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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 61/ मन्त्र 4
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    परा॑ वीरास एतन॒ मर्या॑सो॒ भद्र॑जानयः। अ॒ग्नि॒तपो॒ यथास॑थ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परा॑ । वी॒रा॒सः॒ । इ॒त॒न॒ । मर्या॑सः । भद्र॑ऽजानयः । अ॒ग्नि॒ऽतपः॑ । यथा॑ । अस॑थ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परा वीरास एतन मर्यासो भद्रजानयः। अग्नितपो यथासथ ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परा। वीरासः। इतन। मर्यासः। भद्रऽजानयः। अग्निऽतपः। यथा। असथ ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 61; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वदुपदेशविषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यूयं यथाऽग्नितपो वीरासो मर्यासः परैतन भद्रजानयोऽसथ तथा ते सत्कर्त्तव्यास्युः ॥४॥

    पदार्थः

    (परा) दूरार्थे (वीरासः) व्याप्तविद्याबलाः (एतन) प्राप्नुत। अत्रेण्गतावित्यस्माल्लोटि युष्मद्बहुवचने तप्तनप्तनथनाश्च (अष्टा०७.१.४५) इति तनबादेशः। (मर्यासः) मनुष्याः (भद्रजानयः) ये भद्रं कल्याणं जानन्ति ते (अग्नितपः) येऽग्निना तापयन्ति ते (यथा) (असथ) भवथ ॥४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । ये बन्धनसाधनं पापाचरणं त्यक्त्वा त्याजयित्वा मुक्तिसाधनं गृहीत्वा ग्राहयित्वा सर्वानानन्दयन्ति तान्सर्व आनन्दयन्तु ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों के उपदेश विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! आप लोग (यथा) जैसे (अग्नितपः) अग्नि से तपानेवाले (वीरासः) विद्या और बल से व्याप्त (मर्यासः) मनुष्य (परा) दूर के लिये (एतन) प्राप्त हों और (भद्रजानयः) कल्याण के जाननेवाले (असथ) होवें, वैसे वे सत्कार करने योग्य होवें ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो बन्धन के साधन और पाप के आचरण का त्याग कर और त्याग करा के और मुक्ति के साधन को ग्रहण कर और ग्रहण करा के सब को आनन्दित करते हैं, उनको सब आनन्दित करें ॥४॥

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    विषय

    दूर देश में विवाह और यात्रा और ब्रह्मचर्य का उपदेश ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( वीरासः) वीर पुरुषो! हे ( मर्यासः) शत्रुओं को मारने वाले सैनिक जनो ! जिस प्रकार ( भद्र जानयः ) सुखकारी स्त्री को प्राप्त करने वाले पुरुष दूर २ देश तक जाते और दूर देश में विवाह करते हैं उसी प्रकार आप लोग ( भद्र-जानयः ) सुखकारी पदार्थों को जानने और पैदा करने हारे होकर ( परा एतन ) दूर देशों तक जाया करो और जिस प्रकार विवाहेच्छुक जन ( अग्नि तपः ) यथा पूर्ववयस में अग्नि अर्थात् आचार्य के अधीन ब्रह्मचर्यादि तप करके रहते हैं उसी प्रकार आप लोग भी ( अग्नि-तपः) अग्रणी पुरुष के आधीन प्रतापी एवं अग्नि वा शत्रु को तपाने वाले (असथ ) हुआ करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ १–४, ११–१६ मरुतः । ५-८ शशीयसी तरन्तमहिषी । पुरुमीळहो वैददश्विः । १० तरन्तो वैददश्विः । १७ – १९ रथवीतिर्दाल्भ्यो देवताः ॥ छन्दः – १ –४, ६–८, १०– १९ गायत्री । ५ अनुष्टुप् । ९ सतोबृहती ॥ एकोनविंशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'वीर, मर्य, भद्रजानि व अग्नितप' प्राण

    पदार्थ

    [१] हे (वीरासः) = शत्रुओं को विशेषरूप से ईरित [कम्पित] करनेवाले, (मर्यासः) = मनुष्यों के लिये हित करनेवाले, (भद्रजानयः) = कल्याण व सुख को जन्म देनेवाले प्राणो ! (परा एतन) = दूरदूर तक, इस शरीर भुवन के सुदूर प्रान्त भागों तक, गतिवाले होवो। [२] प्राणायाम के द्वारा उसउस अंग में पहुँचकर ये प्राण वहाँ के मलों को दग्ध करते हैं और उन्हें दीप्त करते हैं । सो कहते हैं कि तुम शरीर में सर्वत्र पहुँचो, (यथा) = जिससे (अग्नितपः असथ) = अग्नि से तप्त ताम्र आदि की तरह तुम अंग-प्रत्यंग को दीप्त करनेवाले होवो । प्राणसाधक पुरुष को ये प्राण अग्निदीप्त बनानेवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ – प्राण 'शत्रुओं को कम्पित करके हमारा हित करनेवाले हैं। कल्याण को जन्म देनेवाले व अग्नि के समान हमें दीप्त बनानेवाले हैं।'

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे बंधनात अडकविणाऱ्या साधनांचा व पापाचरणाचा त्याग करून करवून मुक्तीच्या साधनांचा स्वीकार करून करवून सर्वांना आनंदित करतात त्यांना सर्वांनी आनंदित करावे. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Go far, brave leaders of the people, nobly born and nobly educated, men of vibrant discipline trained in the crucibles of fire as you are, and happily married.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Something about the teaching of the enlightened persons is taught.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! move along heroes endowed with knowledge and strength. You know the path of welfare and who heat various articles on fire (energy. Ed.). Such persons should be respected by all.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    All should gladden those who give up all sinful activities that cause bondage and who adopt the mears of emancipation and prompt others to do the same.

    Foot Notes

    (भद्रजानयः) ये भद्र कल्याणं जानन्ति ते । भदि-कल्याणे सुखे च । = Those who know the path of true welfare. (वीरासः) व्याप्तविद्याबलाः वीराः । वी गतिव्याप्तिप्रजननकान्न्यसनखादनेषु (अदा० ) । ज्ञा -अववोधने (क्र्या) = Pervading in knowledge and strength.

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