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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 1/ मन्त्र 15
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सेद॒ग्निर्यो व॑नुष्य॒तो नि॒पाति॑ समे॒द्धार॒मंह॑स उरु॒ष्यात्। सु॒जा॒तासः॒ परि॑ चरन्ति वी॒राः ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । इत् । अ॒ग्निः । यः । व॒नु॒ष्य॒तः । नि॒ऽपाति॑ । स॒म्ऽए॒द्धार॑म् । अंह॑सः । उ॒रु॒ष्यात् । सु॒ऽजा॒तासः॑ । परि॑ । च॒र॒न्ति॒ । वी॒राः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सेदग्निर्यो वनुष्यतो निपाति समेद्धारमंहस उरुष्यात्। सुजातासः परि चरन्ति वीराः ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। इत्। अग्निः। यः। वनुष्यतः। निऽपाति। सम्ऽएद्धारम्। अंहसः। उरुष्यात्। सुऽजातासः। परि। चरन्ति। वीराः ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 15
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः सोऽग्निः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्य ! योऽग्निर्वनुष्यतो निपाति समेद्धारमंहसः उरुष्याद्यं सुजातासो वीराः परिचरन्ति स इदेव युष्माभिः सम्प्रयोक्तव्यः ॥१५॥

    पदार्थः

    (सः) (इत्) एव (अग्निः) पावकः (यः) (वनुष्यतः) याचमानान् (निपाति) नितरां रक्षति (समेद्धारम्) यः सम्यगिन्धयति प्रदीपयति तम् (अंहसः) दुःखदारिद्र्याख्यात् पापात् (उरुष्यात्) रक्षेत् (सुजातासः) सुष्ठु विद्यासु प्रसिद्धाः (परि) सर्वतः (चरन्ति) जानन्ति गच्छन्ति वा (वीराः) प्राप्तविज्ञानाः ॥१५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सुविद्ययाऽग्निं संसेव्य कार्य्यसिद्धये सम्प्रयुञ्जते ते दुःखदारिद्र्यविरहा यशस्विनः सन्तो विजयसुखं सततं प्राप्नुवन्ति ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य ! (यः) जो (अग्निः) अग्नि (वनुष्यतः) याचना करते हुओं की (निपाति) निरन्तर रक्षा करता है तथा (समेद्धारम्) सम्यक् प्रकाशित करानेवाले को (अंहसः) दुःख वा दरिद्रता से (उरुष्यात्) रक्षा करे जिसको (सुजातासः) विद्याओं में अच्छे प्रकार प्रसिद्ध और (वीराः) विज्ञान को प्राप्त हुए वीरपुरुष (परि, चरन्ति) सब ओर से जानते वा प्राप्त होते हैं (सः, इत्) वही अग्नि तुम लोगों को अच्छे प्रकार उपयोग में लाना चाहिये ॥१५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य अच्छी विद्या से अग्नि का सेवन कर कार्यसिद्ध के लिये संयुक्त करते हैं, वे दुःख और दरिद्रता से रहित, कीर्त्तिवाले हुए विजय के सुख को निरन्तर प्राप्त होते हैं ॥१५॥

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    विषय

    उत्तम रक्षक अग्नि, नायक।

    भावार्थ

    ( यः ) जो ( वनुष्यतः ) याचना, अर्थात् शरण, अन्न, आजीविकादि चाहने वालों को (निपाति) रक्षा करता है और ( समेद्वारम् ) अपने को प्रदीप्त, प्रज्वलित, बलवान् करने वाले को ( अंहसः ) पाप से ( उरुण्यात् ) रक्षा करे। अथवा – ( यः ) जो ( समेद्धारम् ) अपने को प्रदीप्त करने वाले पुरुष को ( वनुष्यतः ) हिंसक पुरुष से और ( उरुष्यात् अंहसः ) महान् पापाचार से भी (नि पाति) बचा लेता है और जिसको (सु-जातासः ) उत्तम कर्मों में जन्म लेने वाले (वीराः) वीर, विद्योपासक द्विज, शिष्य, ( परिचरन्ति ) सेवा करते हैं ( सः इत् अग्निः ) वह गुरु भी अग्निवत् तेजस्वी है । इति पञ्चविंशो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः ॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः–१–१८ एकादशाक्षरपादैस्त्रिपदा विराड् गायत्री । १९—२५ त्रिष्टुप् ।। पंचविशत्यृचं सूक्तम् ॥

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    विषय

    सुजात+वीर

    पदार्थ

    [१] (अग्निः स इत्) = अग्रणी प्रभु निश्चय से वे हैं, (यः) = जो (समेद्वारम्) = अपने हृदयों में प्रभु के प्रकाश को दीप्त करनेवालों को, प्रबोधकों को (वनुष्यतः) = हिंसकों से (निपाति) = बचाता है। कामक्रोध-लोभरूप हिंसकभावों से यह अपने प्रबोधक को रक्षित करता है। (उरुष्यात्) = महान् (अंहसः) = पापों से भी बचाता है। [२] इसी कारण (सुजातास:) = उत्तम जन्मवाले, कुलीन, (वीराः) = वीर पुरुष (परिचरन्ति) = इस प्रभु की परिचर्या करते हैं। वस्तुतः यह उपासना ही उन्हें 'सुजात व वीर' बनाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु अपने उपासक को हिंसकों से बचाते हैं वे महान् पापों से रक्षित करते हैं। प्रभु की उपासना उपासक को सुजात व वीर बनाती है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे उत्तम विद्येने अग्नीला जाणतात व कार्य सिद्ध व्हावे यासाठी तो संयुक्त करतात ते दुःख व दरिद्रतारहित बनतात, कीर्तिमान होतात व विजयाचे सुख प्राप्त करतात. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    That Agni, power and energy, is real agni which promotes the supplicants and protects them from the violent, which saves the kindler and augmenter from sin, and which the brave, cultured and enlightened leaders, well educated, serve and promote for a common cause.

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