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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 16
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    ते नो॒ वसू॑नि॒ काम्या॑ पुरुश्च॒न्द्रा रि॑शादसः। आ य॑ज्ञियासो ववृत्तन ॥१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते । नः॒ । वसू॑नि । काम्या॑ । पु॒रु॒ऽच॒न्द्राः । रि॒शा॒द॒सः॒ । आ । य॒ज्ञि॒या॒सः॒ । व॒वृ॒त्त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते नो वसूनि काम्या पुरुश्चन्द्रा रिशादसः। आ यज्ञियासो ववृत्तन ॥१६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ते। नः। वसूनि। काम्या। पुरुऽचन्द्राः। रिशादसः। आ। यज्ञियासः। ववृत्तन ॥१६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 16
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    ये यज्ञियासो रिशादसो नः पुरुश्चन्द्राः काम्या वसून्याऽऽववृत्तन तेऽस्माकं कल्याणकारिणो भवन्ति ॥१६॥

    पदार्थः

    (ते) विद्वांसः (नः) अस्माकम् (वसूनि) धनानि (काम्या) कमनीयानि (पुरुश्चन्द्राः) बहुसुवर्णानि (रिशादसः) हिंसकहिंसकाः (आ) (यज्ञियासः) यज्ञसम्पादकाः (ववृत्तन) वर्त्तन्ते ॥१६॥

    भावार्थः

    हे मनुष्यास्त एवात्र जगति परोपकाराय वर्त्तन्ते ये न्यायेन द्रव्योपार्जनमाचरन्ति ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    जो (यज्ञियासः) यज्ञ के करने (रिशादसः) और हिंसकों के मारनेवाले (नः) हम लोगों के (पुरुश्चन्द्राः) बहुत सुवर्ण और (काम्या) सुन्दर (वसूनि) धनों को (आ, ववृत्तन) प्राप्त होते हैं (ते) वे विद्वान् हम लोगों के कल्याणकारी होते हैं ॥१६॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! वे ही इस संसार में परोपकार के लिये वर्त्तमान हैं, जो न्याय से द्रव्य का संग्रह करते हैं ॥१६॥

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    विषय

    सज्जनों का वर्णन ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( यज्ञियासः) दानशील, यज्ञ कर्म करने हारे, सत्संग योग्य (रिशादसः ) हिंसकों के नाशक, ( पुरु-चन्द्राः ) बहुत सी धन सम्पदाओं के स्वामियो ! (ते) वे आप लोग (नः) हमारे लिये ( काम्या वसूनि ) नाना कामना करने योग्य ऐश्वर्यों को ( आ ववृत्तन ) पुनः २ प्राप्त करो और उनको व्यवहार में लाओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    पुरुश्चन्द्राः रिशादस:

    पदार्थ

    [१] हे प्राणो! आप (पुरुश्चन्द्राः) = पालक व पूरक हैं अतएव आह्लादजनक धनोंवाले हो । (रिशादसः) = शत्रुओं को समाप्त करनेवाले हो और (यज्ञियासः) = यज्ञादि उत्तम कर्मों में हमें सदा प्रवृत्त करनेवाले हो। [२] (ते) = वे आप (नः) = हमारे लिये (काम्या) = कमनीय, चाहने योग्य (वसूनि) = निवास के लिये साधनभूत धनों को (आववृत्तन) = आवृत्त करो, निरन्तर प्राप्त होनेवाला करो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राण हमारे लिये सब आह्लादजनक तेजस्विता आदि धनों को प्राप्त कराते हैं, कामक्रोध-लोभ रूप शत्रुओं को नष्ट करते हैं, उत्तम कर्मों में हमें प्रवृत्त करते हैं। ये सब वसुओं को हमारे लिये दें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! जे न्यायाने धन संग्रहित करतात तेच या जगात परोपकारी असतात. ॥ १६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Thus they, adorable benefactors, creators of good and destroyers of evil by yajna, abundant in golden gifts, may, we pray, continue to bring us the wealth and honours of excellence we desire.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties of the enlightened are stated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those performers of Yajnas and destroyers of the violent are bringers of welfare to us, who bestow upon us delightful treasures containing much gold.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons only can do good to others who .earn money by righteous or just means.

    Foot Notes

    (पुरुश्चन्द्रा ) बहुसुवर्णानि । पुरु इति बहुनाम (NG 3, 9 ) चन्द्रमिति हिरण्यनाम (NG 1, 2) = Much gold. (रिशादसः ) हिंसक - हिंसकाः । रिथ - हिंसायाम् । अद्-भक्षणे । = Destroyers of the violent.

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