ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 15
यू॒यं मर्तं॑ विपन्यवः प्रणे॒तार॑ इ॒त्था धि॒या। श्रोता॑रो॒ याम॑हूतिषु ॥१५॥
स्वर सहित पद पाठयू॒यम् । मर्त॑म् । वि॒प॒न्य॒वः॒ । प्र॒ऽने॒तारः॑ । इ॒त्था । धि॒या । श्रोता॑रः । याम॑ऽहूतिषु ॥
स्वर रहित मन्त्र
यूयं मर्तं विपन्यवः प्रणेतार इत्था धिया। श्रोतारो यामहूतिषु ॥१५॥
स्वर रहित पद पाठयूयम्। मर्तम्। विपन्यवः। प्रऽनेतारः। इत्था। धिया। श्रोतारः। यामऽहूतिषु ॥१५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 15
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वद्विषयमाह ॥
अन्वयः
हे विपन्यवो ! यूयं प्रणेतारः श्रोतारो धिया यामहूतिष्वित्था मर्त्तं प्रेरयत ॥१५॥
पदार्थः
(यूयम्) (मर्त्तम्) मनुष्यम् (विपन्यवः) मेधाविनः (प्रणेतारः) प्रेरकाः (इत्था) अनेन प्रकारेण (धिया) प्रज्ञया कर्म्मणा वा (श्रोतारः) (यामहूतिषु) उपरमाऽऽह्वानरूपकर्म्मसु ॥१५॥
भावार्थः
ये विद्वांसो धर्म्येषु व्यवहारेषु मनुष्यान् प्रेरयित्वा प्रज्ञान् कुर्वन्ति ते धन्या भवन्ति ॥१५॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वद्विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (विपन्यवः) बुद्धिमानो ! (यूयम्) आप लोग (प्रणेतारः) प्रेरणा करने और (श्रोतारः) सुननेवाले जन (धिया) बुद्धि वा कर्म से (यामहूतिषु) उपरम अर्थात् निवृत्ति और आह्वानरूप कर्म्मों में (इत्था) इस प्रकार से (मर्त्तम्) मनुष्यों को प्रेरणा करो ॥१५॥
भावार्थ
जो विद्वान् जन धर्मयुक्त व्यवहारों में मनुष्यों को प्रेरणा करके बुद्धिमान् करते हैं, वे धन्य होते हैं ॥१५॥
विषय
सज्जनों का वर्णन । उनके कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०—हे (वि-पन्यवः) विशेष मेधावी और विविध स्तुत्य व्यवहारवान् पुरुषो ! ( यूयं ) आप लोग ( मर्तम् ) मनुष्य को ( प्र-णेतारः ) उत्तम मार्गों में चलाने हारे ( याम-हूतिषु ) आप लोगों पर नियन्त्रण करने वाले सेनापति की आज्ञाओं को ( श्रोतारः ) सुनने हारे हैं, वे आप लोग ( इत्था धिया ) इसी प्रकार की उत्तम बुद्धि से विचार कर ठीक २ कार्य सम्पादन करें । इत्यष्टाविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
'सत्यमार्ग पर ले-चलनेवाले' प्राण
पदार्थ
[१] हे (विपन्यवः) = [पन स्तुतौ] विशिष्ट स्तुतिवाले प्राणो ! (यूयम्) = आप (मर्तम्) = मनुष्य को (इत्था धिया) = सत्य बुद्धि से (प्रणेतारः) = उन्नतिपथ पर ले चलनेवाले हो । प्राणायाम से चित्तवृत्ति का निरोध होकर प्रभु-स्तवन की वृत्ति जागती है, इस स्तवन से सत्य बुद्धि प्राप्त होती है, सत्य बुद्धि से हम उन्नतिपथ पर आगे बढ़ पाते हैं। [२] ये प्राण (यामहूतिषु) = [याम: मार्गः, तदर्थं हूतिषु ] मार्गों के लिये आह्वानों के होने पर मैं (श्रोतारः) = हमारी पुकारों को सुननेवाले हैं। अर्थात् जब हम मार्गों को जानने के लिये पुकार करते हैं तो ये प्राण हमारे लिये ठीक मार्ग का ज्ञान देनेवाले होते हैं। प्राणसाधना से होनेवाली ज्ञानदीप्ति मार्गदर्शन कराती ही है ।
भावार्थ
भावार्थ– प्राणसाधना हमें [१] प्रभु-स्तवन की ओर झुकाती है, [२] इससे सत्यबुद्धि उत्पन्न होती है और हम ठीक मार्ग पर आगे बढ़नेवाले होते हैं। [३] ये प्राण हमारी पुकार को सुनते हैं और मार्गदर्शन कराते हैं।
मराठी (1)
भावार्थ
जे विद्वान धर्मयुक्त व्यवहारात माणसांना प्रेरणा देतात व बुद्धिमान करतात ते धन्य होत. ॥ १५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O leading lights, admirable heroes, with intelligence and understanding, thus, you are inspirers, guides and saviours of mortals. And you listen when they call on you in peace or distress for help and assistance.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Something about the duties of the enlightened persons is told-further.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O wise men ! you are leaders and listeners to the requests of men in the acts of peace and invocation. Thus with your intellect and actions, you urge them to do good deeds.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Blessed are those enlightened persons who make men wise by urging them to do righteous dealings.
Foot Notes
(विपन्यवः) मेधाविनः । बिपन्यव इति मेधाविनाम (NG 3, 15) = Wise. (वामहूतिषु ) उपरमाह्वानरूपकर्म्मसु । यमु-उपरमे । ह्वेन्- स्पर्धायां शब्देच (जु० ) = In the acts of peace and invocation.
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