ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
वि ये ते॑ अग्ने भेजि॒रे अनी॑कं॒ मर्ता॒ नरः॒ पित्र्या॑सः पुरु॒त्रा। उ॒तो न॑ ए॒भिः सु॒मना॑ इ॒ह स्याः॑ ॥९॥
स्वर सहित पद पाठवि । ये । ते॒ । अ॒ग्ने॒ । भे॒जि॒रे । अनी॑कम् । मर्ताः॑ । नरः॑ । पित्र्या॑सः । पु॒रु॒ऽत्रा । उ॒तो इति॑ । नः॒ । ए॒भिः । सु॒ऽमनाः॑ । इ॒ह । स्याः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वि ये ते अग्ने भेजिरे अनीकं मर्ता नरः पित्र्यासः पुरुत्रा। उतो न एभिः सुमना इह स्याः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठवि। ये। ते। अग्ने। भेजिरे। अनीकम्। मर्ताः। नरः। पित्र्यासः। पुरुऽत्रा। उतो इति। नः। एभिः। सुऽमनाः। इह। स्याः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः कीदृशैः सह राजा प्रजाः पालयेदित्याह ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! ये पित्र्यासो मर्ता नरस्ते [पुरुत्रा] अनीकं वि भेजिरे उतो एभिस्सह त्वमिह नः सुमनाः स्याः ॥९॥
पदार्थः
(वि) (ये) विद्वांसः (ते) (अग्ने) तडिदिव प्रकाशमान (भेजिरे) सेवन्ते (अनीकम्) सैन्यम् (मर्त्ताः) मनुष्याः (नरः) नायकाः (पित्र्यासः) पितृभ्यो हिताः (पुरुत्रा) पुरुषु बहुषु राजसु (उतो) अपि (नः) अस्माकमुपरि (एभिः) प्रत्यक्षैर्विद्वद्भिः सह (सुमनाः) सुष्ठुशुद्धमनाः (इह) अस्मिन् राज्ये (स्याः) ॥९॥
भावार्थः
हे राजन् ! येऽग्निविद्यायां कुशला भवत्सेनाप्रकाशका वीरपुरुषा धर्मिष्ठा विद्वांसोऽधिकारिणः स्युस्तैस्सह भवान् न्यायेनाऽस्माकं पालको भूयाः ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर कैसे भृत्यों के साथ राजा प्रजा का पालन करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विद्युत् के तुल्य प्रकाशमान ! (ये) जो विद्वान् (पित्र्यासः) पितरों के लिये हितकारी (मर्त्ताः) मनुष्य (नरः) नायक हैं (ते) वे (पुरुत्रा) बहुत राजाओं में (अनीकम्) सेना को (वि, भेजिरे) सेवन करते हैं (उतो) और (एभिः) इन प्रत्यक्ष विद्वानों के साथ आप (इह) इस राज्य में (नः) हम पर (सुमनाः) शुद्ध चित्तवाले प्रसन्न (स्याः) हूजिये ॥९॥
भावार्थ
हे राजन् ! जो अग्निविद्या में कुशल, आपकी सेना के प्रकाशक, वीर पुरुष, धार्मिक, विद्वान् अधिकारी हों, उनके साथ आप न्याय से हमारे पालक हूजिये ॥९॥
विषय
पिताओंवत् शासक जन एवं सेना पुरुष।
भावार्थ
( उत ) और हे ( अग्ने ) अग्नि के समान प्रतापवन् ! सेनापते ! ( ये ) जो ( मर्त्ताः ) मनुष्य ( नरः ) नेता रूप से ( पुरु-त्रा ) बहुत से पदों पर ( पित्र्यासः ) माता पिता के पद के योग्य, उन सदृश प्रजा के पालक होकर ( ते अनीकं ) तेरे सैन्य को (भेजिरे ) बनाते हैं ( एभिः ) उनके साथ ही तू ( नः ) हमें ( सुमनाः ) शुभ चित्तवान् होकर ( इह स्याः ) इस राष्ट्र में रह ।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः–१–१८ एकादशाक्षरपादैस्त्रिपदा विराड् गायत्री । १९—२५ त्रिष्टुप् ।। पंचविशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
सुमनाः
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (ये मर्ताः ते) = जो मनुष्य आपके बनते हैं, वे (पित्र्यासः) = बड़ों के, पितरों के अनुकूल चलते हुए, उनके कहने में चलते हुए (नरः) = मनुष्य (अनीकम्) = बल व तेज को पुरुत्रा शरीर के अंग-प्रत्यंग में, बहुत प्रदेशों में (विभेजिरे) = विशेषरूप से धारण करते हैं। [२] (उत उ) = और निश्चय से (नः) = हमारे (एभिः) = इन स्तोत्रों के द्वारा (इह) = यहाँ इस जीवन में (सुमना:) = उत्तम मनवाले (स्या:) = होइये। आपकी उपासना से हम उत्तम मनवाले बन पायें।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु का उपासक बड़ों का कहना मानता है। बड़ों की शुश्रूषा करता हुआ यह तेजस्वी बनता है। प्रभु का स्तवन करता हुआ उत्तम मनवाला होता है।
मराठी (1)
भावार्थ
हे राजा ! जे अग्निविद्येत कुशल, आपल्या सेनेला प्रकाशित करणारे वीर पुरुष धार्मिक, विद्वान अधिकारी असतील तर त्यांच्याबरोबर तू न्यायाने वागून आमचा पालक बन. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, light of life and fiery power, many are the mortals, leading lights, good and kind as parents, dedicated to you and serving your powers and forces of existence. With all these be kind and gracious at heart toward us here in life and now.
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