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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 101/ मन्त्र 11
    ऋषिः - जमदग्निभार्गवः देवता - सूर्यः छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    बण्म॒हाँ अ॑सि सूर्य॒ बळा॑दित्य म॒हाँ अ॑सि । म॒हस्ते॑ स॒तो म॑हि॒मा प॑नस्यते॒ऽद्धा दे॑व म॒हाँ अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बट् । म॒हान् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ । बट् । आ॒दि॒त्य॒ । म॒हान् । अ॒सि॒ । म॒हः । ते॒ । स॒तः । म॒हि॒मा । प॒न॒स्य॒ते॒ । अ॒द्धा । दे॒व॒ । म॒हान् । अ॒सि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बण्महाँ असि सूर्य बळादित्य महाँ असि । महस्ते सतो महिमा पनस्यतेऽद्धा देव महाँ असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बट् । महान् । असि । सूर्य । बट् । आदित्य । महान् । असि । महः । ते । सतः । महिमा । पनस्यते । अद्धा । देव । महान् । असि ॥ ८.१०१.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 101; मन्त्र » 11
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Surya, light of life, you are truly great, lord indestructible, you are undoubtedly great. O lord of reality, highest real, great is your glory, adorable. In truth, you are great, refulgent and generous.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गुणांनी महान परमेश्वर आपल्या प्रेरक शक्तीमुळे अति पूजनीय आहे. आपल्या जीवनपथावर चालत स्त्री-पुरुषांनी त्याची महत्त्वपूर्ण प्रेरणा कधी विसरता कामा नये. ॥११॥

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    हिन्दी (2)

    पदार्थ

    हे (सूर्य) प्रभो! (बट्) सत्य ही (त्वम्) आप (महान् असि) नितान्त तेजस्वी हैं; (आदित्य) हे अविनाशी! (त्वम्) आप (महान् असि) नितान्त बलवान् हैं। (महः सतः ते) महान् होते हुए आपके (महिमा) महत्त्व की (पनस्यते) स्तोता वन्दना करते हैं। (श्रद्धा) सचमुच (देव) हे दिव्य प्रभो! आप (महान्) महान् (असि) हैं॥११॥

    भावार्थ

    गुणों से महान् परमात्मा स्व प्रेरक शक्ति के कारण नितान्त पूजनीय है। अपने जीवनपथ पर चलते हुए नर-नारी उसकी महत्त्वपूर्ण प्रेरणा कदापि न भुलायें॥११॥

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    विषय

    महान् प्रभु का वर्णन।

    भावार्थ

    हे ( सूर्य ) समस्त जगत् के उत्पादक, सूर्यवत् प्रकाशक और सञ्चालक ! तू ( बट् महान् असि ) सचमुच महान् है। हे ( आदित्य ) सब को अपने वश में लेने हारे। तू ( बट् महान् असि ) सचमुच महान् है। ( ते महः सतः ) तुझ महान् सत्स्वरूप का ( महिमा पनस्यते ) बड़ा भारी महान् समर्थ्य वर्णन किया जाता है। हे ( देव ) सब सुखों के दातः ! तू ( अद्धा महान् असि ) सचमुच महान् है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्भार्गव ऋषिः। देवताः—१—५ मित्रावरुणौ। ५, ६ आदित्याः। ७, ८ अश्विनौ। ९, १० वायुः। ११, १२ सूर्यः। १३ उषाः सूर्यप्रभा वा। १४ पवमानः। १५, १६ गौः॥ छन्दः—१ निचृद् बृहती। ६, ७, ९, ११ विराड् बृहती। १२ भुरिग्बृहती। १० स्वराड् बृहती। ५ आर्ची स्वराड् बृहती। १३ आर्ची बृहती। २, ४, ८ पंक्तिः। ३ गायत्री। १४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १५ त्रिष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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