ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 1/ मन्त्र 24
म॒हो नो॑ अग्ने सुवि॒तस्य॑ वि॒द्वान्र॒यिं सू॒रिभ्य॒ आ व॑हा बृ॒हन्त॑म्। येन॑ व॒यं स॑हसाव॒न्मदे॒मावि॑क्षितास॒ आयु॑षा सु॒वीराः॑ ॥२४॥
स्वर सहित पद पाठम॒हः । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । सु॒वि॒तस्य॑ । वि॒द्वान् । र॒यिम् । सू॒रिऽभ्यः॑ । आ । व॒ह॒ । बृ॒हन्त॑म् । येन॑ । व॒यम् । स॒ह॒सा॒ऽव॒न् । मदे॑म । अवि॑ऽक्षितासः । आयु॑षा । सु॒ऽवीराः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
महो नो अग्ने सुवितस्य विद्वान्रयिं सूरिभ्य आ वहा बृहन्तम्। येन वयं सहसावन्मदेमाविक्षितास आयुषा सुवीराः ॥२४॥
स्वर रहित पद पाठमहः। नः। अग्ने। सुवितस्य। विद्वान्। रयिम्। सूरिऽभ्यः। आ। वह। बृहन्तम्। येन। वयम्। सहसाऽवन्। मदेम। अविऽक्षितासः। आयुषा। सुऽवीराः ॥२४॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 1; मन्त्र » 24
अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्या विद्वद्भ्यः किं गृह्णीयुरित्याह ॥
अन्वयः
हे सहसावन्नग्ने विद्वाँस्त्वं महः सुवितस्य कर्ता सन् सूरिभ्यो बृहन्तं रयिं न आ वह येनाविक्षितासः सुवीराः सन्तो वयमायुषा मदेम ॥२४॥
पदार्थः
(महः) (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) दातः (सुवितस्य) प्रेरितस्य (विद्वान्) (रयिम्) (सूरिभ्यः) विद्वद्भ्यः (आ) (वह) समन्तात्प्रापय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (बृहन्तम्) महान्तम् (येन) (वयम्) (सहसावन्) बलेन युक्त (मदेम) आनन्देम (अविक्षितासः) अविक्षीणः क्षयरहिताः (आयुषा) जीवनेन (सुवीराः) शोभनैर्वीरैरुपेताः ॥२४॥
भावार्थः
ये मनुष्या विद्वद्भ्यो महतीं विद्यां गृह्णन्ति ते सर्वदा वर्धमानाः सन्तः पुष्कलां श्रियं दीर्घमायुश्च प्राप्नुवन्ति ॥२४॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य विद्वानों से क्या ग्रहण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (सहसावन्) बल से युक्त (अग्ने) दानशीलपुरुष (विद्वान्) विद्वान् ! आप (महः) महान् (सुवितस्य) प्रेरणा किये कर्म के कर्ता होते हुए (सूरिभ्यः) विद्वानों से (बृहन्तम्) बड़े (रयिम्) धन को (नः) हमारे लिये (आ, वह) अच्छे प्रकार प्राप्त कीजिये (येन) जिस से (अविक्षितासः) क्षीणतारहित (सुवीराः) सुन्दर वीरों से युक्त हुए (वयम्) हम लोग (आयुषा) जीवन के साथ (मदेम) आनन्दित रहें ॥२४॥
भावार्थ
जो मनुष्य विद्वानों से बड़ी विद्या को ग्रहण करते हैं, वे सब काल में वृद्धि को प्राप्त होते हुए पूर्ण लक्ष्मी और दीर्घ अवस्था को पाते हैं ॥२४॥
विषय
राजा के कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य।
भावार्थ
हे ( अग्ने ) विद्वन् ! तू ( नः ) हमारे ( सुवितस्य ) सुखदायक कल्याणहित का ( विद्वान् ) जानने हारा, ( सूरिभ्यः ) विद्वान् पुरुषों के लाभ के लिये ( बृहन्तं रयिम् ) बहुत बड़ा ऐश्वर्य ( आ वह ) प्राप्त कर और धारण कर। हे (सहसावन् ) बल से राष्ट्र पर प्रभुत्व करने हारे ! ( येन ) जिस ऐश्वर्य से ( वयम् ) हम ( अविक्षितासः ) विना क्षीण हुए ( मदेम ) प्रसन्न हों और ( आयुषा ) दीर्घ जीवन से युक्त और ( सु-वीराः ) उत्तम वीर और उत्तम पुत्रों वाले हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः ॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः–१–१८ एकादशाक्षरपादैस्त्रिपदा विराड् गायत्री । १९—२५ त्रिष्टुप् ।। पंचविशत्यृचं सूक्तम् ॥
विषय
अक्षीण आयु व उत्तम सन्तान
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (नः) = हमारे (महः सुवितस्य) = महान् सुवित को-कल्याण कर्म को (विद्वान्) = जानते हुए आप (सूरिभ्यः) = हम समझदार पुरुषों के लिये (बृहन्तम्) = वृद्धि के कारणभूत (रयिम्) = ऐश्वर्य को आवहा प्राप्त कराइये। इस ऐश्वर्य के द्वारा हम सदा शुभ कर्मों को करने में समर्थ बने रहें। [२] हे (सहसावन्) = बलवाले प्रभो ! सर्वशक्ति-सम्पन्न प्रभो ! हमारे लिये उस धन को दीजिये (येन) = जिससे (वयम्) = हम (आयुषा अविक्षितासः) = आयु से अक्षीण हुए हुए, (सुवीराः) = उत्तम वीर सन्तानोंवाले होते हुए (मदेम) = आनन्द का अनुभव करें।
भावार्थ
भावार्थ- शुभ कर्म करते हुए हम प्रभु के अनुग्रह से उस धन को प्राप्त करें, जो ठीक उपयुक्त हुआ-हुआ हमारे दीर्घ जीवन का कारण बने और हमें वीर सन्तानोंवाला बनाये।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे विद्वानांकडून महान विद्या ग्रहण करतात ती सदैव उन्नत होतात तसेच धनवान व दीर्घायु होतात. ॥ २४ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, lord of light and life, you know our great desire and prayer. Pray bring us abundant and expansive wealth and enlightenment for the brave by which, O lord of power, we may live and enjoy a long life with lustre and noble progeny without hurt, waste or corruption.
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