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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 101 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 101/ मन्त्र 13
    ऋषिः - जमदग्निभार्गवः देवता - उषाः सूर्यप्रभा वा छन्दः - आर्चीबृहती स्वरः - मध्यमः

    इ॒यं या नीच्य॒र्किणी॑ रू॒पा रोहि॑ण्या कृ॒ता । चि॒त्रेव॒ प्रत्य॑दर्श्याय॒त्य१॒॑न्तर्द॒शसु॑ बा॒हुषु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒यम् । या । नीची॑ । अ॒र्किणी॑ । रू॒पा । रोहि॑ण्या । कृ॒ता । चि॒त्राऽइ॑व । प्रति॑ । अ॒द॒र्शि॒ । आ॒ऽय॒ती । अ॒न्तः । द॒शऽसु॑ । बा॒हुषु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इयं या नीच्यर्किणी रूपा रोहिण्या कृता । चित्रेव प्रत्यदर्श्यायत्य१न्तर्दशसु बाहुषु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इयम् । या । नीची । अर्किणी । रूपा । रोहिण्या । कृता । चित्राऽइव । प्रति । अदर्शि । आऽयती । अन्तः । दशऽसु । बाहुषु ॥ ८.१०१.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 101; मन्त्र » 13
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This light of the dawn coming down, from the horizon, beautiful, created by the golden red rays of the sun, radiating over the earth below like the arms of divinity in the ten directions of space, looks like a wonder gift of divinity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परम प्रभूच्या प्रेरक शक्तीचे हे आलंकारिक वर्णन दररोज उगवणाऱ्या सूर्याच्या प्रभेच्या वर्णनाप्रमाणे आहे. माणसासाठी प्रभूची रोचक प्रेरणा व आकर्षण याचे हे रोचक वर्णन आहे. ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    उस प्रेरक परमात्मा की (इयम्) यह (या) जो (नीची) प्रभु से नीचे को आई (अर्किणी) ज्योतिष्मती (रूपा) रूपा (रोहिणी=रोहिण्या) सूर्योदय की क्रिया से (कृता) बनायी गई है, वह (दशसु) दस (बाहुषु) भुजाओं के सरीखी अवस्थित दस दिशाओं के (अन्तः) मध्य (आयती) आती हुई (चित्रा इव) अद्भुत सी (प्रत्यदर्शि) प्रतीत होती है॥१३॥

    भावार्थ

    परमात्मा की प्रेरक शक्ति का यह आलंकारिक वर्णन, प्रतिदिन उदीयमान सूर्य प्रभा के वर्णन के तुल्य किया गया है। मानव को प्रभु की रोचक प्रेरणा की ओर आकर्षण हेतु यह रोचक वर्णन है॥१३॥

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    विषय

    महान् प्रभु का वर्णन।

    भावार्थ

    ( इयं ) यह ( या ) जो ( नीची ) नीचे की ओर मुख किये, विनयशील कन्या के समान नीचे की ओर झुकी, ( आकणी ) स्तुति से युक्त, वा अर्क, मन्त्रादि को जानने वाली अर्किणी, सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष की ( रूपा ) रूपवती (रोहिण्या) सूर्य की कान्ति के समान उज्ज्वल ( कृता ) उत्तम अलंकारों से सुसज्जित, ( चित्रा इव ) अद्भुत रूप वाली के समान ( दशसु बाहुषु ) दशों दिशाओं में ( बाहुषु ) बाहुओं के बल पर ( आयती ) विस्तृत राजशक्ति है वह ( प्रति अदर्शि ) सब को उत्तम रीति से दीखे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्भार्गव ऋषिः। देवताः—१—५ मित्रावरुणौ। ५, ६ आदित्याः। ७, ८ अश्विनौ। ९, १० वायुः। ११, १२ सूर्यः। १३ उषाः सूर्यप्रभा वा। १४ पवमानः। १५, १६ गौः॥ छन्दः—१ निचृद् बृहती। ६, ७, ९, ११ विराड् बृहती। १२ भुरिग्बृहती। १० स्वराड् बृहती। ५ आर्ची स्वराड् बृहती। १३ आर्ची बृहती। २, ४, ८ पंक्तिः। ३ गायत्री। १४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १५ त्रिष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सूर्यप्रभा

    पदार्थ

    [१] सूर्य की किरणें द्युलोक से नीचे पृथिवीलोक पर आती हैं। सो (इयम्) = यह या जो सूर्यप्रभा (नीची) = अवाङ्मुखी, नीचे मुख किये हुए-सी है। (अर्किणी) = स्तुतिवाली है। इसके होने पर सब देव प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त होते हैं। यह (रूपा) = उत्तम रूपवाली (रोहिण्या) = प्रकाशयुक्त (कृता) = की गई है। [२] (चित्रा इव) = अत्यन्त अद्भुत-सी यह (दशसु) = दसों (बाहुषु अन्तः) = ब्रह्माण्ड की बाहु - स्थानीय दिशाओं के अन्दर (आयती) = आती हुई (प्रत्यदर्शि) = प्रतिदिन देखी जाती है।

    भावार्थ

    भावार्थ - इस अद्भुत-सी सूर्यप्रभा में उस महान् सूर्य प्रभु की महिमा दिखती है। सूर्य को भी तो वे प्रभु ही दीप्ति दे रहे हैं।

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