ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 1/ मन्त्र 19
मा नो॑ अग्ने॒ऽवीर॑ते॒ परा॑ दा दु॒र्वास॒सेऽम॑तये॒ मा नो॑ अ॒स्यै। मा नः॑ क्षु॒धे मा र॒क्षस॑ ऋतावो॒ मा नो॒ दमे॒ मा वन॒ आ जु॑हूर्थाः ॥१९॥
स्वर सहित पद पाठमा । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । अ॒वीर॑ते । परा॑ । दा । दुः॒ऽवास॑से । अम॑तये । मा । नः॒ । अ॒स्यै । मा । नः॒ । क्षु॒धे । मा । र॒क्षसे॑ । ऋ॒त॒ऽवः॒ । मा । नः॒ । दमे॑ । मा । वने॑ । आ । जु॒हू॒र्थाः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो अग्नेऽवीरते परा दा दुर्वाससेऽमतये मा नो अस्यै। मा नः क्षुधे मा रक्षस ऋतावो मा नो दमे मा वन आ जुहूर्थाः ॥१९॥
स्वर रहित पद पाठमा। नः। अग्ने। अवीरते। परा। दा। दुःऽवाससे। अमतये। मा। नः। अस्यै। मा। नः। क्षुधे। मा। रक्षसे। ऋतऽवः। मा। नः। दमे। मा। वने। आ। जुहूर्थाः ॥१९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 19
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! त्वमवीरते नो मा परा दाः। दुर्वाससेऽमतये नो मा परा दाः नोऽस्यै मा क्षुधे मा नियुङ्क्ष्व। हे ऋतावो ! रक्षसे दमे नो मा पीड वने नो मा आ जुहूर्थाः ॥१९॥
पदार्थः
(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अग्ने) पावक इव विद्वन् (अवीरते) न विद्यन्ते वीरा यस्मिन् सैन्ये तस्मिन् (परा) (दाः) पराङ्मुखान् कुर्याः (दुर्वाससे) दुष्टवस्त्रधारणाय (अमतये) मूढत्वाय (मा) (नः) अस्मान् (अस्यै) पिपासायै (मा) (नः) अस्मान् (क्षुधे) बुभुक्षायै (मा) (रक्षसे) दुष्टाय जनाय (ऋतावः) सत्यप्रकाशक (मा) (नः) अस्मान् (दमे) गृहे (मा) (वने) अरण्ये (आ) (जुहूर्थाः) प्रदद्याः ॥१९॥
भावार्थः
हे विद्वांसो ! यूयमस्माकं कातरतां दारिद्र्यं मूढतां क्षुधं तृषां दुष्टसङ्गं गृहे जङ्गले वा पीडां निवार्य सुखिनः सम्पादयत ॥१९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वी ! आप (अवीरते) वीरतारहित सेना में (नः) हमको (मा, परा, दाः) पराङ्मुख मत कीजिये (दुर्वाससे) बुरे वस्त्र धारण करने के लिये तथा (अमतये) मूर्खपन के लिये (नः) हमको (मा) मत नियुक्त कीजिये। (नः) हमको (अस्यै) इस प्यास के लिये (मा) मत वा (क्षुधे) भूख के लिये (मा) मत नियुक्त कीजिये। हे (ऋतावः) सत्य के प्रकाशक ! (रक्षसे) दुष्ट जन के लिये (दमे) घर में (नः) हमको (मा) मत पीड़ा दीजिये (वने) वन में हम को (मा) मत (आ, जुहूर्थाः) पीड़ा दीजिये ॥१९॥
भावार्थ
हे विद्वानो ! तुम लोग हमारी कातरता, दरिद्रता, मूढ़ता, क्षुधा, तृषा, दुष्टों के सङ्ग और घर वा जङ्गल में पीड़ा का निवारण कर सुखी करो ॥१९॥
विषय
प्रजा के आवश्यक निवेदन।
भावार्थ
हे ( अग्ने ) अग्रणी नायक ! हे विद्वन् ! हे प्रभो ! ( नः ) हमें ( अवीरते ) वीरों से रहित सैन्य में, वा देश में, (मा परा दाः) मत छोड़। (दुर्वाससे) बुरे, मैले कुचैले वस्त्र पहनने के लिये वा मलिन वस्त्र धारण करने वाले के लाभ के लिये और (अस्यै अमतये ) इस मूढ़ता या मति रहित मूर्ख पुरुष के सुख के लिये (नः मा परा दाः) हमें मत त्याग अर्थात् तू हमें मैला कुचैला और मूढ़ मत रहने दे और न मैले कुचैले और मूर्ख के पल्ले डाल। हे विद्वन् ! ( क्षुधे नः मा प रा दाः ) भूख से पीड़ित होने के लिये या भूखे के आगे भी हमें मत डाल हे (ऋतावः ) सत्य, न्यायशील ! ऐश्वर्यवन् ! तू हमें ( रक्षसे मा परा दाः ) दुष्ट राक्षस पुरुष के सुख के लिये भी मत त्याग। (नः ) हमें ( दमे मा आ जुहूर्था: ) घर में भी पीड़ित न होने दे और ( नः वने मा आ जुहूर्थाः ) हमें वन में भी मत त्याग।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः–१–१८ एकादशाक्षरपादैस्त्रिपदा विराड् गायत्री । १९—२५ त्रिष्टुप् ।। पंचविशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
दुर्गति से दूर
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन्! (न:) = हमें (अवीरते) = अपुत्रत्व के लिये (मा परादा:) = मत दे डालिये, हम निःसन्तान न हों। (दुर्वाससे) = मैले कुचैले कपड़ों के लिये मत दे डालिये। (नः) = हमें (अस्यै) = इस अमतये [ want] = निर्धनता व दुर्बुद्धि के लिये [ evil mindedness] मत दे डालिये। [२] (नः) = हमें (क्षुधे) = भूख के लिये मा मत दे डालिये और (रक्षसे) = राक्षसीभावों के लिये (मा) = मत दे डालिये। हे (ऋतावः) = ऋतवाले अग्ने, सत्य का रक्षण करनेवाले अग्ने ! (नः) = हमें (मा दमे) = न तो घर में और (मा वने) = न ही वन में (आजुहूर्था:) = हिंसित करिये। आप का उपासन करते हुए हम सर्वत्र सुरक्षित न रहें।
भावार्थ
भावार्थ- हम उत्तम सन्तान, शुभ वस्त्र, शुभ बुद्धि, तृप्ति व दिव्यभावों को प्राप्त करें। प्रभु हमारे में ऋत का रक्षण करें। क्या तो घर में और क्या वन में हम सर्वत्र सुरक्षित रहें।
मराठी (1)
भावार्थ
हे विद्वानांनो ! तुम्ही आमची कातरता, दारिद्र्य, मूढता, क्षुधा, तृषा, दुष्टांचा संग किंवा वनातील त्रास याचे निवारण करा व सुखी करा. ॥ १९ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, refulgent lord and ruler of life, give us not up to a state of cowardice and impotence. Reduce us not to a state of rags and destitution. Subject us not to such indigence and intellectual imbecility. Reduce us not to hunger. Throw us not to the evil and the wicked. O lord observer and protector of truth and law, lead us not astray in the home and in the forest.
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