्भेषु विदारकेषु भवाय = For a man who harms and tears. (ऊर्म्ये) रात्रीव = Like night.

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