ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 101/ मन्त्र 15
मा॒ता रु॒द्राणां॑ दुहि॒ता वसू॑नां॒ स्वसा॑दि॒त्याना॑म॒मृत॑स्य॒ नाभि॑: । प्र नु वो॑चं चिकि॒तुषे॒ जना॑य॒ मा गामना॑गा॒मदि॑तिं वधिष्ट ॥
स्वर सहित पद पाठमा॒ता । रु॒द्राणा॑म् । दु॒हि॒ता । वसू॑नाम् । स्वसा॑ । आ॒दि॒त्याना॑म् । अ॒मृत॑स्य । नाभिः॑ । प्र । नु । वो॒च॒म् । चि॒कि॒तुषे॑ । जना॑य । मा । गाम् । अना॑गाम् । अदि॑तिम् । व॒धि॒ष्ट॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि: । प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट ॥
स्वर रहित पद पाठमाता । रुद्राणाम् । दुहिता । वसूनाम् । स्वसा । आदित्यानाम् । अमृतस्य । नाभिः । प्र । नु । वोचम् । चिकितुषे । जनाय । मा । गाम् । अनागाम् । अदितिम् । वधिष्ट ॥ ८.१०१.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 101; मन्त्र » 15
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Mother of Rudras, pranic energies, living forms and scholars of the middle order, sustainer of the Vasus, abodes of life such as earth, and scholars of the graduate order, and sister of Adityas, suns and scholars of the highest order, the centre fount of life’s nectar and knowledge: that is Aditi, mother Infinity, Nature, mother knowledge of the Veda, and the mother cow. Speak of mother Aditi to the people who are keen for enlightenment. Do not insult, do not pollute, do not injure, do not kill the innocent cow, Mother Nature and the divine knowledge of Veda.
मराठी (1)
भावार्थ
ही वेदवाणी वसु विद्वानांनीही ‘दूरे हिता’ - दूर ठेवलेली असल्यामुळे किंवा त्यांच्या शक्तीला (दोग्ध्रेर्वा) दूध देणारी असल्यामुळे दुहिता आहे. ४४ वर्षापर्यंत ब्रह्मचर्यपूर्वक अध्ययन करणाऱ्यांची ही ‘माता’ आहे. नम्रतेने त्यांना आपले दूध (ज्ञान) पाजविते. पुन्हा ‘आदित्या’ची ही ‘स्वसा’ चांगल्या प्रकारे अज्ञानाला पलीकडे फेकून देणारी (स्वस्त्रा = सु + अस् + ऋन् ) साध्वी विद्या असते व शेवटी धर्म, अर्थ, काम, मोक्षाचा केंद्रबिंदू असते. या प्रकारे या वेदवाणीला माणसाने कधी विलुप्त होऊ देऊ नये. ॥१५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
जो वेदवाणी, (रुद्राणाम्) ४४ वर्ष ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले विद्वानों की (माता) 'माता' है; (वसूनाम्) २४ वर्ष तक ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करने वालों की (दुहिता) 'दुहिता' है और (आदित्यानाम्) ४८ वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्यव्रतपूर्वक विद्याध्ययन करनेवालों की (स्वसा) 'स्वसा' है और (अमृतस्य) धर्मार्थकाममोक्ष नाम वाले अविनाशी सुख की (नाभिः) बाँधनेवाली केन्द्रबिन्दु है। उस वेदवाणी का (चिकितुषे) समझदार (जनाय) जन को (नु) ही, मैं (प्रवोचम्) उपदेश करता हूँ। हे मनुष्यो! (अनागाम्) इस निष्पाप (अदितिम्) ज्ञान की अक्षय=अक्षीण भण्डार रूपा (गाम्) वेदवाणी को (मा) मत (वधिष्ट) लुप्त करो॥१५॥
भावार्थ
वसु विद्वानों से यह दूर रखी होने अथवा उनकी शक्ति को दुहती रहने से दुहिता है। इसके पश्चात् ४४ वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य पूर्वक अध्ययन करने वालों की यह 'माता' है। पुनश्च 'आदित्यों' की यह 'स्वसा' सुष्ठुतया अज्ञान को परे फेंक देने वाली (स्वस्रा=सु+अस्+ऋन्) साध्वी विद्या होती है और अन्त में धर्मार्थ काम मोक्ष की केन्द्रबिन्दु है। इस भाँति इस वेदवाणी को मानव कभी लुप्त न होने दे॥१५॥
विषय
गौ, वाणी और भूमि की महिमा का वर्णन।
भावार्थ
( रुद्राणां माता ) दुष्टों को रुलाने वाले वीर पुरुषों को दूध पिलाकर पुष्ट करने वाली, रोगों को नाश करने वाले घृत, दुग्ध आदि पदार्थों की उत्पन्न करने वाली माता यह गौ है; और वीरों की उत्पादक और रोग नाशक ओषधियों की उत्पादक जननी यह गौ भूमि है, दुष्ट दलनकारी वीरों और प्राण युक्त जीवों की माता यह कन्यारूप मातृ शक्ति गौ है। वह ( वसूनां दुहिता) राष्ट्र में वा जगत् में बसे समस्त जीवों को सब सुखों की देने वाली, ( आदित्यानां स्वसा ) दान-आदान करने वाले व्यापारी वैश्य जनों की ( सु-असा ) सर्व सुखदात्री, भगिनी के समान है और ( अमृतस्य नाभिः) अमृत दीर्घ जीवन को देने वाली, मानो आश्रय है। मैं ( चिकितुषे ) इन समस्त तथ्यों को जानने वाले को ( नु प्रवोचं ) अवश्य यह बलपूर्वक कहता हूं कि ऐसी ( अनागां ग्राम् ) अपराध रहित गौ को और (अदितिम् ) भूमिवत् माता-पितावत्, पुत्र-पुत्रिवत् गौ का ( मा वधिष्ट) कभी हनन मत करा।
टिप्पणी
वेद की यह ऐसी प्रबल अहिंसा प्रतिपादक अपील है जिस को सुनकर घोर हिंसक भी गौ पर उठाये हाथ को खींच ले।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्भार्गव ऋषिः। देवताः—१—५ मित्रावरुणौ। ५, ६ आदित्याः। ७, ८ अश्विनौ। ९, १० वायुः। ११, १२ सूर्यः। १३ उषाः सूर्यप्रभा वा। १४ पवमानः। १५, १६ गौः॥ छन्दः—१ निचृद् बृहती। ६, ७, ९, ११ विराड् बृहती। १२ भुरिग्बृहती। १० स्वराड् बृहती। ५ आर्ची स्वराड् बृहती। १३ आर्ची बृहती। २, ४, ८ पंक्तिः। ३ गायत्री। १४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। १५ त्रिष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
विषय
माता-दुहिता-स्वसा [गौ:]
पदार्थ
[१] यह गौ (रुद्राणां माता) = रोगों को अपने से दूर भगानेवालों का [रुत्+द्रु] निर्माण करनेवाली है । गोदुग्ध के सेवन से शरीर में रोगों का प्रवेश नहीं होता। (वसूनां दुहिता) = शरीर में निवास को उत्तम बनानेवाले सब तत्त्वों का [वसु] यह पूरण करनेवाली है । गोदुग्ध के सेवन से शरीर में सब वसुओं का प्रपूरण होकर जीवन पूर्ण-सा बन जाता है। (आदित्यानां स्वसा) = यह गौ सब अच्छाइयों का आदान करनेवालों की बहिन के समान है। गोदुग्ध का सेवन सब अच्छाइयों को प्राप्त कराता है। यह गौ तो (अमृतस्य) = अमृतत्त्व - नीरोगता के साधनभूत दुग्ध का (ताभिः) = केन्द्र है। उस दूध का यह निवास स्थान है जो हमें अमर बनाता है। [२] प्रभु कहते हैं कि मैं (चिकितुषे जनाय) = समझदार पुरुष के लिये (नु) = अब (प्रवोचम्) = यह स्पष्ट कहता हूँ कि (गां मा वधिष्ट) = उस गौ को मत मारो, जो (अनागाम्) = निष्पाप है, जिसके दुग्ध के सेवन से हमारे जीवन निष्पाप बनते हैं और (अदितिम्) = जिसके दुग्ध के सेवन से स्वास्थ्य का खण्डन नहीं होता। यह गोदुग्ध हमें शरीर में स्वस्थ बनाता है, मन में निष्पाप ।
भावार्थ
भावार्थ- गौ उस दूध को हमें प्राप्त कराती है जो रोगों को दूर करता है, निवास के लिये आवश्यक तत्त्वों को उत्पन्न करता है, सब अच्छाइयों को हमारे अन्दर प्राप्त कराता है। यह गौ अनागा-अदिति' है। इसका वध न करना ही समझदारी है।
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