ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 1/ मन्त्र 12
यम॒श्वी नित्य॑मुप॒याति॑ य॒ज्ञं प्र॒जाव॑न्तं स्वप॒त्यं क्षयं॑ नः। स्वज॑न्मना॒ शेष॑सा वावृधा॒नम् ॥१२॥
स्वर सहित पद पाठयम् । अ॒श्वी । नित्य॑म् । उ॒प॒ऽयाति॑ । य॒ज्ञम् । प्र॒जाऽव॑न्तम् । सु॒ऽअ॒प॒त्यम् । क्षय॑म् । नः॒ । स्वऽज॑न्मना । शेष॑सा । व॒वृ॒धा॒नम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यमश्वी नित्यमुपयाति यज्ञं प्रजावन्तं स्वपत्यं क्षयं नः। स्वजन्मना शेषसा वावृधानम् ॥१२॥
स्वर रहित पद पाठयम्। अश्वी। नित्यम्। उपऽयाति। यज्ञम्। प्रजाऽवन्तम्। सुऽअपत्यम्। क्षयम्। नः। स्वऽजन्मना। शेषसा। ववृधानम् ॥१२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्सोऽग्निः किं साध्नोतीत्याह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! योऽश्वी नो यं प्रजावन्तं स्वपत्यं यज्ञं क्षयं स्वजन्मना शेषसा वावृधानं नित्यमुपयाति तं यूयं विजानीत ॥१२॥
पदार्थः
(यम्) (अश्वी) बहवो महान्तोऽश्वा वेगादयो गुणा विद्यन्ते यस्मिन् सोऽग्निः (नित्यम्) (उपयाति) समीपं गच्छति (यज्ञम्) सङ्गन्तव्यम् (प्रजावन्तम्) बह्व्यः प्रजा विद्यन्ते यस्मिँस्तम् (स्वपत्यम्) उत्तमैरपत्यैर्युक्तम् (क्षयम्) गृहम् (नः) अस्माकम् (स्वजन्मना) स्वस्य जन्मना (शेषसा) शेषीभूतेन (वावृधानम्) वर्धमानं वर्धयन्तम् ॥१२॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! योऽग्निः प्रादुर्भूतेन द्वितीयेन जन्मना प्रजाः सुसन्तानान् गृहञ्च प्रापयति तमग्निं प्रसाध्नुत ॥१२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वह अग्नि क्या सिद्ध करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वानो ! जो (अश्वी) बहुत वेगादि गुणोंवाला अग्नि (नः) हमारे (यम्) जिस (प्रजावन्तम्) बहुत प्रजावाले (स्वपत्यम्) सुन्दर बालकों से युक्त (यज्ञम्) संग करने ठहरने योग्य (क्षयम्) घर को वा (स्वजन्मना) अपने जन्म से (शेषसा) शेष रहे भाग से (वावृधानम्) बढ़ते या बढ़ाते हुए के (नित्यम्) नित्य (उपयाति) निकट प्राप्त होता है, उसको तुम लोग जानो ॥१२॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो अग्नि प्रकट हुए द्वितीय जन्म से प्रजा, सुन्दर सन्तानों और घर को प्राप्त कराता है, उसको प्रसिद्ध करो ॥१२॥
विषय
प्रधान नायक का वरण
भावार्थ
( यम् यज्ञम् ) जिस यज्ञ को ( अश्वी ) इन्द्रियरूप अश्वों का स्वामी, जितेन्द्रिय पुरुष ( नित्यम् उप याति ) नित्य प्राप्त करता है, और ( यम् प्रजावन्तं ) जिसको प्रजा से युक्त (क्षयं ) बसे हुए ( स्वपत्यं ) अपने अधिपतित्व में विद्यमान देश के ( अश्वी ) अश्व सैन्य का स्वामी राजा प्राप्त होता है, और जो यज्ञ और निवास योग्य गृह ( स्व-जन्मना ) अपने से जन्म लाभ करने वाले ( शेषसा ) पुत्र और धन से (वावृधानम्) बढ़ते हुए को भी प्राप्त होता है उसी (प्रजावन्तं ) पुत्रादि से समृद्ध ( स्वपत्यं = सु-अपत्यं ) उत्तम पुत्र युक्त और ( स्व-जन्मना शेषसा वावृधानं क्षयं ) अपने वीर्य से उत्पन्न और सपुत्र से बढ़ते हुए यज्ञस्वरूप ( क्षयं ) गृह को (नः ) हमें भी प्राप्त करा ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः–१–१८ एकादशाक्षरपादैस्त्रिपदा विराड् गायत्री । १९—२५ त्रिष्टुप् ।। पंचविशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
औरस सन्तान से वृद्धि को प्राप्त होता हुआ घर
पदार्थ
[१] (यम्) = जिस (यज्ञम्) = पूजनीय प्रभु को (अश्वी) = प्रशस्त इन्द्रियाश्वोंवाला पुरुष (नित्यम्) = सदा (उपयाति) = प्रात:-सायं उपासना के समय उपस्थित होता है। वे प्रभु (नः) = हमारे लिये (क्षयम्) = उस गृह को दें जो (प्रजावन्तम्) = उत्तम मनुष्यों से युक्त है तथा (स्वपत्यम्) = उत्तम सन्तानोंवाला है। अर्थात् जिस घर में माता-पिता आदि बड़े व्यक्ति भी उत्तम जीवनवाले हैं तथा जिसमें सब सन्तान भी उत्तम हैं। [२] प्रभु उपासना से हम वह घर प्राप्त हो जो (स्वजन्मना) = अपने से उत्पन्न हुए हुए, अर्थात् औरस (शेषसा) = सन्तानों से (वावृधानम्) = वृद्धि को प्राप्त हो रहा है।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रशस्तेन्द्रिय बनकर सदा घरों में प्रभु का उपासन करें। हमारे घर प्रशस्त प्रजाओंवाले व उत्तम सन्तानोंवाले हों। औरस सन्तानों से वृद्धि को प्राप्त हों।
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो ! जो अग्नी द्विजन्माने प्रजा, सुंदर संताने व घर प्राप्त करवून देतो त्याला प्रसिद्ध करा. ॥ १२ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, lord of life, ruler and sustainer of happy homes and settled communities, give us a blessed home bubbling with the joy of noble children and the presence of happy people, rising and advancing with our own posterity, a happy place for yajna blest by daily visit and constant presence of Agni, lord of sun rays.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal