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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 13
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    युवा॒ स मारु॑तो ग॒णस्त्वे॒षर॑थो॒ अने॑द्यः। शु॒भं॒यावाप्र॑तिष्कुतः ॥१३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    युवा॑ । सः । मारु॑तः । ग॒णः । त्वे॒षऽर॑थः । अने॑द्यः । शु॒भ॒म्ऽयावा॑ । अप्र॑तिऽस्कुतः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवा स मारुतो गणस्त्वेषरथो अनेद्यः। शुभंयावाप्रतिष्कुतः ॥१३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवा। सः। मारुतः। गणः। त्वेषऽरथः। अनेद्यः। शुभम्ऽयावा। अप्रतिऽस्कुतः ॥१३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 13
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्दम्पतीविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! योऽनेद्यस्त्वेषरथः शुभंयावाऽप्रतिष्कुतो युवा मारुतो गणोऽस्ति स बहूनि कार्य्याणि साद्धुं शक्नोति ॥१३॥

    पदार्थः

    (युवा) प्राप्तयौवनाः (सः) (मारुतः) वायूनां समूह इव मनुष्याणां (गणः) (त्वेषरथः) त्वेषः प्रकाशवान् रथो यस्य सः (अनेद्यः) अनिन्दनीयः (शुभंयावा) यः शुभं जलं याति (अप्रतिष्कुतः) अकम्पितो दृढः ॥१३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सर्वान् स्त्रीपुरुषान् यूनो विदुषः सम्पादयन्ति ते प्रशंसनीयाः कल्याणकारिणो दृढा जायन्ते ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर स्त्री-पुरुष के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जो (अनेद्यः) नहीं निन्दा करने योग्य (त्वेषरथः) प्रकाशवान् वाहन जिसका वह (शुभंयावा) जल को प्राप्त होनेवाला (अप्रतिष्कुतः) नहीं कम्पित दृढ़ (युवा) यौवनावस्था को प्राप्त (मारुतः) पवनों के समूह के सदृश मनुष्यों का (गणः) समूह है (सः) वह बहुत कार्य्यों को सिद्ध कर सकता है ॥१३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य सम्पूर्ण स्त्रीपुरुषों को यौवनावस्थायुक्त और विद्वान् करते हैं, वे प्रशंसा करने योग्य, कल्याणकारी और दृढ़ होते हैं ॥१३॥

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    विषय

    सज्जनों का वर्णन । उनके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०-जिस प्रकार वायु गण ( त्वेष-रथः ) दीप्तिमान् सूर्य के द्वारा वेग से जाने हारा होता है तथा वह (अप्रतिष्कुतः) किसी से भी उसकी शक्ति बाधित नहीं होती और वह ( शुभं-यावा) जल वृष्टि प्राप्त कराता है उसी प्रकार ( युवा मारुतः गणः ) युवावस्था में मनुष्य होते हैं । (सः) वह भी ( त्वेष-रथः) अति चमकीले रथ में चढ़कर ( अनेद्यः ) अनिन्दनीय, भव्य वेश, उत्तम आचारवान् सज्जन हों । एवं ( शुभं-यावा ) शोभा युक्त होकर शुभ धर्मयुक्त मार्ग पर चलें । एवं ( अप्रति-स्कुतः ) अन्यों से स्पर्द्धा में अपराजित, सुदृढ़ हों। ( २ ) प्राणों का गण ( त्वेष-रथः ) तेजोमय आत्मा में गति करता है। जल के आश्रय गति करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    त्वेषरथः अनेद्यः

    पदार्थ

    [१] (सः) = वह (मारुतः गणः) = प्राणों का गण युवा बुराइयों को पृथक् करनेवाला व अच्छाइयों को हमारे साथ मिलानेवाला है। (त्वेषरथ:) = इस मारुत-गण से ही यह शरीर-रथ दीप्त बनता है। शरीर के एक-एक कोश को यह मारुतगण तेजोदीप्त बना देता है। (अनेद्यः) = यह अनिन्दनीय है। इन प्राणों की साधना से कोई भी निन्द्यभाव हमारे मनों में नहीं रहता । [२] यह मारुतगण (शुभंयावा) = शुभ गतिवाला है, अर्थात् प्राणसाधना से अशुभवृत्तियाँ समाप्त हो जाती हैं, हमारे सब कार्य शुभ ही शुभ होते हैं। (अप्रतिष्कृतः) = यह मारुतगण शत्रुओं से अनभिगत होता है, शत्रुओं का इस पर आक्रमण नहीं होता। उपनिषदों में हम पढ़ते हैं कि असुरों ने जब प्राणों पर आक्रमण किया तो ऐसे नष्ट हो गये जैसे कि पत्थर से टकराकर मिट्टी का ढेला नष्ट हो जाता है । सो यह प्राणगण 'अप्रतिष्कुत' है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्राणसाधना से सब बुराइयाँ दूर होती हैं, शरीर-रथ दीप्त बनता है, जीवन अनिन्द्य होता है, सदा हम शुभ आचरणवाले बनते हैं और शत्रुओं से आक्रान्त नहीं होते।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे सर्व स्त्री-पुरुषांना तरुण व विद्वान करतात ती प्रशंसा करण्यायोग्य, कल्याणकारी व दृढ असतात. ॥ १३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Young, bright and bold, that group of Maruts, pioneers of humanity, riding their bright and blazing chariots, admirable beyond reproach, rises over the spatial oceans, unobstructed and unchallenged.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Something about the sermons (and their subject is told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! that blameless, triumphant, arrestable youthful company of the Maruts (mighty men like the winds) which goes to distant seas and is seated in blazing vehicles can accomplish many works.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those men who make all men and women energetic (youthful and enlightened), become admirable and bestowers of happiness to all.

    Foot Notes

    (अनेद्यः) अनिन्दनीयः = Blameless. (स्वेषरथः ) त्वेष: प्रकाशवान् रथो यस्य स: = Seated in blazing vehicle. (शुभंयावा ) यः शुभं जल ' याति । = Going to distant waters-rivers and oceans.

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