ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 2
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतो वाग्निश्च
छन्दः - जगती
स्वरः - निषादः
क्व१॒॑ वोऽश्वाः॒ क्वा॒३॒॑भीश॑वः क॒थं शे॑क क॒था य॑य। पृ॒ष्ठे सदो॑ न॒सोर्यमः॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठक्व॑ । वः॒ । अश्वाः॑ । क्व॑ । अ॒भीश॑वः । क॒थम् । शे॒क॒ । क॒था । य॒य॒ । पृ॒ष्ठे । सदः॑ । न॒सोः । यमः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
क्व१ वोऽश्वाः क्वा३भीशवः कथं शेक कथा यय। पृष्ठे सदो नसोर्यमः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठक्व। वः। अश्वाः। क्व। अभीशवः। कथम्। शेक। कथा। यय। पृष्ठे। सदः। नसोः। यमः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! वः क्वाश्वाः क्वाभीशवः सन्ति तान् यूयं कथं शेक कथा यय। यथा नसोः पृष्ठे सदो यमोऽस्ति तथा यूयं भवत ॥२॥
पदार्थः
(क्व) कस्मिन् (वः) युष्माकम् (अश्वाः) आशुगामिनः (क्व) (अभीशवः) अङ्गुलय इव। अभीशव इत्यङ्गुलिनामसु पठितम्। (निघं०२.५) (कथम्) (शेक) सद्योगामिनो भवत (कथा) केन प्रकारेण (यय) गच्छत (पृष्ठे) पश्चाद्भागे (सदः) छेद्यं वस्तु (नसोः) नासिकयोः (यमः) नियन्ता ॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः । यदा कश्चित् विदुषः पृच्छेत्तदा त उत्तरं दद्युः पक्षपातञ्च विहाय न्यायाधीशा इव भवेयुस्तदा समग्रं बोधमाप्नुयुः ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (वः) आप लोगों के (क्व) कहाँ (अश्वाः) शीघ्र चलनेवाले घोड़े और (क्व) कहाँ (अभीशवः) अङ्गुलियाँ हैं, उनको आप लोग (कथम्) किस प्रकार (शेक) शीघ्र पहुँचनेवाले हूजिये और (कथा) किस प्रकार से (यय) जाइये और जैसे (नसोः) नासिकाओं के (पृष्ठे) पीछे के भाग में (सदः) छेदन करने योग्य वस्तु का (यमः) नियन्ता है, वैसे आप लोग हूजिये ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है । जब कोई विद्वानों को पूछे तब वे उत्तर दें और पक्षपात को छोड़कर न्यायाधीशों के सदृश होवें, तब सम्पूर्ण बोध को प्राप्त होवें ॥२॥
विषय
परस्पर कुशलप्रश्न व्यवहार का उपदेश | अध्यात्म में - प्राणों का वर्णन ।
भावार्थ
भा०-हे वीर पुरुषो ! ( वः ) आप लोगों के ( अश्वाः क ) अश्व कहां हैं ? ( अभीशवः क्व ) बाग डोरें कहां है । ( कथं शेक ) किस प्रकार आप शीघ्र गमन करने में समर्थ होते हैं । ( कथा यय) किस प्रकार से गमन करते हो ? ( पृष्ठे सदः ) पीठ पर किस प्रकार बैठने का साज है ! (नसोर्यमः ) नासिकाओं में नाथ के समान पशु आदि को नियन्त्रण करने वाला सारथी कहां है ! अध्यात्म में - (१) ये मरुत गण लोग जीव हैं, श्रेयो मार्ग में स्थित होने से श्रेष्ठतम हैं, अकेला जीव संसार में जन्मता है, परम धाम से आता है सही पर वह जीव क्या है ? ( २ ) उनके 'अश्व' प्राणादि अभीशु । वासनादि कहां रहते हैं किस प्रकार वे शरीर धारण में समर्थ होते हैं किस प्रकार वे गति करते हैं ? इन प्राणगण की पृष्ठ देश में किस प्रकार से स्थिति है नासिका छिद्रों में किस प्रकार उनका नियन्त्रण है ? अर्थात् जीवों और प्राणों का इस देह में जीवन, प्राण-ग्रहण आदि का क्या रहस्य है ?
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
'सर्वाधार' प्राण
पदार्थ
[१] हे प्राणो ! (क्व) = कहाँ (वः) = आपके (अश्वा:) = अश्व हैं, (क्वः अभीशवः) = कहाँ लगाये हैं ? (कथं शेक) = किस प्रकार आप शक्तिशाली बनते हो, उस उस कार्य को करने में समर्थ होते हो ! (कथा यय) = किस प्रकार गति करते हो। यह सब ही रहस्यमय ही है। प्राणों के कार्यक्रम को पूरा-पूरा समझ सकना सम्भव नहीं। [२] हमें सामान्यतः इनके विषय में इतना ही पता है कि (पृष्ठे सदः) = प्रत्येक इन्द्रिय के कार्य के मूल में इनका अधिष्ठान है। प्राणों के आधार से ही सब कार्य चलते हैं। और (नसोः यमः) = नासिका छिद्रों में आपका नियमन होता है। जिस समय नासिका के दक्षिण छिद्र में आपकी गति होती है तो अग्नितत्त्व का वर्धन होता है, वामछिद्र में गति होने पर जलतत्त्व का विकास दिखता है। एवं अग्नि व जल दोनों तत्त्वों का ठीक-ठीक नियमन करते हुए ये प्राण हमारे जीवन को सुन्दर बनाते हैं। ये दायें-बायें छिद्र ही योग में सूर्यस्वर व चन्द्रस्वर कहलाते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणों का कार्यक्रम रहस्यमय है। हम इतना ही जानते हैं कि सब कार्यों के मूल में यह प्राणशक्ति है और नासिका छिद्रों में इनका नियमन कार्य चलता है।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा विद्वानांना प्रश्न विचारला जातो तेव्हा त्यांनी उत्तर द्यावे. पक्षपात न करता न्यायाधीशाप्रमाणे वागल्यास संपूर्ण बोध होतो. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Where are your horses? Where the reins? What is your power and potential? How do you move? Where is the saddle on the horse back? Where is the bridle that controls the direction by the nose?
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The attributes of Maruts are stated.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O thoughtful men ! where are your horses? Where is your finger? How do you come quickly? The seat is on the back of the horse and the reins in the nostrils of the horses ?
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Whenever a man puts questions to the enlightened persons, they should answer him properly. If they are impartial like the dispensers of justice, then they can acquire all knowledge.
Translator's Notes
अभशवः इत्यङ्गुलिनाम (NG 2,5); is also अभीशवः इति रश्मिनाम (NG 2, 5 ) बद्लु -बिशरणगत्यवसादनेषु (भ्वा० ) अत्र विधारणार्थमादाय व्याख्या = Bridles Reins.
Foot Notes
(अभीशव:) अङ्गुलय:। = Fingers. (सदः) छेषं वस्तु = Anything to be cut.
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